पेरिस समझौते से क्यों हटा अमेरिका, अब कैसे पूरा होगा क्लाइमेट चेंज का लक्ष्य?

गाँव कनेक्शन | Jun 02, 2017, 10:43 IST
Paris climate deal
वाशिंगटन। अमेरिका ने 2015 में हुए जलवायु परिवर्तन पर खुद को अलग कर लिया है। इस दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है।

चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे और चीन के साथ वह आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा और अमेरिका पर वित्तीय बढ़त हासिल कर लेगा।

व्हाइट हाउस के रोज गार्डन से फैसले की घोषणा करते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्हें पिट्सबर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित किया गया है ना कि पेरिस का। उन्होंने कहा कि वह अमेरिका के कारोबारी और कामगारों के हितों की रक्षा करने के लिए यह निर्णय ले रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘मैं हर दिन इस देश के अच्छे लोगों के लिए लड़ रहा हूं इसलिए अमेरिका और उसके नागरिकों की रक्षा करने के अपने गंभीर कर्तव्य को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हटेगा लेकिन उन शर्तों के साथ पेरिस समझौते या पूरी तरह से नए समझौते पर बातचीत शुरू करेगा जो अमेरिका, उसके उद्योगों, कामगारों, लोगों और करदाताओं के लिए उचित हों।’ ट्रंप ने कहा, ‘हम इससे बाहर हो रहे हैं लेकिन फिर से बातचीत शुरू करेंगे और हम देखेंगे कि क्या हम एक ऐसा समझौता कर सकते हैं जो उचित हो। अगर हम कर सकें तो यह अच्छा होगा और अगर नहीं कर सकें तो भी कोई बात नहीं। राष्ट्रपति के तौर पर मैं अमेरिकी नागरिकों के भले से पहले किसी और चीज के बारे में नहीं सोच सकता।'

उन्होंने आरोप लगाया कि दुनिया के प्रमुख प्रदूषक देशों पर सार्थक अनुबंध नहीं लगाए गए। उदाहरण के लिए इस समझौते के तहत चीन 13 साल की बड़ी अवधि तक इन उत्सर्जनों को बढ़ाने में सक्षम हो जाएगा। उन्होंने कहा, ‘वे 13 वर्षों तक जो चाहते हैं वो कर सकते हैं लेकिन हम नहीं।’

ट्रंप ने पृथ्वी के भविष्य के लिए भूल की : इमेन्युएल मैक्रॉन

ट्रंप के फैसले पर प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। फ्रांस के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इमेन्युएल मैक्रॉन ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से अलग हो कर ऐतिहासिक भूल की है। मैक्रान ने कहा, ‘ट्रंप ने ‘अपने देश के हितों के लिए भूल और पृथ्वी ग्रह के हितों के लिए गलती की है।' उन्होंने 2015 के समझौते को फिर से तैयार करने के ट्रंप के विचार का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम किसी भी तरह से कम महत्वाकांक्षी समझौते पर बातचीत करने के लिए राजी नहीं होंगे, जैसा कि वर्तमान में है।'

वहीं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रुदू ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फोन करके अमेरिका को पेरिस समझौते से अलग करने के उनके फैसले पर अपनी निराशा जताई की। उनकी बातचीत के मुताबिक, त्रुदू ने जलवायु परिर्वतन की समस्या का निदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम करते रहने की अपनी मंशा से भी उन्हें अवगत करा दिया।

क्या है पेरिस समझौता?

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का मतलब है उद्योगों और कृषि कार्यों से उत्सर्जित होने वाली गैसों से पर्यावरण पर होने वाले नकारात्मक और नुक़सानदेह असर। 2015 में हुए पेरिस क्लाइमेट चेंज समझौता का उद्देश्य इस असर को कम करना था। इसके लिए कार्बन एमिशन में कमी लाकर ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस तक नीचे लाने का लक्ष्य था। इस समझौते में 195 देश शामिल थे। इसमें अमेरिका को 26% कार्बन एमिशन कम करने के लक्ष्य दिया गया था।

अमेरिका के हटने से क्या होगा असर

अमेरिका सबसे बड़ा कार्बन एमिशन करने वाला देश है। उससे अलग होने से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन कम करने की कोशिशों को झटका लगेगा। समझौते के मुताबिक अमेरिका गरीब देशों को फंडिंग भी कर रहा था तो अब इस फंडिंग में असमंजस रहेगा।

इनपुट- भाषा

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