ललितपुर: भावनी बांध से प्रभावित किसान बोले," सरकार या तो हमें रास्ता दे या हमारी जमीन खरीद ले"

Arvind Singh Parmar | Dec 27, 2021, 13:10 IST
ललितपुर में महरौनी इलाके में सिंचाई और दूसरी सुविधाओं को एक बांध बनाया गया है। इस बांध से हजारों लोगों को फायदा भी मिलेगा लेकिन बाँध के करीब के करीब बसे एक गांव के सैकड़ों लोग परेशान हो गए हैं। वो रास्ते में पानी भर जाने के कारण खेती नहीं कर पा रहे। कोई उनकी जमीन को खरीदने को भी तैयार नहीं है।
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ललितपुर (बुंदेलखंड)। "देखो वो सामने महुआ का पेड़ दिख रहा हैं वही हमारा खेत हैं उस साढ़े तीन एकड़ के खेत पर पहुँचने के लिए पांच किमी का चक्कर लगाना पड़ता हैं, क्योंकि नाले में बाँध का जो पानी भर आया हैं।" बढईयाँ नाले के उस तरफ दिख रहे खेत की ओर हाथ का इशारा करते हुऐ मुकुंदी प्रजापति (62 वर्ष) कहते हैं।

मुकुंदी प्रजापति के गांव के करीब से निकले बढईयाँ नाला में बांध का पानी भर जाने से उन किसानों को परेशानी हो रही है, जिनके खेत नाले के दूसरी तरफ हैं। यहां मुंकुंदी जैसे किसानों के सैकड़ों किसान हैं। मुकुंदी प्रजापति कहते हैं,"पहले गाँव से खेत आधा किमी दूर हुआ करता था, नाले से निकलते हुऐ सीधे खेतों पर पहुँचकर खेती किसानी करते थे। अब बाँध का पानी नाले में भर आया हैं पूरा रास्ता बंद है। खेतों पर पहुँचने के लिए कैलोनी टपरियन गाँव से होते हुऐ पाँच किलोमीटर का चक्कर लगाते हैं हम बूढ़े हो चुके हैं इतना चल भी नहीं सकते।"

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 450 किलोमीटर दूर ललितपुर जिले में बनी भांवनी बांध परियोजना के निचले हिस्से में जरावली गांव बसा है। ये जिले की महरौनी तहसील में आता है।

पीएम मोदी ने 19 नवंबर को किया था बांध का लोकापर्ण

512.75 करोड़ रुपए के भवनी बाँध परियोजना का लोकार्पण देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 नवंबर 2021 को कर चुके हैं। तालबेहट तहसील में स्थित भाँवनी गाँव के करीब से निकली सजनाम नदी पर वर्ष 2012-13 में भाँवनी बाँध परियोजना शुरू हुई थी। 15.68 मीटर ऊंचाई वाले इस बांध की कुल लंबाई 4.08 किमी है। 23.790 एमसीएम पानी स्टोर करने की क्षमता हैं। सरकारी दावों के मुताबिक इससे करीब 3800 हेक्टेयर जमीन सिंचिंत होगी, 8000 से ज्यादा किसानों को फायदा होगा और गर्मियों में 30000 लोगों को पानी भी मिल सकेगा।

लेकिन जरावली गांव के सैकड़ों किसानों के लिए बांध के डूब क्षेत्र का एक नाला मुसीबत बन गई है। 2011 की जनगणना के आधार पर 1571 आवादी वाले जरावली गांव के मुकुंदी प्रजापति की तरह करीब एक सैकड़ा किसानों की बढईयाँ नाले के उस पार करीब 200 एकड़ जमीन हैं। भांवनी बाँध के जलभराव से नाले से निकलने वाला रास्ता जलमग्न हैं। किसानों को अपने खेतों पर पहुँचने के लिए पाँच किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

खेती के छोटे से छोटे काम के लिए खेतों पर जाना ही पड़ता हैं। दोनों तरफ की दूरी जोड़ ली जाय तो दस किलोमीटर हैं। आने जाने में दो-तीन घंटे का समय बर्बाद होने की बात करते हुऐ गाँव के करन सिंह (60 वर्ष) बताते हैं, "हम जैसे सभी किसान त्रस्त हैं रास्ते की परेशानी हमारी नई पीढ़ी को पूरी जिंदगी भोगनी पड़ेगी। सरकार या तो हमारी जमीन खरीद ले या नाले से निकलने की व्यवस्था बना दें।"

कईयों लोग जान जोखिम में डालकर नाले को ट्यूब पर बैठकर निकलते हैं हमेशा अनहोनी की शंका गाँव वालों को सताती हैं। वहीं अन्ना जानवरों (छुट्टा पशु) के प्रकोप से फसलों की रखवाली नहीं कर पा रहे हैं। खेतों पर जाने की लंबी दूरी से किसान हताश व निराश हैं। ग्रामीणों के मुताबिक प्रशासन को उनकी समस्या नहीं दिखाई देती।

तुलसीराम (55 वर्ष) कहते हैं,"सिंचाई विभाग के अधिकारियों से लेकर डीएम तक गुहार लगा चुके हैं। धरना-प्रदर्शन करके नाले पर स्थाई मार्ग बनाने की मां गाँव वाले कर चुके हैं कोई नहीं सुनता, समस्या बनी हुई हैं भोगता पूरा गाँव हैं।"

वो आगे कहते हैं, "गाँव के लोग रास्ते की समस्या खत्म करवाना चाहते हैं जिसके लिए जमीन भी बिकाऊ कर दी है। कोई खरीददार नहीं मिलता, खरीदने वाले कहते हैं परेशानी वाली जमीन खरीदने को मना करते हैं। ऐसे में जमीन भी नहीं बिक पाती।"

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1500 की आबादी वाले इस गांव के सैकड़ों किसानों को खेतों के काम के लिए 5 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है। फोटो अरविंद परमार रास्ते के लिए प्रयास जारी- अधिकारी

गांव कनेक्शन ने इस बारे में बांध परियोजना से जुड़े अधिकारियों से भी बात। भांवनी बाँध परियोजना के अधिषाशी अभियंता भागीरथ बरूवाँ कहते हैं, "जो काम संभव हैं उस पर हम काम कर रहे हैं किसानों की मांह है कि वो जमीन सरकार या परियोजना के द्वारा अधिग्रहण कर मुआवजा दिया जाय यह हो पाना संभव नहीं हैं।"

भागीरथ बरूवाँ आगे कहते हैं, "परियोजना पूरा करने के टारगेट थे उन्हे पूरा करने का काम पूर्ण होने की स्थिति में हैं। जरावली गाँव के किसानों की समस्या बड़ी है उस पर हम काम कर रहे हैं जिसके लिए एक कोटवे करके प्रस्ताव भेजा है, जिसकी मूक सहमति हो चुकी हैं। प्रस्ताव स्वीकृत होते ही किसानों की दूरी की समस्या को हल किया जायेगा। ताकि वो आसानी से अपने रोजमर्रा के काम कर पायेगें इस काम में हम लोग लगे हैं।"

दूसरी तरफ एक सीजन में अपनी फसल और खेत बर्बाद होते देख परेशान हैं। उनका कहना है इस समस्या के दो उपाय हैं, पहला सरकार नाले पर रास्ता बनवा दे, दूसरा उनकी जमीन का अधिग्रहण कर मुआवजा दे दे ताकि वो दूसरी जगह जमीन खरीदकर अपनी रोजी चला सकें। गांव के मुकेश कहते रजक कहते हैं, "सरकार या दो रास्ता दे दे या हम गांव वालों जमीन लेकर हमें मुआवजा दे दे ताकि समस्या खत्म हो जाए।"

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