साक्षात्कार: "हमें पर्यावरण विमर्श को संसद तक ले जाने और एक नया EIA क़ानून विकसित करने की जरूरत है"

पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA 2020) मसौदे के साथ क्या-क्या समस्याएं हैं? क्यों इसका विरोध किया जा रहा है? गांव कनेक्शन की पर्यावरण संपादक निधि जम्वाल ने पर्यावरण, सततता और प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय मंच (iFOREST) के सीईओ चंद्र भूषण से इस मसले पर बात की।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   20 Aug 2020 6:40 AM GMT

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साक्षात्कार: हमें पर्यावरण विमर्श को संसद तक ले जाने और एक नया EIA क़ानून विकसित करने की जरूरत है

गांव कनेक्शन: EIA-2020 मसौदे को लेकर मुख्य समस्याएं क्या हैं?

चंद्र भूषण: EIA-2020 मसौदा मौजूदा EIA-2006 की जगह लेगा, जो परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी देता है। नए मसौदे को लेकर प्रमुख आलोचना यह है कि इसमें जनता की भागीदारी के दायरे को कम किया गया है। नई अधिसूचना में विभिन्न परियोजनाओं की एक लंबी सूची पेश की गई है जिसमें 'पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन' EIA अध्ययन की जरूरत नहीं होगी। इसके साथ ही उन कंपनियों को भी क्लीयरेंस प्राप्त करने का मौका दिया जाएगा जो पहले से ही पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करते आ रहे हैं। इन परिवर्तनों के महत्त्व को समझने के लिए हमें 2006 की अधिसूचना को देखना होगा।

गांव कनेक्शन: 2006 की EIA अधिसूचना से इसका क्या संबंध है?

चंद्र भूषण: 2006 की EIA अधिसूचना संभवत: आज तक का सबसे संशोधित पर्यावरणीय क़ानून है। पिछले 14 सालों में इसे 43 बार संशोधित किया जा चुका है। इसके लिए कम-से-कम 350 पन्नों का 50 कार्यालीय ज्ञापनों को जारी किया गया है। इसमें कई परिवर्तनों ने कई उद्योगों के लिए मूल नियमों में बदलाव या उसे समाप्त कर दिया है।

2020 का मसौदा, इन संशोधनों को वृहद परिप्रेक्ष्य में एक साथ लाता है। इसलिए 2020 का यह संस्करण मौजूदा व्यवस्था से थोड़ा खराब है। जब मैं 2020 में प्रस्तावित मसौदे की आलोचना करता हूं तो इसका अर्थ यह नहीं कि मैं 2006 की अधिसूचना को बनाए या उसमें सुधार करने के पक्ष में नहीं खड़ा हूं, क्योंकि मौजूदा अधिसूचना की ख़ामियां EIA प्रक्रिया के साथ जुड़ी गंभीर समस्याओं को हल करने नहीं दे रही हैं।

गांव कनेक्शन: आपको क्यों लगता है कि मौजूदा EIA क़ानून काम नहीं कर रहा है?

चंद्र भूषण: सबसे पहले, कोई भी परियोजना को लेकर EIA पर पूरी तरह निर्भर होना एक बुरा विज्ञान है। पर्यावरण सभी गतिविधियों से प्रभावित होता है, जिसे EIA समझने में विफल साबित होता है। यहां तक की कोई परियोजना सभी मापदंडों को पूरा करती है, फिर भी उनके संचयी प्रभाव पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सिंगरौली से कोरबा तक और वापी से पाटनचेरू तक, देश के अधिकांश खनन और औद्योगिक क्षेत्रों में यह स्पष्ट रूप से दिखता है।

दूसरा, EIA रिपोर्ट जिस सलाहकार द्वारा तैयार किया जाता है, उसे परियोजना प्रस्तावक कंपनी भुगतान करती है। यह साफ़ तौर पर हितों में टकराव पैदा करता है। इसलिए अधिकांश EIA रिपोर्ट उस कागज के लायक भी नहीं जिस पर वो लिखे गए हैं। मुझे अभी तक एक भी रिपोर्ट ऐसी नहीं मिली है जो यह कहती हो कि यह परियोजना महत्वपूर्ण पारिस्थितिक प्रभावों का कारण बनेगी।

EIA एक महत्वपूर्ण कानून है जो औद्योगिक और विकासात्मक परियोजनाओं द्वारा भूमि-उपयोग परिवर्तन, पानी की निकासी, प्राकृतिक संसाधनों के विनियोग को मंजूरी देता है।

गांव कनेक्शन: जन-सुनवाई को लेकर भी चिंताएं हैं, वो क्या हैं?

चंद्र भूषण: जन-सुनवाई की प्रक्रिया, जिसे परियोजना से प्रभावित लोगों की चिंताएं को ध्यान में रखना आवश्यक होता है, बस दिखावा है। यह न तो कोई परामर्श है और न ही सहमति है। ज्यादातर समय, इसे पुलिस बल की उपस्थिति में आयोजित किया जाता है और इसमें शारीरिक हिंसा कोई असामान्य घटना नहीं है।

अभी भी, प्रभावित समुदाय की चिंताओं को विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों द्वारा एक सरसरी निगाहों से निपटा दिया जाता है। आमतौर पर ये समितियां कंपनियों से कुछ निवेश करने, जैसे- स्कूल लगाने या समुदाय को खुश करने के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने को कहती हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इन ख़र्चों को 'कॉरपोरेट एनवायरनमेंटल रिस्पॉन्सिबिलिटी' का नाम देकर औपचारिक रूप दे दिया है। कंपनियों को इसके तहत 0.125 से लेकर 2 फीसदी पूंजी निवेश करने के निर्देश दिए गए हैं।

अंत में अधिकारियों द्वारा कंपनियों पर लगाए गए पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी शायद ही कभी की जाती है। कंपनियों द्वारा इसे लेकर खुद से ही साल में दो बार रिपोर्ट पेश की जाती है, जिसे 2020 के मसौदे में वार्षिक कर दिया गया है।

गांव कनेक्शन: तो EIA और पर्यावरण मंजूरी कानून देश में ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है?

चंद्र भूषण: बात यह है कि भारत में मौजूदा EIA और पर्यावरण मंजूरी कानून दोषपूर्ण है। इसमें बहुत सारी कागजी कार्रवाई शामिल हैं, लेकिन इससे जमीन पर बहुत कम सुधार हुआ है। 99.9 फीसदी परियोजनाओं को मंजूरी मिल जाती हैं जो सुरक्षा उपायों का पालन नहीं करती हैं।

उत्तराखंड के देहरादून में यमुना का अवैध खनन। फोटो: SANDRP

गांव कनेक्शन: यह वास्तव में गंभीर चिंताएं हैं। हम देश में EIA क़ानून को कैसे सुधार सकते हैं?

चंद्र भूषण: हमें पर्यावरण और सामुदायिक सुरक्षा के साथ-साथ उद्योगों में निवेश जोखिमों को कम करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मजबूत और पारदर्शी प्रक्रियाओं वाले EIA क़ानून की जरूरत है। यह तीन अवधारणाओं को एकजुट करके प्राप्त किया जा सकता है।

पहला कदम रणनीतिक पर्यावरणीय आंकलन से है। इस तरह के आंकलन से नीतियों और योजनाओं के पारिस्थितिक जटिलताओं के मूल्यांकन करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया के शुरुआती चरण में चिंताओं को दूर करने में मदद मिलेगी। कई देशों ने नीति-निर्माण में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को एकीकृत करने के लिए रणनीतिक पर्यावरणीय आंकलन को अपनाया है।

दूसरा क्षेत्रीय नियोजन दृष्टिकोण है। इसमें क्षेत्र विशेष की क्षमता का अध्ययन और उसके आधार पर ही क्षेत्रीय योजनाओं को विकसित करना शामिल है। इससे हमें संचयी प्रभावों को ध्यान रखने में मदद मिलेगी और पहले से ही परियोजनाओं का स्थान तय करने के लिए प्रस्तावक कंपनी को जानकारी मुहैया कराई जा सकेगी।

तीसरा, परियोजना विशिष्ट- EIA है। इसमें बड़ी परियोजनाओं के लिए EIA किया जाना चाहिए, जबकि छोटे परियोजना के लिए EIA करना EIA प्रक्रिया के साथ मज़ाक है। यहां पर सबसे ज़्यादा ध्यान पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं और 'पोस्ट-क्लियरेंस' को बेहतर बनाने पर होना चाहिए। EIA रिपोर्ट की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सलाहकारों और विशेषज्ञ समितियों को स्वतंत्र आंकड़ा उपलब्ध कराने के लिए पर्यावरण सूचना केंद्र स्थापित की जानी चाहिए।

तीनों प्रक्रियाओं में जांच एवं सुधार के लिए सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

गांव कनेक्शन: इन हस्तक्षेपों के अलावा, देश में EIA की बहस पर आपकी कोई और टिप्पणी?

चंद्र भूषण: EIA प्रक्रिया पर्यावरण क़ानून का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इससे विकास के टेढ़े-मेढ़े रास्तों को तय करने की गुजाइंश है। इतने महत्वपूर्ण क़ानून को लेकर संसद में कभी भी बहस नहीं हुई है। अब यह समय आ गया है कि इसे लेकर संसद में बहस हो और 21 वीं सदी के लिए एक उपयुक्त क़ानून विकसित किया जाए।

अनुवाद - दीपक कुमार

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