अपना स्कूलः भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक नई पहल

Neetu Singh | Feb 14, 2018, 12:20 IST
kanpur
नीतू सिंहभारती सचान

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। प्रदेशभर में ईंट भट्ठों पर काम करने वाले लाखों मजदूरों के बच्चे पूरे साल की शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इस दिशा में कानपुर में ईंट भट्ठों पर काम करने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए 'अपना स्कूल' करके कई विद्यालय खोले गये हैं।

उत्तर प्रदेश में लगभग 1800 ईंट-भट्टे चलते हैं, जिसमें 80 लाख मजदूर काम करते हैं। यहां पर काम कर रहे मजदूरों के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पाती है क्योंकि भट्टों पर नवम्बर से जून तक ही काम चलता है। बीच सत्र में इन बच्चों का किसी भी सरकारी स्कूल में प्रवेश नहीं हो पाता है, जिसकी वजह से ये बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

कानपुर में इन बच्चों के लिए 30 वर्षों के निरंतर प्रयास से अब तक 20 'अपना स्कूल' खुल गये हैं, जिसमे 25-30 भट्टों के लगभग 700 बच्चे प्रतिदिन पढ़ने आते हैं। कानपुर में 280 ईंट-भट्टे हैं। एक ईंट भट्टे पर 80-100 परिवार काम करते हैं। ईंट-भट्टों पर रहने वाले परिवार ज्यादातर बिहार के मुसहर समुदाय से हैं। इनके बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं। ये बच्चे भी शिक्षा की ओर अग्रसर हो, इस दिशा में विजया चंद्रन (72 वर्ष) ने 30 वर्ष पहले अपने घर में ही इन बच्चों के लिए एक स्कूल की शुरुवात की थी।

कानपुर रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में आईआईटी हाउसिंग सोसाइटी के गोपालपुर मोहल्ले में रहने वाली विजया चंद्रन बताती हैं, ‘‘ये बच्चे भी पढ़ाई करें। इसके लिए मैंने वर्ष 1986 में अपने घर में ही स्कूल खोला। वर्षों बाद कानपुर में बिहार से पलायन करके आ रहे ईंट-भट्ठों के मजदूरों के बच्चों के लिए 'अपना स्कूल' करके एक के बाद एक करके 20 स्कूल खोल दिए। अपना स्कूल में अब तक 20 हजार बच्चे पढ़ चुके हैं।’’

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