न्यूट्री स्मार्ट गांव मॉडल से सुधर सकती है किसानों की स्थिति : डॉ त्रिलोचन महापात्रा

गाँव कनेक्शन | Sep 08, 2018, 10:13 IST
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लखनऊ। किसानों को नकदी फसलों के रूप में मेंथा जैसी फसल देने वाली संस्थान सीमैप के 60 वर्ष पूरे हो गये हैं। वर्तमान में संस्थान किसानों को एरोमा मिशन के तहत औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती की ओर लाने का प्रयास कर रही है। शुक्रवार को संस्थान ने अपने 60 वर्ष पूरे होने पर स्वर्ण जयंती समारोह का आयोजन किया जिसमें पिछले 60 वर्षों की उपलब्धियों और आगामी गतिविधियों पर चर्चा हुई।

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीएसआईआर-सीमैप) का संचालन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत हो रहा है। संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह में आईसीएआर के महानिदेश और डीएआई के सचिव डॉ त्रिलोचन महापात्रा बतौर प्रमुख वक्ता शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने 'खाद्य और पोषण' विषय पर अपनी बात रखी और कहा कि आईसीएआर के वैज्ञानिक प्रयासों से आज भारत अनाज आयातित देश से निर्यातक देश बन गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने न केवल अनाज में आत्मनिर्भरता के लिए हरित क्रांति की है बल्कि दूध, मत्स्य पालन और गन्ना उत्पादन की मांग में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सफेद, नीली और मीठी क्रांति भी लायी है जिससे न केवल देश की विदेशी मुद्री बची बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है।

उन्होंने आगे अपने संबोधन में पोषण सुरक्षा के लिए विकसित मॉडल को अपनाने के लिए गांव पोषण को टिकाऊ बनाने के लिए'न्यूट्री स्मार्ट गांव' के बारे में भी बताया। इस मॉडल में तहत किसानों को उसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो वे खाते हैं। उन्होंने कृषि से नवीनतम तकनीकी के उपयोग पर भी जोर दिया ताकि उत्पादन में वृद्धि की जा सके। वैज्ञानिकों से आह्वान भी किया कि वे किसानों की समस्याओं को समझने के लिए खेतों में जायें ताकि वे उनकी समस्याओं का बेहतर समाधान हो सके।



वहीं सीएसआईआर-सीमैप के निदेशक प्रो. अनिल कु. त्रिपाठी ने डॉ महापात्रा का स्वागत करते हुए पिछले 60 वर्षों में संस्थानन के विभिन्न शोध गतिविधियों और किसानों को प्रदान की गयी सेवाओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि सीमैप के प्रयासों मिंट, लेमनग्रास, अश्वगंधा, आर्टीमीसिया जैसी फसलों की खेती से किसानों की आजीविका में सुधार एवं आय में वृद्धि हुई है। यह भी बताया कि सीमैप उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास करता है जहां पर अभी तक किसानों को वैज्ञानिक पद्धति उपलब्ध नहीं हुई है। सीमैप प्रयासों से आदिवासियों और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।

प्रो. त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि को शॉल और स्मृति-चिन्ह के साथ सम्मानित किया। कार्यक्रम में सीएसआईआर-एनबीआरआई के निदेशक प्रो. एस के बारिक, आईसीएआर-आईआईएसआर के निदेशक डॉ ए डी पाठक, आईसीएआर-एनबीएफजीआर के निदेशक, डॉ के लाल, और संस्थानन के वैज्ञानिक व्याख्यान में उपस्थित थे।



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