एक बार फिर याद करते हैं होली की कुछ खोई हुई कहानियां
हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई कहानी जरुर होती है, ऐसा ही एक त्यौहार होली जिससे जुड़ी कई कहानियां भी हैं, जिन्हें हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं, आज बात करते हैं उन्हीं कहानियों की ...
Deepak Heera Rangnath 17 March 2021 2:03 PM GMT

याद तो होगा आपको, सर्दियों के ख़त्म होते-होते, रात में अलाव तापते हुए, भक्त प्रल्हाद, हिरण्य कश्यप और होलिका बुआ की कहानी तो हम सभी ने ख़ूब मज़े लेकर दादी-नानी से ज़रूर सुनी होगी।
लेकिन ऐसी भी होली की कुछ कहानियाँ हैं जो खो गई थी वक़्त के पन्नों में।
कहते हैं, तारकासुर का वध करने के लिए शिव जी को तपस्या से जगाना बहुत ज़रूरी हो गया था क्योंकि तारकासुर को शिव जी का ही पुत्र मार सकता था और शिव जी थे समाधि में। न विवाह, न पुत्र।
इसीलिए उन्हें समाधि से जगाने का काम सौंपा गया प्रेम, श्रृंगार और सुंदरता के देवता कामदेव को।
कामदेव ने अपने बेटे बसंत को कैलाश भेज दिया और पीछे-पीछे ख़ुद भी चले आए। बसंत के आते ही फूल खिल गए, पेड़ों पर नई पत्तियाँ उमड़ आईं, मधुमक्खियाँ भिनभनाने लगी। कामदेव ने अपना काम-तीर उठाया और चला दिया शिव जी पर।
शिव जी की तीसरी आँख खुल गई और कामदेव हो गए भस्म। कुछ कहानियाँ कहती हैं कि कामदेव ने श्रीकृष्ण के बेटे प्रद्युम्न के रूप में दोबारा जन्म लिया तो कुछ कहानियाँ कहती हैं कि शिव जी उन्हें तभी जीवित कर दिया था।
आज भी कई जगहों पर होली के दिन कामदेव की पूजा होती है और लोग कामदेव के जले हुए बदन को ठंडा करने के लिए आम के बौर और चंदन को एक साथ घोलकर उनके माथे पर लगाते हैं।
आगे यूँ हुआ कि शिव जी ने माँ पार्वती से ब्याह कर लिया और उनके पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।
होली की एक और कहानी शुरू होती है राजा पृथु की नगरी से।
कहते हैं, वहाँ एक राक्षसी रहा करती थी, जिसका नाम था धुंडी।
धुंडी ने बड़ी तपस्या की और भगवान शिव से वरदान पाया कि उसे कोई न हरा सके। शिव जी ने वरदान में एक शर्त रख दी कि बच्चों से बचकर रहना होगा।
धुंडी मान तो गई पर ऐसा हुआ नहीं। उसने नगरी के सभी बच्चों को तंग करना शुरू कर दिया। कुछ को तो खा भी गई।
राजा पृथु बड़े चिंतित थे। राज-ज्योतिषी के सामने माथा पीटने लगे।
राज-ज्योतिषी ने समझाया कि इसका समाधान बच्चे ही हैं। फिर क्या था, बच्चों की टोलियाँ इकट्ठा हुई, लकड़ियाँ लाई गई, उपले लाए गए। बड़ी सी आग जलाई गई। बच्चे उसके इर्द-गिर्द गोल चक्कर काटने लगे, शोर मचाने लगे। मुँह पर हाथ मार मार कर अजीब अजीब आवाज़ें निकालने लगे। कोई डफली बजाने लगा, कोई बेसुरा गाने लगा।
धुंडी के कानों को ये शोर बर्दाश्त न हुआ। उसके कानों से खून टपकने लगा। सिर की नसें तनकर इस तरह ऊपर आ गई कि मानो अभी फट पड़ेंगी।
धुंडी ने जो दौड़ना शुरू किया कि फिर नगरी की ओर पलट कर न देखा।
क्या आपके पास है ऐसी ही कोई होली की कहानी जो दादी-नानी को याद न रही हो?
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