सूर्य नमस्कार करने का सही तरीका, शरीर के साथ दिमाग को भी रखेगा स्वस्थ

Ashwani Kumar Dwivedi | Apr 17, 2020, 07:49 IST
Surya namaskar
लखनऊ। सूर्य नमस्कार से केवल शारीरिक लाभ के लिए है, बल्कि मानसिक और अध्यात्मिक लाभ का भी श्रोत है, जिन्हें उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या है ऐसे लोग सूर्य नमस्कार का अभ्यास न करें।

सूर्य नमस्कार में बारह आसन होते हैं, योग के निरंतर अभ्यास से इन आसनों को सिद्ध (जब आसन करने में साधक प्रवीण हो जाए और आसनों के लाभ मिलने लगे) किया जाता है।

इसके अभ्यास से एकाग्रता बढती है और मेरुदंड (स्पाइनल कार्ड) में लचीलापन आता है साथ ही जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है। शरीर में रक्त का संचार शुद्ध होता है। कब्ज की शिकायत दूर होती है। मोटापा, कमरदर्द दूर करने के साथ ही सूर्य नमस्कार के आसन शरीर को लचीला बनाते है। सीना, हाथ और शरीर के सारे अंगों को इससे लाभ होता है और मानसिक शांति मिलती है। सूर्य नमस्कार विभिन्न आसनों का योग है इसका प्रभाव सभी अंत ग्रंथियों (Endocrine Glands)पर पड़ता है और शरीर के शक्तिचक्र सक्रीय होते हैं। इससे पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

कैसे करें सूर्य नमस्कार का अभ्यास ...

सूर्य उर्जा का अक्षय भंडार है, लाखों वर्षों से देश में सूर्य आराधना का प्रचलन है। सूर्य आराधना विशिष्ट मन्त्रों के साथ श्वास-प्रश्वास को संतुलित करते हुए की जाती है जो की बहुत प्रभावशाली होती है। पहले आज आपको सूर्य नमस्कार में श्वास-प्रश्वास का नियमन और आसनों के बारें में बता रहे हैं, इसके बाद आसनों के साथ उपयोग किये जाने वाले मन्त्रों के बारें में आपको जानकारी देंगे।

पहले सीधे सावधान की मुद्रा में और दोनों हाथ प्रणाम करने की मुद्रा में करके खड़े हो और श्वास को सामान्य रखें।

दूसरी स्थिति में श्वास भरते हुए (INHALE) दोनों हाथों को ऊपर की तरफ ले जाए और पीछे की तरफ झुकें।

तीसरी स्थिति में श्वास छोड़ते हुए (EXHALE) करते हुए, दोनों हाथों को पैरों के पास रखें। आसन करते समय कोई भी आसन झटके में न करें, लयबद्ध तरीकें से करें।

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चौथी स्थिति में श्वास भरते हुए (INHALE) बाएं पैर को पीछे ले जाएं। दाहिने पैर को मोड़कर आगे की तरफ रखें, सिर पीछे की तरफ ले जाएं और दोनों हाथों की गदेलियाँ जमीन पर और दृष्टि आकाश की तरफ होनी चाहिए।

पांचवें आसन में श्वास छोड़ते हुए, दाए पैर को पीछे ले जाएं। श्वास भरकर कमर और नितम्ब का भाग उठाएं गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी के कंठ कूप में लगाएं। इस दौरान दोनों पैरों की एड़ियां जमीन पर आपस में मिली होनी चाहिये। इस आसन में शरीर पर्वताकार स्थिति में होता है। इस स्थिति में यथाशक्ति रुके और श्वास को स्थिर(HOLD BREATH) रखें।

छठें आसन में श्वास छोड़ते हुए घुटने, छाती, नाक को जमीन से स्पर्श करें, ध्यान रहे सिर्फ स्पर्श करना है जमीन पर लेटना नहीं है। थोड़ी देर इस अवस्था में रुकें।

सातवें स्थिति में श्वास भरते हुए गर्दन को ऊपर उठाएं इसी स्थिति में फुफकार मारते हुए श्वास को मुंह से छोड़े। श्वास भरते हुए हाथ के बल शरीर को पेडू(पेल्विक) तक ऊपर उठाये। दृष्टि आकाश की तरफ रखे। श्वास मुंह से ले, घुटने जमीन को स्पर्श करते रहे और पैरों के पंजे खड़े रहें। इस स्थिति को योग में भुजंगासन कहते हैं।

आठवें आसन में श्वास छोड़ते हुए नितम्ब को ऊपर उठाएं नाभि को देखे, दोनों एड़ियां आपस में मिली हुई और जमीन को स्पर्श करती हुई स्थिति में और दोनों हाथ जमीन पर रखते हुए श्वास को स्थिर करें।

नौंवीं स्थिति में श्वास भरते हुए दाए पैर के पंजे को दोनों हाथों के बीच में लाये, छाती को खींचकर आगे लाये, गर्दन को पीछे की तरफ ले जाए, टांग सधी हुई रहे और पैर का पंजा खड़ा हुआ रहे इस स्तिथि में कुछ देर स्थिर(HOLD) हो।

दसवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए बाएं पैर को दाए पैर के पास रखे, कमर तक खड़े होकर सिर नीचे की तरफ झुकाए, दोनों हाथो को पैरों के पंजे के पास रखें।

ग्यारहवी स्थिति में श्वास भरते हुए, दोनों हाथो को ऊपर की तरफ ले जाए और पीछे की तरफ यथाशक्ति झुकें।

बारहवी स्थिति में श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को प्रणाम की स्तिथि में वापस लाएं।

इन बारह आसनों का अभ्यास एक चक्र (आवृत्ति) कहा जाता है। धीरे-धीरे इनका अभ्यास करें और प्रतिदिन एक आवृत्ति बढ़ाते जाए, बारह आवृत्ति तक अभ्यास करें।

सूर्य नमस्कार सुबह के समय खाली पेट करें और सूर्य नमस्कार करने से पहले सूक्ष्म क्रियाये और यौगिक क्रियायों का अभ्यास कम से कम 30 मिनट तक करें। उसके बाद ही सूर्य नमस्कार के आसनों को करें। सूर्य नमस्कार में श्वास-प्रश्वास का संतुलन महत्वपूर्ण है, इसका ध्यान रखे साथ ही जिन लोगों को स्लिप डिस्क, सर्वाइकल से सम्बन्धित दिक्कते है वो लोग ये आसन न करें। आसन करते हुए शरीर पर ज्यादा जोर न डाले जितना सहजता से शरीर आसन कर सकें, सिर्फ उतना ही करें।

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