उत्तराखंड आपदा : 300 किमी दूर हिमाचल के लाहौल और स्पीति में खतरे की घंटी

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में आई प्रलयकारी बाढ़ से हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति के तांडी और गौशाल पंचायत के लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। इस बाढ़ की वजह तो अभी तक पता नहीं चल पाई है लेकिन माना जा रहा है कि ये बाढ़ या तो ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने या फिर भूस्खलन की वजह से आई है। हिमाचल प्रदेश के तांडी और गौशाल पंचायतों के ग्रामीण बैठकें कर रहे हैं, ग्राम सभाओं ने इस इलाके में प्रस्तावित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास किए हैं।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   9 Feb 2021 3:50 PM GMT

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उत्तराखंड आपदा : 300 किमी दूर हिमाचल के लाहौल और स्पीति में खतरे की घंटी

निधि जम्वाल और मेघा प्रकाश

वो सुबह, सर्दियों की किसी दूसरी सुबह की तरह ही थी। चमोली के जोशीमठ इलाके में सुभाई गांव के रामकृष्ण खंडवाल अपने घर से बाहर आए। इसके बाद उन्होंने जो देखा उससे वो अंदर तक हिल गए। नंदा देवी की सुदूर पहाड़ियों से धूल का एक बड़ा गुबार निकल रहा था।

"चूंकि बांध का काम चल रहा था, तो मैंने सोचा कि किसी तरह की डंपिंग की वजह से धूल का गुबार उठ रहा है," खंडवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया। "कुछ ही समय में, हम ग्रामीणों ने एक ज़ोरदार आवाज़ सुनी। तेज़ी से आ रहे बाढ़ के पानी के साथ-साथ बर्फ़ बड़े-बड़े टुकड़े आ रहे थे, हमारे पैरों के नीचे की ज़मीन घरघराहट होने लगी। हमने देखा कि ऋषिगंगा नदी [धौलीगंगा की एक सहायक नदी] अपने उफान पर थी," उन्होंने कहा, "जल्द ही, सुभाई में भविष्य बद्री मंदिर टूट कर बाढ़ बह गया।"

उत्तराखंड में बचाव और राहत कार्य जारी है, जहां 7 फ़रवरी की सुबह एक आपदा ने भयंकर तबाही मचाई। संभवतः ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने या भूस्खलन के कारण, अलकनंदा नदी (जो आगे चलकर भगीरथी के साथ मिलकर गंगा नदी का रूप ले लेती है) की एक सहायक नदी धौलीगंगा में जल का स्तर एकाएक बढ़ गया। इसकी वजह से दो जल विद्युत परियोजनाओं - ऋषि गंगा विद्युत परियोजना और तपोवन विष्णुगाड विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा है।

इस तबाही के बाद अब तक कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई, जबकि 200 से ज़्यादा लोग अभी भी लापता हैं। भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कर्मियों और एनडीआरएफ के जवान फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए अब भी काम कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक कुछ लोगों की जल विद्युत परियोजना की सुरंग में फंसे होने की आशंका है।


जब खंडवाल अपनी आंखों के सामने तबाही का वो मंज़र देख रहे थे, तो वहां से 300 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के एक जनजातीय जिले, लाहौल और स्पीति में, गौशाल पंचायत के ग्रामीण अपनी नियमित बैठक के लिए इकट्ठे हो रहे थे।

गौशाल पंचायत के पूर्व प्रधान मेघ सिंह राणा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "चंद्रभागा बेसिन में लगभग 56 छोटी, मध्यम और बड़ी पनबिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। जब हमने उत्तराखंड की आपदा के बारे में सुना, उस वक्त हम इन परियोजनाओं का विरोध करने की योजना तैयार करने के लिए अपनी नियमित बैठक कर रहे थे।"

उन्होंने आगे कहा, "उत्तराखंड की बाढ़ हमारे सामने एक जीवंत उदाहरण है। इससे हमें पता चला कि विकास के नाम पर पहाड़ियों में अंधाधुंध विस्फोटों के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।

इसी बीच, 7 फ़रवरी को ही प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध करने के लिए, लाहौल स्पीति की तांडी ग्राम पंचायत (11 गांवों की पंचायत) में ग्रामीणों की एक और बैठक हुई। इन परियोजनाओं का विरोध करने के लिए कई पंचायतें एकजुट हो रही हैं, ख़ासकर उत्तराखंड त्रासदी के बाद।

स्थानीय संगठन सेव लाहौल स्पीति के उपाध्यक्ष, विक्रम कटोच ने गाँव कनेक्शन को बताया, "लाहौल और स्पीति में चंद्रा और भागा नदियों पर कई बांध प्रस्तावित हैं। तांडी में इन दोनों नदियों का संगम होता है और यहां से आगे ये दोनों नदियां चिनाब कहलाती हैं।" उन्होंने आगे कहा, "चिनाब पर भी कई परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। गौशाल और तांडी गांव, चिनाब के दोनों ओर स्थित हैं। लोगों को डर है कि बांध परियोजनाओं से उनकी नदी, पहाड़ और उनके देवताओं के निवास को नुकसान होगा।"

इन सभी बांध परियोजनाओं में पहाड़ियों के विस्फोट और ड्रिलिंग, और पहाड़ों में सुरंगों के निर्माण की आवश्यकता होती है। "हमने देखा है कि हमारे किन्नौर जिले में क्या हुआ, जहां बड़ी संख्या में ऐसी परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। सारा मलबा नदियों के किनारे बहा दिया जाता है, जो उनमें बह जाता है। नदियां मर रही हैं," विक्रम ने आगे कहा।


अब तक लाहौल और स्पीति में किसी भी प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं पर कोई निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। दिसंबर 2020 में, चंद्रभागा बेसिन में तीन परियोजनाएं - 104 मेगावाट तांडी, 130 मेगावाट राशिल और 267 मेगावाट सच खास - को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को दिया गया था।

तब से ग्रामीण इस क्षेत्र में बांध परियोजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पहले भई वो प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए NoC से इनकार कर चुके हैं।

तांडी पंचायत के वीरेंद्र कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "कुछ दिन पहले, हमारी पंचायत ने 104 मेगावाट की तांडी परियोजना के निर्माण के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था। उस समय हमें नहीं पता था कि उत्तराखंड में कोई आपदा आ सकती है।" उन्होंने आगे कहा, "अब हम विकास और प्रगति के नाम पर हमारी नदियों और पहाड़ों को नष्ट नहीं होने देंगे।"

ग्रामीणों ने इस क्षेत्र में प्रस्तावित बांधों के खिलाफ एक और प्रस्ताव पारित करने की योजना बनाई है और इस प्रस्ताव को राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।

लाहौल और स्पीति एक आदिवासी जिला है, और इसे एक ठंडे रेगिस्तान के रूप में भी जाना जाता है। यहां काफी कम बारिश होती है और ग्रामीण एक वर्ष में मुश्किल से एक फसल ही पैदा कर पाते हैं। गौशाला पंचायत की प्रधान सुशीला राणा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से स्प्रिंग्स और कुछ ल निकायों पर निर्भर हैं। ये स्प्रिंग्स पहले से ही सूख रहे हैं।"

सुशीला राणा ने आगे कहा, "बांधों और सुरंगों के निर्माण के लिए पहाड़ियों को नष्ट करने से हमारे जल स्रोतों को और नुकसान हो सकता है। हम पहले ही पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। हम बांध परियोजनाओं के लिए NoC नहीं देंगे।"


तांडी से लगभग 45 किलोमीटर दूर लाहौल स्पीति की उदयपुर पंचायत के उदयपुर गाँव के निवासी ही राम ने बताया, "एक दशक पहले, शैली जलविद्युत परियोजना के सर्वेक्षण में पता चला था कि साठ हजार पेड़ काटे जाएँगे। यह संख्या कम से कम एक लाख हो गई होगी, अब ऐसा विकास कौन चाहता है?"

हिमधारा एनवायरमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव के प्रकाश भंडारी ने कहा, "उत्तराखंड में हाल ही में हुई आपदा ने लाहौल और स्पीति के लोगों को डरा दिया है। इसलिए वे इन परियोजनाओं का विरोध करने के लिए एक साथ आ रहे हैं।"

अतीत में, लाहौल और स्पीति के आदिवासी ग्रामीणों ने अपने क्षेत्र में प्रस्तावित बांध परियोजनाओं के विरोध में कई अभियान चलाए हैं। हालिया उत्तराखंड आपदा ने केवल उनके संकल्प को मजबूत किया है।

ख़बरों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश की कुल मांग 27,400 मेगावाट की है, जिसमें से केवल 10,519 मेगावाट का ही उत्पादन हो रहा है। अधिकांश परियोजनाएँ लाहौल-स्पीति, किन्नौर और चंबा जिलों में प्रस्तावित हैं।

इस बीच, उत्तराखंड के चमोली जिले में आईटीबीपी और एनडीआरएफ की टीमें लोगों को बचाने की कोशिश कर रही हैं। जोशीमठ के निवासी वैभव सकलानी अपने रिश्तेदार का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें आखिरी बार तपोवन सुरंग के पास देखा गया था। सकलानी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि पानी का स्तर तीस से चालीस फीट तक बढ़ गया था और यह सड़क पर आ गया था।

सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का एक पुल नष्ट हो गया है। 11 गाँवों से संपर्क टूट गया है। भंडारी ने कहा कि टेलीफोन नेटवर्क खराब हैं और चूंकि यह नीती घाटी सीमा के करीब है, इसलिए इन गांवों में मोबाइल कनेक्शन नहीं पहुंचे हैं। जिन गांवों से संपर्क टूट गया है, उनमें गाहर, भांग्यू, रैनी पल्ली, पांग लता, सुरईहोता, तोलमा और फगरासु शामिल हैं।

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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