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बदला सा होगा परिषदीय विद्यालयों का नजारा

Bidyut Majumdar | Sep 16, 2016, 16:09 IST
India
लखनऊ। परिषदीय स्कूलों में इस बार नया सत्र अप्रैल से शुरू हो रहा है और इस बार के शैक्षिक सत्र में कई बदलाव भी किए जाएंगें, जिससे परिषदीय स्कूलों की गिरती शिक्षा स्तर को बढ़ाया जा सके।

प्राथमिक स्कूलों में अभी तक बच्चे जहां जमीन पर बैठते थे इस नए शिक्षा सत्र से उन्हें बैठने के लिए मेज और बेंच दी जाएगी। इससे उनमें काफी उत्साह भी है और स्कूल का माहौल भी निजी स्कूलों की तरह अच्छा होगा।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूर मुबारकपुर प्राथमिक विद्यालय के अध्यापिका कंचन सिंह बताती हैं, ‘’अभी तक बच्चों को जमीन पर बैठना पड़ता था। इससे जब वो झुककर लिखते थे और पढ़ते थे तो उनकी गर्दन और कमर पर असर पड़ रहा था। कई जिलों के स्कूलों ने शिक्षा विभाग से इस बारे में मांग की थी। अब अगर ऐसा हो जाता है तो ये अच्छी बात होगी।”

बेसिक शिक्षा विभाग के अनुसार प्रदेश में 1 लाख 36 हजार 174 विद्यालय हैं और इनमें लगभग 2 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। अभी तक इन बच्चों को बैठने के लिए सरकार टाट उपलब्ध कराती थी। लेकिन अब नए शिक्षा सत्र में ऐसे कई बदलाव हुए हैं,जिनसे अध्यापकों और बच्चों में खुशी है। टेबल और बेंच के साथ ही इस बार से परीक्षा नियमों में भी बदलाव किया गया है अब से सरकारी स्कूलों में परीक्षाएं भी बोर्ड की तर्ज पर होगीं।

‘’इस बार की परीक्षाएं पहले से बिल्कुल अलग हुई हैं, बच्चों को रिजल्ट भी अच्छे से दिया जाएगा। इस तरह के प्रयासों से बच्चों में पढ़ाई को लेकर रूझान बढ़ता है और वो अच्छा रिजल्ट देने की कोशिश करेगें।” लखनऊ से लगभग 15 किमी दूर प्राथमिक विद्यालय गदिया की अध्यापिका सुषमा सिंह बताती हैं। लखनऊ के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी बताते हैं, ‘’इस बार से कई छोटे बड़े बदलाव किए जा रहे हैं, सत्र निजी स्कूलों की तरह एक अप्रैल से शुरू किया जा रहा है, जैसे कॉपी किताबों के साथ छात्रों को बैग भी बांटे जाने की योजना बनाई जा रही है।

सीमित संसाधनों में भी दी जा सकती है बेहतर शिक्षा

लखनऊ। कम संसाधनों में भी अच्छी गुणवत्ता और बेहतर सुविधाएं दी जा सकती हैं इसके लिए सरकारी स्कूल के शिक्षकों को दिल्ली में तीन दिवसीय कार्यशाला में अपने अनुभवों को बांटने का अवसर दिया गया।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली में तीन दिन की कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के छह शिक्षकों को भी शामिल किया गया। अलग अलग राज्यों से आए शिक्षाविदों और शिक्षकों ने बताया कि कैसे शिक्षा में सामाजिक सहभागिता को बढ़ाना जरूरी है। इसके साथ ही विद्यालय प्रबंध समितियां जो एक बड़ा रोल अदा कर सकती हैं उनके सक्रिय हो जाने से कितनी परेशानियां कम हो सकती हैं।

बारांबकी जिले के प्राथमिक विद्यालय गुलेहरिया के अध्यापक सुशील कुमार कार्यशाला में उपस्थित रहे। वो बताते हैं, ‘’इसका उद्देश्य केवल शिक्षा स्तर को सुधारना और स्कूलों में सामुदायिक सहभागिता को बढ़ाना है। ऐसे शिक्षक जिन्होनें कुछ शिक्षा क्षेत्र में कुछ अच्छा किया हो उन्हें इसमें शामिल किया गया था। हमारे विद्यालय में जैसे बच्चों को पढाऩे के लिए किताबें, मेज कुर्सियां, खाने के लिए बर्तन, साफ पानी और अच्छा माहौल मिलता है जिससे उनका विकास तेजी से हो रहा है। ऐसी ही तकनीक सभी स्कूलों को अपनानी चाहिए।” विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों को भी कार्यशाला में सम्मिलित किया गया था। ये वो कड़ी है जो अगर मजबूत हो जाए तो शिक्षक स्कूल में अपनी मनमानी कर ही न पाए।

देशभर में शैक्षिक गणना करने वाली संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन सूचना प्रणाली डीआईएसई की रिपोर्ट 2013-14 के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 1,53,220 है और माध्यमिक स्कूलों की संख्या 31,624 है। इन सभी स्कूलों में एक एक समिति होती है।

बाराबंकी के बीएसए पीएन सिंह भी कार्यशाला में मौजूद रहे। वो बताते हैं, ‘’शिक्षकों और अन्य अधिकारियों को काफी कुछ सीखने को मिला है। इस सीख से वो अपने स्कूलों में बेहतर सुविधाएं और शिक्षा दे सकते हैं। विद्यालय प्रबंध समितियों को भी जागरूक होने की जरूरत है इससे कराफी सुधार होगा।”

विद्यालय प्रबंध समिति में 11 सदस्य ऐसे होते हैं जिनके बच्चे स्कू ल में पढ़ते हों, इसके अलावा एक लेखपाल, एनएएम, प्रधान या उसके द्वारा चयनित कोई व्यक्ति होते हैं, हेडमास्टर इसका सचिव होता है। इनका काम स्कूल की मासिक बैठकों में सम्मिलित होना और विद्यालय के लिए दी गई धनराशि को खर्च करना होता है। इनका चयन दो साल के लिए किया जाता है उसके बाद समिति का दोबारा गठन होता है।

कार्यशाला में शिक्षकों को बताया गया कि कैसे स्कूल के कार्यक्रमों में अभिवावकों को भी सम्मिलित किया जाए जिससे वो भी अपने बच्चे के शैक्षिक स्तर को समझ सकें।

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