गाॅंव से चिट्टी: ‘मुख्यमंत्री जी एक बार किसी प्राथमिक स्कूल का भी दौरा कीजिए’
Meenal Tingal | Mar 26, 2017, 12:45 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। “कभी प्राथमिक स्कूलों में भी आइये मुख्यमंत्री जी।” यह पुकार है उन अभिभावकों की जिनके बच्चे तंगहाली के चलते प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने को मजबूर हैं। कई प्राथमिक स्कूलों में अव्यवस्था के माहौल में शिक्षक बस पढ़ाने की औपचारिकता निभा रहे हैं। हालांकि वह खुलकर अव्यवस्था पर सवाल उठाने से डर भी रहे हैं। उनको डर है कि आवाज उठाने के चलते कहीं उनके बच्चों को स्कूल से बाहर न कर दिया जाये।
हाल में मुख्यमंत्री के राजधानी की कोतवाली, चिकित्सालय और सचिवालय जैसी जगहों पर पहुंचने के बाद वहां की व्यवस्था भी कुछ हद तक दुरुस्त नजर आने लगी है। यदि प्राथमिक स्कूलों की ओर भी रुख करें तो शायद वहां की व्यवस्था के दुरुस्त होने की संभावना नजर आने लगे।
प्रदेश में लगभग 1.98 लाख प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों में लगभग 1.96 करोड़ बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अगर केवल राजधानी की बात करें तो यहां बेसिक शिक्षा परिषद के लगभग 2023 स्कूल संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों में लगभग दो लाख 33 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। कहीं शिक्षक स्कूल से नदारद रहते हैं तो कहीं शिक्षक बच्चों से स्कूल में झाड़ू लगवाते हैं। ज्यादातर स्कूलों में फर्नीचर की कमी है और बच्चों को जमीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।
दो दिन पूर्व ही एक मामला सामने आया, बरेली के मजगवां ब्लॉक के जलालपुर प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक ने एबीएसए नरेन्द्र व एबीआरसी राकेश द्वारा रिश्वत लिये जाने के स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो बरेली के जिलाधिकारी को सौंपा और कार्रवाई की मांग की है।
आदेशों को कोई भी गंभीरता से लेना नहीं चाहता। आदेश दिये जाते रहते हैं और उन पर कभी अमल नहीं किया जाता। कोई भी आदेश जारी होता है तो चर्चा तो चलती है, लेकिन आदेश नहीं चल पाते। इन्ही आदेशों में शामिल है स्कूलों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाये जाने के वह आदेश जो पिछले वर्ष दिये गये थे, वह भी ठंडे बस्ते में पड़े नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में लगभग 4500 अशासकीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें लगभग 80,000 शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन सभी अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में बायोमीट्रिक उपस्थिति की व्यवस्था लागू किये जाने के निर्देश शासन द्वारा जारी किये गये थे। हालांकि इस व्यवस्था को स्कूल प्रशासन को अपने स्तर पर लागू करवाना था। बीती 16 अक्टूबर को बेसिक शिक्षा परिषद के प्रमुख सचिव जितेन्द्र कुमार के द्वारा माध्यमिक शिक्षा निदेशक अमरनाथ वर्मा को निर्देश दिये जाने के बाद इस सम्बन्ध में अमरनाथ वर्मा ने प्रदेश के सभी जिलों के डीआईओएस को यह निर्देश जारी कर दिये थे। कई महीने गुजर जाने के बाद भी स्कूलों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाया जाना तो दूर डीआईओएस द्वारा जानकारी तक उपलब्ध नहीं करवायी गयी है।
अमरनाथ वर्मा, माध्यमिक शिक्षा निदेशक
लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित आदर्श जूनियर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक, संदीप सिंह कहते हैं, “यदि स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीनें लगा दी जायें तो यह स्कूलों के लिए काफी हितकर होगा। वह शिक्षक जो गलत नीतियों का शिकार होकर मनमानी पर उतारू हैं और अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं वह अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए हर रोज स्कूल में अपनी उपस्थिति समय पर दर्ज करते रहेंगे। इससे शिक्षा का स्तर सुधरेगा।”
उमेश त्रिपाठी, जिला विद्यालय निरीक्षक, लखनऊ कहते हैं, “स्कूलों में निरीक्षण के दौरान अक्सर यह पाया जाता है कि शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं, लेकिन स्कूल में उनकी उपस्थिति दर्ज होती है। इसलिए स्कूलों में बायोमैट्रिक उपस्थिति की व्यवस्था लागू करने के निर्देश जारी किये गये थे। इन निदेर्शों पर अमल किया जाये, इस पर भी अब ध्यान दिया जायेगा। रही बात मशीन लगाने के खर्चे की तो ऐसे स्कूलों के लिए मैं विद्यालय विकास निधि के जरिये खर्च की व्यवस्था करूंगा ताकि उन स्कूलों के पास मशीन न लगवाने का कोई बहाना न रहे।”
स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीनें लगाये जाने के आदेश दिये जाने के पीछे कारण था शिक्षकों की स्कूल में समय पर उपस्थिति दर्ज करवाना। स्कूलों में निरीक्षण के दौरान अक्सर यह पाया जाता है कि शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं, लेकिन स्कूल में उनकी उपस्थिति दर्ज होती है। इसलिए स्कूलों में बायोमैट्रिक उपस्थिति की व्यवस्था लागू करने के निर्देश जारी किये गये थे, जिससे शिक्षकों के स्कूल में आने जाने का समय दर्ज किया जाता रहे। साथ ही यह भी नजर रखी जा सके कि वह कब स्कूल में उपस्थित रहे और कब नहीं।
स्कूलों से शिक्षकों के गायब रहने के हर रोज ही मामले सामने आते रहे हैं। एक मामला बाराबंकी की हरक्का ग्राम सभा के प्राथमिक विद्यालय का है जहां शिक्षक स्कूल पहुंचते ही नहीं हैं और यदि कभी-कभी मनमाने समय पर पहुंच भी जाते हैं तो कुछ समय बिताने के बाद टहलकर चले जाते हैं। स्कूल में पढ़ रहे एक बच्चे के पिता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “हम पढ़े-लिखे नहीं हैं, मगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़-लिख जाएं और अपना अच्छा-बुरा समझ सकें, इसलिए हम बच्चों को स्कूल भेजते हैं, लेकिन स्कूल के मास्टर तो हमसे भी गए-गुजरे हैं। वह स्कूल को अपने घर की जागीर समझते हैं, कभी आते हैं तो कभी नहीं आते और आ भी जाते हैं तो टहल कर चले जाते हैं।”
गोंडा के वजीरगंज ब्लॉक स्थित रामपुर खास विद्यालय में बीएसए द्वारा किये गये निरीक्षण के दौरान शिक्षक की जगह उसका भाई पढ़ाता मिला था। शिक्षक पिछले एक वर्ष से स्कूल में पढ़ाने नहीं आ रहा था, लेकिन उसकी उपस्थिति प्रतिदिन दर्ज की जा रही थी। ऐसे मामले सामने आते रहे हैं। इसी के चलते सरकारी स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीन लगाए जाने के निर्देश जारी किये गये थे।
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लखनऊ। “कभी प्राथमिक स्कूलों में भी आइये मुख्यमंत्री जी।” यह पुकार है उन अभिभावकों की जिनके बच्चे तंगहाली के चलते प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने को मजबूर हैं। कई प्राथमिक स्कूलों में अव्यवस्था के माहौल में शिक्षक बस पढ़ाने की औपचारिकता निभा रहे हैं। हालांकि वह खुलकर अव्यवस्था पर सवाल उठाने से डर भी रहे हैं। उनको डर है कि आवाज उठाने के चलते कहीं उनके बच्चों को स्कूल से बाहर न कर दिया जाये।
हाल में मुख्यमंत्री के राजधानी की कोतवाली, चिकित्सालय और सचिवालय जैसी जगहों पर पहुंचने के बाद वहां की व्यवस्था भी कुछ हद तक दुरुस्त नजर आने लगी है। यदि प्राथमिक स्कूलों की ओर भी रुख करें तो शायद वहां की व्यवस्था के दुरुस्त होने की संभावना नजर आने लगे।
लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर काकोरी स्थित प्राथमिक विद्यालय, दसदोई में अपने बच्चों को पढ़ा रहीं अभिभावक नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं, “स्कूल में मेज-कुर्सी नहीं हैं। टीचर भी अकसर नहीं आतीं और जब आती हैं तो ज्यादा पढ़ाती नहीं हैं। बच्चों को स्कूल भेजने न भेजने से कोई फायदा नहीं है, लेकिन बच्चों को दोपहर का खाना मिल जाता है इसलिए भेज देते हैं।
प्रदेश में लगभग 1.98 लाख प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों में लगभग 1.96 करोड़ बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अगर केवल राजधानी की बात करें तो यहां बेसिक शिक्षा परिषद के लगभग 2023 स्कूल संचालित हो रहे हैं। इन स्कूलों में लगभग दो लाख 33 हजार बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। कहीं शिक्षक स्कूल से नदारद रहते हैं तो कहीं शिक्षक बच्चों से स्कूल में झाड़ू लगवाते हैं। ज्यादातर स्कूलों में फर्नीचर की कमी है और बच्चों को जमीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।
रिश्वत लेने का आया था मामला
शिक्षक आते नहीं, बायोमीट्रिक मशीनें लगती नहीं
उत्तर प्रदेश में लगभग 4500 अशासकीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें लगभग 80,000 शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन सभी अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में बायोमीट्रिक उपस्थिति की व्यवस्था लागू किये जाने के निर्देश शासन द्वारा जारी किये गये थे। हालांकि इस व्यवस्था को स्कूल प्रशासन को अपने स्तर पर लागू करवाना था। बीती 16 अक्टूबर को बेसिक शिक्षा परिषद के प्रमुख सचिव जितेन्द्र कुमार के द्वारा माध्यमिक शिक्षा निदेशक अमरनाथ वर्मा को निर्देश दिये जाने के बाद इस सम्बन्ध में अमरनाथ वर्मा ने प्रदेश के सभी जिलों के डीआईओएस को यह निर्देश जारी कर दिये थे। कई महीने गुजर जाने के बाद भी स्कूलों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाया जाना तो दूर डीआईओएस द्वारा जानकारी तक उपलब्ध नहीं करवायी गयी है।
स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इसी वजह से इस व्यवस्था को स्कूलों में लागू किये जाने के निर्देश जारी किये गये हैं। अगले चरण में बच्चों की उपस्थिति को दर्ज किये जाने के लिए भी यह व्यवस्था स्कूलों में लागू की जायेगी। जल्द ही इस आदेश पर अमल करवाये जाने के प्रयास भी किये जायेंगे।
लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित आदर्श जूनियर हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक, संदीप सिंह कहते हैं, “यदि स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीनें लगा दी जायें तो यह स्कूलों के लिए काफी हितकर होगा। वह शिक्षक जो गलत नीतियों का शिकार होकर मनमानी पर उतारू हैं और अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं वह अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए हर रोज स्कूल में अपनी उपस्थिति समय पर दर्ज करते रहेंगे। इससे शिक्षा का स्तर सुधरेगा।”
क्या कहते हैं जिम्मेदार
अनुपस्थित होने के बावजूद भी उपस्थिति दर्ज
‘स्कूल आकर चले जाते हैं’
शिक्षक की जगह पढ़ा रहा था भाई
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