दिल्ली में प्रदूषण के लिए सिर्फ किसान और पराली नहीं हैं जिम्मेदार

आंकड़ों से साफ पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली NCR) में रहने वाले 4.6 करोड़ से अधिक लोग ऑक्सीजन की जगह जहर ले रहे हैं।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   6 Nov 2019 6:33 AM GMT

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दिल्ली में प्रदूषण के लिए सिर्फ किसान और पराली नहीं हैं जिम्मेदार

देश की राजधानी दिल्ली के लिए अब यह आम बात होती जा रही है। हर साल नवंबर के महीने में दिल्लीवासियों की आंखें जलने लगती हैं, फेफड़े चोक हो जाते हैं और लोगों का खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इस तरह दिल्लीवासियों के लिए सर्दियों की शुरुआत होती है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी खतरनाक हो गई कि पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ी। 3 नवंबर को दिल्ली की हवा में PM10 और PM2.5 का स्तर क्रमशः 739 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (µg / m3) और 558 mg/m3 तक पहुंच गया, जो कि 'खतरनाक' की श्रेणी में आते हैं। राजधानी में समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) भी 708 को छू गया।

विभिन्न स्थानों पर वायु की गुणवत्ता प्रदूषण के निर्धारित मानकों से बहुत अधिक थी। 3 नवंबर को दोपहर 3:50 बजे इंडिया गेट के पास PM10 और PM2.5 का स्तर क्रमशः 669 µg/m3 और 501 µg/m3था। राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हवा में PM10 और PM2.5 का स्तर क्रमशः 100 µg/m3 और 60 µg/m3 से अधिक नहीं होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक तो और भी सख्त हैं। डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार हवा में PM10 और PM2.5 का स्तर क्रमशः 50 µg/m3 और 25 µg/m3 से अधिक नहीं होना चाहिए।

इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली NCR) में रहने वाले 4.6 करोड़ से अधिक लोग ऑक्सीजन की जगह जहर ले रहे हैं। दिल्ली ही नहीं उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में हवा की गुणवत्ता का स्तर 'खतरनाक' श्रेणी में पहुंच चुका है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर वायु की गुणवत्ता का स्तर प्रदूषण के निर्धारित मानकों से कहीं अधिक था।

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR-सफर) के अनुसार, हवा की गुणवत्ता का 'खतरनाक' श्रेणी में पहुंचने का मतलब है कि पूरी तरह से स्वस्थ लोगों को भी सांस लेने संबंधी गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में 'सफर' लोगों को बाहर ना निकलने की सलाह देता है। इसके अलावा हृदय या फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों, बुढ़ों और बच्चों को भी घर के अंदर रहने और कम शारीरिक गतिविधिया करने की सलाह दी जाती हैं।

राजधानी में हवा की गुणवत्ता का स्तर 'खतरनाक' श्रेणी में पहुंचने के बाद पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया। इसके साथ ही 5 नंवबर तक के लिए एनसीआर क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर पाबंदी लगा दी गई। वहीं सर्दी के सीजन में पटाखे जलाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 5 नवंबर तक स्कूलों को बंद रखने की घोषणा की है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा के भी स्कूलों को 5 नवंबर तक बंद रखने के आदेश दिए गए हैं। इस बीच दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने वायु प्रदूषण से बचाव के लिए एक हेल्थ एडवायजरी भी जारी की। लोगों को सुबह और शाम के समय घर से बाहर ना निकलने की सलाह दी गई और कहा गया कि वह प्रमाणित एन-95 मास्क पहन कर ही बाहर निकले। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने राजधानी में 4 नवंबर से 15 नवंबर तक के लिए ऑड-ईवन की घोषणा की।

ऑड-ईवन पहली बार 2016 में लागू हुआ था, जब प्रदूषण को कम करने के लिए ऑड और ईवन नंबरों की गाड़ियों को अलग-अलग दिनों पर रोड पर निकालने की व्यवस्था की गई। यह पहली बार नहीं है जब राजधानी में हवा की गुणवत्ता का स्तर 'गंभीर' श्रेणी को छुआ और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। हर साल सर्दियों की शुरुआत में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारकों की वजह से 'खतरनाक' स्तर पर पहुंच जाती है।

Source- http://safar.tropmet.res.in


यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसान खरीफ फसलों से रबी फसलों की ओर रुख करते हैं और पराली जलाते हैं। इसके कारण राजधानी में प्रदूषण की तीव्रता और बढ़ जाती है। हर साल इन किसानों को प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक और ईपीसीए की सदस्य सुनीता नारायण लिखती हैं, "पराली दिल्ली में प्रदूषण का प्राथमिक कारण नहीं है। हवा में प्रदूषण के कण साल भर मौजूद रहते हैं। लेकन हवाएं इन प्रदूषकों को छिटका कर रखती हैं। हालांकि प्रदूषण के ये स्रोत गायब नहीं होते हैं, लेकिन प्रदूषण को हम तब खुली आंखों से देख और महसूस नहीं कर पाते हैं।"

पिछले साल अक्टूबर में, केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने एक सूची जारी की थी जिसके अनुसार परिवहन और उद्योग एनसीआर में प्रदूषण के दो सबसे बड़े कारण है। परिवहन क्षेत्र दिल्ली के प्रदूषण में 40 फीसदी का योगदान करता है। इसके अलावा उद्योगों का भी इसमें अहम योगदान है।

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईवीई) के 2019 के एक अध्ययन के मुताबिक परिवहन क्षेत्र पीएम 2.5 का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जो कि 17.9 प्रतिशत से 39.2 प्रतिशत तक पीएम 2.5 का उत्सर्जन करता है। इसके अलावा रास्तों में उड़ने वाली धूल पीएम 10 कणों के सबसे बड़े उत्सर्जनकर्ता है, जो कि 35.6 प्रतिशत से 65.9 प्रतिशत तक का योगदान करते हैं।

Source: Jalan, Ishita and Hem H. Dholakia. 2019. What is Polluting Delhi's Air? Understanding Uncertainties in Emissions Inventory. New Delhi: Council on Energy, Environment and Water.


'सफर' के 3 नवंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली एनसीआर में पीएम 2.5 के विस्तार में बायो-मास गैस का योगदान 12 प्रतिशत हैं और इसके लगातार बढ़ने की संभावना है। 31 अक्टूबर को यह 44 फीसदी था। फायर काउंट के अनुसार पराली इस साल भी प्रदूषण के लिए एक समस्या बनी हुई है। (देखें आंकड़ा: 2018 बनाम 2019)। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि नवंबर के मध्य तक पराली जलाना समाप्त हो जाता है जबकि एनसीआर में जनवरी तक हवा की गुणवत्ता खराब बनी रहती है।

निःसंदेह पराली के मुद्दे को भी संबोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह न केवल वायु प्रदूषण में योगदान देता है बल्कि संसाधन की बर्बादी भी है। इसके अलावा हवा की स्थिति गंभीर होने के बावजूद भी पटाखे फोड़ना व्यवहारिक नहीं है। वहीं प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों को भी नियंत्रित करना भी बहुत जरूरी है।"

(ग्राफ देखें: दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण भार का क्षेत्रवार योगदान)


सुनीता नारायण लिखती हैं, "लेकिन इसका वास्तविक और दीर्घकालिक हल तब मिलेगा जब उद्योगों में कोयले और दूसरे ईंधनों की जगह प्राकृतिक गैस या बिजली का प्रयोग होने लगे। लोग कार से ऑफिस जाने की बजाय पब्लिक ट्रॉन्सपोर्ट का प्रयोग करने लगे।"

हमें बसों और परिवहन के अन्य साधनों में निवेश करने की जरुरत है क्योंकि लगभग 40 प्रतिशत प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आ रहा है। इसके अलावा धूल प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, कोयला जनित उद्योगों पर प्रतिबंध आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरुरत है।

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में यहां पढ़ें- Don't just blame the farmers


   

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