पाँच साल का भीषण सूखा: ईरान और वेस्ट एशिया जलवायु संकट की सबसे कड़ी मार में

Divendra Singh | Nov 22, 2025, 17:30 IST
World Weather Attribution की नई स्टडी बताती है कि ईरान, इराक और सीरिया पिछले पाँच वर्षों से जिस भयंकर सूखे से जूझ रहे हैं, वह प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। ईरान में जलाशय खाली हो रहे हैं, शहर पानी की कगार पर हैं, और COP30 के बीच यह रिपोर्ट वैश्विक सिस्टम को झकझोरने वाली चेतावनी देती है।
Human-induced climate change compounded by socio-economic water stressors increased severity of 5-year drought in Iran and Euphrates and Tigris basin
ब्राज़ील के बेलेम में चल रहे COP30 में दुनिया भर के नेता जब जलवायु संकट के समाधान खोजने में जुटे हैं, ठीक उसी समय एक नई रिसर्च वेस्ट एशिया की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है जिसे अब नज़रअंदाज़ करना असंभव है। World Weather Attribution (WWA) की ताज़ा स्टडी बताती है कि ईरान, इराक और सीरिया पिछले पाँच वर्षों से जिस “असाधारण और क्रूर सूखे” की मार झेल रहे हैं, वह प्रकृति की सामान्य उठापटक नहीं, बल्कि मानवीय गतिविधियों से बढ़ी ग्लोबल वार्मिंग का सीधा नतीजा है।

यह शोध न केवल सूखे की जड़ों को उजागर करता है, बल्कि इस बात की चेतावनी भी देता है कि वेस्ट एशिया का यह संकट आने वाले वर्षों में दुनिया के कई हिस्सों की नियति बन सकता है।

सूखा कितना भयानक है: स्टडी क्या कहती है?

WWA की रिसर्च टीम ने अगस्त 2025 तक पिछले 60 महीनों का विस्तृत मौसम डेटा खंगाला- बरसात, तापमान, मिट्टी की नमी, वाष्पीकरण दर और SPEI इंडेक्स तक। निष्कर्ष बेहद स्पष्ट और चौंकाने वाले हैं:

अगर धरती का तापमान इतना न बढ़ा होता, तो पिछले पाँच साल का सूखा न इतना लंबा चलता, न इतना तीखा होता और न ही इतना फैलाव लेता।

प्राकृतिक जलवायु में ऐसी स्थिति 100 साल में केवल 2–3 बार देखने को मिलती।

लेकिन आज, गर्म होती दुनिया में ऐसा “असाधारण सूखा” लगभग एक सामान्य घटना बन चुका है।

यह निष्कर्ष इस बात का प्रमाण है कि इंसानों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसें अब मौसम के चक्र को मूल रूप से बदल रही हैं।

ईरान सबसे गहरी चोट में: शहर तक प्यासे, खेत तक बंजर

वेस्ट एशिया का यह सूखा तीनों देशों को प्रभावित करता है, लेकिन ईरान की हालत सबसे भयावह है। कई प्रांतों में जलाशय और बांध लगभग खाली हो चुके हैं। राजधानी तेहरान को भी पानी आपूर्ति संकट की चेतावनी दी जा चुकी है।

Iran-drought
Iran-drought


कुछ क्षेत्रों में प्रशासन ने संकेत दिया है कि यदि हालात नहीं सुधरे, तो बड़े पैमाने पर आबादी को सुरक्षित स्थानों पर भेजना पड़ सकता है। यह अब सिर्फ किसानों की समस्या नहीं रही—यह शहरी जीवन, उद्योग, बिजली उत्पादन, स्वास्थ्य और क्षेत्रीय स्थिरता का प्रश्न बन चुका है। एक ईरानी किसान का कथन इस त्रासदी को साफ बयान करता है, “पहले पानी हमारे खेतों को सींचता था, अब पानी की तलाश में हम खुद सूख रहे हैं।”

वैज्ञानिकों की चिंता: “यह अब दुर्लभ घटना नहीं रही”

इम्पीरियल कॉलेज लंदन की मशहूर जलवायु वैज्ञानिक फ्राइडेरिक ओटो कहती हैं, “ऐसे हालात पचास साल पहले बेहद दुर्लभ थे। आज यह नई वास्तविकता है। ग्लोबल वार्मिंग ने धरती को इतना गर्म कर दिया है कि मिट्टी में बची थोड़ी-सी नमी भी तेजी से गायब हो जाती है।”

रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर की विशेषज्ञ रूफ सिंह कहती हैं, “ईरान की स्थिति उन शहरों का भविष्य है जो आज सोचते हैं कि पानी कभी खत्म नहीं होगा। आने वाले दशकों में दुनिया के एक-तिहाई शहर गंभीर जल संकट झेल सकते हैं।”

यह चेतावनी केवल वेस्ट एशिया के लिए नहीं, बल्कि भारत सहित दुनिया के हर उस देश के लिए है जहाँ भूजल तेजी से गिर रहा है और शहरीकरण बेकाबू है।

सूखे की असली वजहें: सिर्फ आसमान नहीं, ज़मीन भी धोखा दे गई

WWA की रिपोर्ट बताती है कि यह सूखा “डबल इम्पैक्ट” यानी दोहरी मार का परिणाम है- क्लाइमेट चेंज + लोकल मैनेजमेंट की गलतियाँ।

  1. बारिश में तेज़ गिरावट: मॉडल बताते हैं कि पिछले पाँच वर्षों में बरसात सामान्य से बहुत कम हुई है।
  2. तापमान में तीव्र वृद्धि: हर अतिरिक्त 1°C तापमान मिट्टी की नमी को और तेजी से खत्म करता है। वेस्ट एशिया में यह तापमान रफ्तार वैश्विक औसत से भी तेज़ रहा है।
  3. मिट्टी का सूखना: मिट्टी में नमी टिक ही नहीं पा रही-चाहे बारिश कितनी भी हो।
  4. अनियमित भूजल दोहन: लाखों ट्यूबवेलों ने ज़मीन की नसों से पानी खींच लिया है।
  5. खेती का अत्यधिक विस्तार और खराब भूमि प्रबंधन: मोनोकल्चर खेती, रसायनों का भारी उपयोग और जंगलों की कटाई ने मिट्टी को “खाली बर्तन” बना दिया।


ये सभी कारण मिलकर उस सूखे को और खतरनाक बनाते हैं जिसे गर्म होती धरती पहले ही बहुत बढ़ा चुकी है।

रिपोर्ट कैसे बनाई गई?

इस स्टडी को बेहद सख्त वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया:

  • वास्तविक मौसम रिकॉर्ड
  • पिछले 60 महीनों का SPEI इंडेक्स
  • वाष्पीकरण, तापमान, वर्षा और सतही नमी के अंतर का विश्लेषण
  • विभिन्न जलवायु मॉडलों की तुलना
  • प्राकृतिक जलवायु बनाम मानव-प्रेरित जलवायु के परिदृश्य


WWA की टीम दुनिया भर में हीटवेव, बाढ़ और सूखे के "अट्रीब्यूशन" अध्ययन के लिए जानी जाती है—यानी किसी आपदा में जलवायु परिवर्तन की कितनी भूमिका रही।

COP30 में इसका क्या अर्थ है?

COP30 में इस समय तीन बड़े मुद्दों पर चर्चा गर्म है:

  • एडेप्टेशन (जलवायु अनुकूलन)
  • जल सुरक्षा और वॉटर जस्टिस
  • लचीली स्वास्थ्य व्यवस्था


वेस्ट एशिया का यह सूखा इन्हीं तीनों मुद्दों को एक साथ जोड़ देता है।

यह दुनिया को याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन कोई “भविष्य का खतरा” नहीं। वह आज हो रहा है, अभी हो रहा है, और सबसे कमजोर इलाकों को तोड़ रहा है।

WWA की रिपोर्ट COP30 के लिए एक चेतावनी है:

  • यदि दुनिया ने जीवाश्म ईंधन को तेजी से कम नहीं किया…
  • यदि हम पानी, शहर और कृषि को भविष्य के हिसाब से नहीं बदलते…
  • यदि अनुकूलन उपायों में निवेश नहीं किया…
  • तो सूखा, पानी की कमी और खाद्य संकट वैश्विक स्तर पर विस्फोटक हो जाएंगे।


वेस्ट एशिया का संकट: दुनिया का आने वाला कल

ईरान, इराक और सीरिया के गाँवों में सूखी पड़ी नहरें, शहरों में खाली होते जलाशय और किसानों की उजड़ती फसलें केवल एक क्षेत्रीय त्रासदी नहीं, बल्कि एक ग्लोबल चेतावनी हैं।

आज वेस्ट एशिया प्यासा है। कल दक्षिण एशिया, अफ्रीका और दक्षिण यूरोप भी ऐसे ही खड़े हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन सिर्फ तापमान नहीं बढ़ा रहा- यह जीवन के सबसे बुनियादी स्रोत पानी को नुकसान पहुँचा रहा है और जब पानी चला जाता है… तो सभ्यताएँ भी लड़खड़ा जाती हैं।

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