शहीदों की धरती से भाई-चारे की अनूठी मिसाल, हिंदू और मुस्लिम भाई मिलकर लॉकडाउन में कर रहे गरीबों की मदद

लॉकडाउन के दौरान ‘सद्भावना रसोई’ चलाकर राधारमण मिश्रा और साजिद खान गरीबों की मदद कर रहे हैं। कहते हैं- ‘किसी को भूखे खाली पेट नहीं सोने देना है।’

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- रामजी मिश्रा, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के तिलहर में रहने वाले साजिद अली खान और राधा रमण मिश्र लाकडाउन में गरीबों की मदद कर रहे हैं। इन दोनों ने मिलकर तमाम विपरीत परिस्थितियों को परास्त कर अपनी जानकारी में किसी को भूंख से सोने नहीं होने दिया।

साजिद अली खान से बताया, "मैंने लाकडाउन में सोंचा कि हम लोग तो कैसे भी करके यह कठिन समय निपटा लेंगे लेकिन जो कामगार हैं उनका क्या होगा? जो आदमी रिक्शा चलाकर पेट भरते हैं वे परेशान ना हों इसके लिए मैंने और मेरे भाई राधारमण मिश्र ने मिलकर लोगों की मदद की। इस दौरान हमने कोई फोटोग्राफी नहीं होने दी। हालाँकि कई बार प्रशासन के लोग ऐसा करने को कहते थे लेकिन हम मना कर देते थे।"

राधारमण मिश्र बताते हैं, "जब हमने देखा कि लाकडाउन लग गया है तो मैं उन लोगों के बारे में सोंच रहा था जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित थे। इसके बाद मैं साजिद अली खान से मिला, जो मेरे बड़े भाई हैं। हमसे अधिकारियों द्वारा कहा गया कि अगर आप लोगों को भोजन आदि वितरण कराते हैं तो इसका एक कोई नाम देना होगा तो हमने इसे 'सद्भावना रसोई' का नाम दे दिया। हमारे इस काम को देखकर बहुत से लोग हमारे साथ आए और उन लोगों ने बहुत अधिक शारीरिक श्रम किया जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता।"



राधारमण बताते हैं कि उन्होंने हर दिन ढाई से तीन हजार पैकेट खाने और सूखे राशन का वितरण किया। साजिद अली खान, राधा रमण के भाई हैं इस बात पर राधा रमण ने कहा कि यह वह धरती है जहाँ से पूरे देश को आजादी की क्रांति में शहीदों की धरती का दर्जा मिला है। हम उसी देश उसी जिले के रहने वाले हैं और हम सब आपसी भाईचारा के साथ ही रहते हैं। राधारमण मिश्र पेशे से किसान हैं।

साजिद अली खान और राधारमण मिश्र ने सड़क पर निकल रहे प्रवासी मजदूरों की भी खूब मदद की। इसके अलावा वह अभी भी आस पास के गरीबों के लिए राशन के पैकेट बांट रहे हैं। ये दोनों लोगों के दरवाजे पर दस्तक देते हैं और मदद देकर चुपचाप वहाँ से आगे बढ़ जाते हैं। अगर किसी घर से कोई उत्तर नहीं मिलता है या उसमें देरी होती है तो वे जरूरी सामान के पैकेट दरवाजे के अंदर रखकर आगे बढ़ जाते हैं। कई बार लोगों को यह भी नहीं पता चलता है कि उन्हे यह मदद कर के कौन गया है?


साजिद अली खान कहते हैं, "यह जनपद शहीदों की नगरी है। अगर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह आपस में भाई-भाई हो सकते हैं तो हम भी उसी धरती से हैं। यह देश उन्ही से प्रेरणा लेता है। यहाँ तो सब ऐसे ही एकता के साथ रहते हैं।"

शहीदों की नगरी कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर में शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह की दोस्ती आज भी सबसे अनूठी मिसाल है। अशफाक उल्ला खान के पौत्र अशफाक बताते हैं कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान एक साथ एक थाली में भोजन करते थे। देश में आज भी आपसी भाईचारा और एकता कायम है। यहीं भाईचारा देश की सबसे बड़ी मजबूती है।

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