खाद संकट पर NSA का कवच, लेकिन किसान की समस्याएं हैं और भी गंभीर
Manvendra Singh | Dec 18, 2025, 19:40 IST
उत्तर प्रदेश में रबी सीजन अपने निर्णायक दौर में है। इस समय गेहूं, आलू, सरसों और दलहनों की फसल खेतों में खड़ी होती है और किसानों के लिए सबसे ज़रूरी होती है खाद। खासकर गेहूं में यूरिया की टॉप-ड्रेसिंग और आलू में डीएपी और एनपीके की जरूरत अचानक बढ़ जाती है। ऐसे वक्त में अगर खाद समय पर न मिले या ज़रूरत से कम मिले, तो पूरी फसल प्रभावित हो सकती है। इसी तर्ज़ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद की कालाबाज़ारी, नकली उर्वरकों की बिक्री और कृत्रिम कमी पैदा करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA लगाने का फैसला किया है। यह फैसला जितना सख़्त दिखता है, उतने ही सवाल भी खड़े करता है। NSA क्यों लगाया गया, सरकार क्या दावा कर रही है, ज़मीन पर क्या हो रहा है और किसान इस पूरे सिस्टम को कैसे देख रहे हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA आमतौर पर देश की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या बड़े स्तर पर अशांति रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत किसी व्यक्ति को लंबे समय तक हिरासत में रखा जा सकता है, भले ही उस पर सामान्य आपराधिक मुकदमा तुरंत न चले। खाद जैसे कृषि इनपुट के मामले में इस कानून का इस्तेमाल असाधारण माना जाता है। सरकार का तर्क है कि खाद की कालाबाज़ारी सीधे तौर पर किसानों की आजीविका, फसल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है। अगर जानबूझकर खाद की कमी पैदा की जाती है, तो इसका असर सिर्फ एक किसान पर नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण अर्थतंत्र पर पड़ता है। सरकार इसी आधार पर खाद से जुड़ी गड़बड़ियों को “सार्वजनिक हित के खिलाफ गंभीर अपराध” मान रही है और NSA को निवारक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की बात कह रही है।
सरकार ने यह फैसला क्यों लिया?
रबी सीजन के दौरान हर साल खाद की मांग अचानक बढ़ जाती है। इसी समय कालाबाज़ारी, ओवरचार्जिंग और नकली खाद की शिकायतें भी सामने आती हैं। सरकार का मानना है कि कुछ व्यापारी और बिचौलिये इस मौके का फायदा उठाकर कृत्रिम कमी पैदा करते हैं। इससे किसानों को या तो लाइन में घंटों खड़ा रहना पड़ता है या फिर महंगे दाम पर निजी दुकानों से खाद खरीदनी पड़ती है। सरकार का यह भी कहना है कि केवल जुर्माना या लाइसेंस रद्द करने जैसी कार्रवाई ऐसे नेटवर्क को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसी वजह से NSA जैसे कड़े कानून की बात सामने आई है, ताकि डर पैदा हो और ऐसे लोग खाद के कारोबार से दूर रहें।
सरकारी आंकड़े क्या बताते हैं?
कृषि विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश में रबी सीजन के लिए खाद की कोई कमी नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय राज्य में करीब 9.57 लाख मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध है। इसमें से लगभग 3.79 लाख मीट्रिक टन सरकारी केंद्रों पर और 5.78 लाख मीट्रिक टन निजी दुकानों पर बताया जा रहा है। इसी तरह डीएपी और एनपीके का स्टॉक भी लाखों मीट्रिक टन में मौजूद होने का दावा किया गया है। सरकार का यह भी कहना है कि रोज़ाना औसतन 54,000 मीट्रिक टन से ज़्यादा यूरिया किसानों तक पहुँचाया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक कागज़ों पर उपलब्धता और सप्लाई दोनों संतोषजनक हैं और कहीं कोई कमी नहीं है।
अगर खाद पर्याप्त है, तो समस्या कहाँ है?
यहीं से असली सवाल शुरू होता है। कई बार रिकॉर्ड और ज़मीन की हकीकत के बीच अंतर देखने को मिलता है। कागज़ों में खाद उपलब्ध होती है, लेकिन किसान को सही समय पर और सही मात्रा में नहीं मिल पाती। इसकी वजह वितरण व्यवस्था, प्राथमिकता तय करने का तरीका और स्थानीय स्तर पर रसूख का खेल बताया जाता है।कई किसान कहते हैं कि सहकारी समितियों पर खाद आती तो है, लेकिन लाइन लंबी होती है और मात्रा सीमित कर दी जाती है। वहीं निजी दुकानों पर खाद आसानी से मिल जाती है, लेकिन दाम ज़्यादा होते हैं।
कानपुर देहात के कचगांव गाँव के 41 वर्षीय गेहूँ किसान ज्ञानेंद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन से बताया, “इस समय किसानों को सबसे ज़्यादा यूरिया की ज़रूरत है। लेकिन खाद के लिए लंबी-लंबी लाइन लगानी पड़ती है और घंटों के इंतज़ार के बाद भी ज़रूरी नहीं कि खाद मिल ही जाएगी और अगर नंबर आ भी गया, तो ज़रूरत के हिसाब से बोरी नहीं मिलती। और कभी-कभार हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि पुलिस को लाठियाँ बरसानी पड़ती हैं। खाद लेने के लिए आधार कार्ड दिखाना होता है और एक आधार पर दो से तीन बोरी मिलती है और अगर ज़्यादा की ज़रूरत है, तो खतौनी दिखानी पड़ती है और ज़मीन के हिसाब से खाद मिलती है।
प्रशासन क्या कर रहा है?
बाराबंकी के ज़िला कृषि अधिकारी राजित राम बताते हैं, "NSA के ऐलान के बाद निगरानी और सख़्त की गई है। उनके मुताबिक जिलाधिकारी के निर्देश पर पूरे जिले में तहसीलवार टीमें बनाई गई हैं, जिनमें लेखपाल, ब्लॉक कर्मचारी और कृषि विभाग के अधिकारी शामिल हैं। ये टीमें लगातार खाद की दुकानों पर छापे मार रही हैं और सैंपल ले रही हैं।
राजित राम के अनुसार, हाल ही में कई दुकानों से नमूने लिए गए हैं, जिन्हें जांच के लिए भेजा गया है। अगर कोई खाद नकली या अधमानक पाई जाती है, तो उसके आधार पर कार्रवाई होती है। इसके अलावा विभागीय पोर्टल के ज़रिये यह भी देखा जा रहा है कि कौन दुकानदार किसे कितनी खाद बेच रहा है और कहीं मशीन का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा।
वो आगे कहते हैं, "जनपद में आज की डेट में 12,000 मीट्रिक टन यूरिया है। और इसका देखिए कि जैसे बहुत सारे जनपदों में लगातार निगेटिव खबरें आ रही हैं, अपने जनपद बाराबंकी में पूरे सीजन में एक भी निगेटिव खबरें नहीं आई हैं। लगभग अपने पास 51 सहकारी समितियाँ हैं और 51 की 51 में लगातार हम उपलब्धता बनाए रखते हैं, भले ही वह क्रमशः मतलब कि रोस्टर वाइज उनमें वितरण हो रहा हो और डीएम साहब डेली समीक्षा करते हैं इसकी कहाँ पर उपलब्धता है कहाँ नहीं है। DM साहब के साथ, इफको (IFFCO), कृभको (KRIBHCO), एआर को-ऑपरेटिव और जो पीसीडीएफ (PCDF) होते हैं प्रबंधक जो खाद को भेजने का काम करते हैं ये सभी फील्ड पर जाकर परीक्षण करते हैं।इस तरह से हम लोग मॉनिटरिंग करते हैं तो कहीं खाद कम नहीं होने पा रही है, लगातार जा रही है।"
लेकिन इसके इतर गेहूँ किसान सुशील यादव का कहना है, "सरकारी केंद्रों पर पक्षपात का बोलबाला है; जहाँ रसूखदारों को ₹10-20 ऊपर लेकर बिना कागज़ात के कितनी भी बोरियाँ दे दी जाती हैं, वहीं हम जैसे आम किसान लाइन में ही खड़े रह जाते हैं। प्रशासन खाद पर्याप्त होने का दावा करता है, लेकिन असलियत में हमें ज़रूरत से कम कोटा दिया जाता है और कभी-कभी लोकल चीज़े भी पकड़ा दी जाती हैं। इसी ज़द्दोजहद से बचने के लिए हम थोड़े महंगे दाम पर प्राइवेट से खाद लेना बेहतर समझते हैं, क्योंकि वहाँ कम से कम समय पर और बिना भेदभाव के सामान तो मिल जाता है।"
किसान के इस सवाल पर कृषि अधिकारी राजित राम कहते हैं, "नहीं ऐसा है कि देखिए, अब कोई डीएपी, एनपीके (NPK) की कोई समस्या तो जनपद में है नहीं। आपको जितनी ज़रूरत है उतनी मिली। कई बार ऐसा होता है कि 500 किसान लाइन में लगे हैं और 1000 बोरी आई, तो उसने टोकन से दो-दो बोरी बाँट दिया। लेकिन वर्तमान में है कि उपलब्धता ज्यादा होने के कारण यह स्थिति पैदा नहीं हो रही है। दूसरा पॉस (PoS) मशीन पर सिस्टम एक और आ गया कि अंगूठा लगाते ही पता लग जाता है कि आपने इस महीने में कितनी खाद ली है और इस सीजन में कितनी खाद ली है। तो उससे दुकानदार यह जान जाता है कि भाई जो आमने-सामने खड़ा है, यह इससे पहले कहाँ-कहाँ खाद ले चुका है और खतौनी उसके पास कितनी है। यदि वह कहीं नहीं लिया है और खतौनी 10 बीघे की लेके खड़ा है, तो उसको पूरी खाद मिलेगी फिर, उसमें रोक नहीं है।
वो आगे कहते हैं," सरकारी नियमों के अनुसार एक हेक्टेयर भूमि पर अधिकतम 5 बोरी खाद की सब्सिडी निर्धारित है और दस्तावेज दिखाने पर उतनी ही मात्रा प्रदान की जाती है। हालांकि किसान भाई प्रति हेक्टेयर 25 से 30 बोरी तक मांगते हैं। जब उनकी यह मांग सरकारी कोटे के कारण पूरी नहीं हो पाती, तो किसान प्रशासन पर कम खाद देने का आरोप लगाते हैं। इसी सीमा और विवाद के कारण किसान निजी विक्रेताओं की ओर रुख करते हैं, जहाँ बिना किसी रोक-टोक के अतिरिक्त मात्रा में खाद उपलब्ध हो जाती है।
किसान को कितनी खाद चाहिए होती है?
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूँ की एक एकड़ फसल में औसतन 4 से 5 बोरी यूरिया की ज़रूरत होती है। डीएपी की जरूरत 2 से 3 बोरी प्रति एकड़ मानी जाती है। आलू जैसी फसल में डीएपी और एनपीके की मांग इससे कहीं ज़्यादा होती है। लेकिन सरकारी सब्सिडी और वितरण व्यवस्था सीमित मात्रा तक ही खाद देती है। किसानों का कहना है कि ज़मीन की उर्वरता, फसल का प्रकार और सिंचाई के आधार पर खाद की ज़रूरत बदलती है, लेकिन सिस्टम हर किसान को एक ही पैमाने से देखता है।