पश्चिम बंगाल: तंगहाली से जूझ रहे बुनकर, बुनाई की पारंपरिक कला खत्म होने का सता रहा है डर

Gurvinder Singh | Apr 24, 2021, 10:04 IST
एक समय शांतिपुर में हथकरघे की आवाज सुनाई देती थी, जिस पर प्रसिद्ध तांत की साड़ियां बुनी जाती थीं, लेकिन एक के बाद एक ये हथकरघे बंद हो रहे हैं। वे बुनकर, जिन्होंने पश्चिम बंगाल चुनाव में वोट दिया था, उन्हें डर हैं कि शांतिपुर में बुनाई की कला उनके साथ ही खत्म हो जाएगी।
west bengal election 2021
शांतिपुर (पश्चिम बंगाल)। शांतिपुर में हथकरघे एक-एक करके बंद होते जा रहे हैं। शायद, टैंट (हथकरघा में साड़ी बनाने वाली मशीन को यहां टैंट कहा जाता है) से आखिरी बार साड़ियों की बुनाई की जा रही है। 70 वर्षीय बूढ़े बुनकर दिलीप नंदी ने कहा, "हम जल्द ही इतिहास बन जाएंगे।"

दिलीप नंदी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने अपने जीवन में अनगिनत शांतिपुर साड़ियों की बुनाई की हैं। दिलीप नंदी अभी भी पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में 500 साल पुरानी बुनाई परंपरा को सहेज रहे हैं।

जब साल 1947 में विभाजन हुआ था तो वर्तमान बांग्लादेश से कई बुनकर पश्चिम बंगाल में चले गए और शांतिपुर और फूलिया में हथकरघे स्थापित किए। शांतिपुर कोलकाता से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और फुलिया कॉटन साड़ियों का केंद्र बन गया।

शांतिपुर में बुनाई की गूंज अब लगभग खो गई है। बुनकर पीले और गहरे नीले रंग की साड़ियों की बुनाई करते थे और अक्सर उन पर छोटी पत्ती जैसी डिजाइन बनाते थे। अब इसकी मांग नहीं रही, जैसे एक समय पूरे दुनिया भर में थी।

352694-biswanath-deb-weaver
352694-biswanath-deb-weaver
पश्चिम बंगाल के शांतिपुर में हथकरघा बुनकर बिस्वनाथ देब। फोटो: गुरविंदर सिंह

"शांतिपुर और फुलिया में एक लाख से अधिक बुनकर मौजूद थे। अब लगभग 60,000 बुनकर ही रह गए हैं, "शांतिपुर के बुनकर बिस्वनाथ देब ने गाँव कनेक्शन को बताया। बुनकरों के 60,000 वोटों के लिए राजनीतिक दलों के बीच में लड़ाई हैं। नदिया से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अजय डे और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जगन्नाथ सरकार चुनाव लड़ रहे हैं। यहां 17 अप्रैल को मतदान हुआ था। पश्चिम बंगाल विधानसभा का आठ चरणों का चुनाव 29 अप्रैल को खत्म हो जाएगा और 2 मई को रिजल्ट जारी किया जाएगा।

दोनों राजनीतिक दलों ने वादा किया है कि अगर बुनकर उन्हें वोट करते हैं तो वे उनकी हालत सुधारने का काम करेंगे।

नादिया जिले के कृष्णानगर स्थित तृणमूल कांग्रेस के ट्रेड यूनियन नेता सनत चक्रवर्ती ने कहा कि हमारी सरकार (टीएमसी) ने बुनकरों के लिए बहुत कुछ किया है। ममता दी (मुख्यमंत्री) बुनकरों को लेकर चिंतित हैं। हमने पहले ही गरीब बुनकरों को आजीविका कमाने के लिए मुफ्त में हथकरघे दिए हैं और सरकार चुनाव के बाद उनके लिए और योजनाएं लेकर आएगी।

बीजेपी भी बुनकरों की स्थिति सुधारने का वादा कर रही है। शांतिपुर के भाजपा युवा नेता सुमंत हलदर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि हम बुनकरों को खरीदारों से जोड़ने और इसमें बिचौलियों को खत्म करने के लिए शांतिपुर में एक हब बनाने की योजना बना रहे हैं। यह बुनकरों को उनकी आय बढ़ाने में मदद करेगा। हम बुजुर्ग बुनकरों की आजीविका सुनिश्चित करने के लिए उन्हें विभिन्न पेंशन योजनाओं से जोड़ने की कोशिश करेंगे।

352695-gourang-nandi
352695-gourang-nandi
शांतिपुर में एक बुनकर प्रसिद्ध तांत की साड़ी बुन रहा है। फोटो: गुरविंदर सिंह

शांतिपुर के बुनकर

शांतिपुर में हैंडलूम साड़ियों के इतिहास का 15 वीं शताब्दी तक पता लगाया जा सकता है। इसके बाद मुगलों ने इसपर शाही संरक्षण प्राप्त कर लिया था। यह शिल्प कला अभी जीवित है, लेकिन मुश्किल हालात में है। अंग्रेजों ने किसानों को इन साड़ियों में बुने जाने वाले पारंपरिक कपास की खेती छोड़ने के लिए मजबूर किया, लेकिन इंग्लैंड में मैकेनाइज्ड टेक्सटाइल मिलों के लिए एक और किस्म बेहतर थी।

कई सारी विपत्तियों का सामना करने के बाद हैंडलूम बुनकर अब थके हुए हैं। वे पावरलूम और सिंथेटिक साड़ियों से प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं और उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही हैं। साड़ियों की बुनाई के चलते उनकी आंखें दुखती हैं और वे बीमारियों से ग्रस्त हैं। उनमें ऊर्जा और आशा है और वे ये भी जानते हैं कि वे अपनी तरह के अंतिम हैं।

बुनकर नंदी ने गांव कनेक्शन को बताया,"मेरे बेटे एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे हैं और इस काम में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। एक बार जब हम अपनी कब्र में चले जाएंगे तो शांतिपुर में हथकरघे की कोई आवाज नहीं सुनाई देगी।"

352696-img20210403172538
352696-img20210403172538
शांतिपुर में बुनकरों की युवा पीढ़ी को हैंडलूम से साड़ी बुनाई का पारंपरिक काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। फोटो: गुरविंदर सिंह

66 वर्षीय बिश्वनाथ देब ने दोहराया कि युवा पीढ़ी को बुनाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे नौकरी करके अच्छी कमाई कर पा रहे हैं। अगर वे साड़ियों की बुनाई करते तो उनके हाथ में केवल मुठ्ठी भर रुपये आ पाते। "हमें हर साड़ी के लिए लगभग सौ रुपए मिलते हैं और प्रत्येक साड़ी की बुनाई खत्म करने में हमें एक से डेढ़ दिन लग जाता है। हम एक हफ्ते में दो से तीन साड़ियों से अधिक बुनाई नहीं कर पाते हैं, "बिश्वनाथ देब ने गाँव कनेक्शन को बताया। बुनकरों का कहना है कि जिनके पास कभी पांच हथकरघा थे, लेकिन अब केवल एक ही बचा है।

हथकरघा और पावरलूम वाले बुनकर दोनों ही कोरोना महामारी से प्रभावित हैं। "बुनकरों की आर्थिक स्थिति कोरोना महामारी में और भी खराब हो गई है। पहले हमें लगभग 120 रुपए साड़ी की बुनाई पर मिल जाते थे, लेकिन अब हमें 70 रुपए भी नहीं मिलते हैं, "36 वर्षीय बपी नंदी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बपी नंदी ने 85,000 रुपए की लागत से पावरलूम की स्थापना की हैं। हैंडलूम साड़ियों की कीमत 300 रुपए से ऊपर है, जबकि पावरलूम वालों की कीमत लगभग 200 रुपये प्रति साड़ी है।

बुनकरों के लिए अंधकारमय समय

जब हैंडलूम साड़ियों में गिरावट आया तो पावरलूम को जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन पावरलूम बुनकरों के लिए भी चीजें निराशाजनक हैं।

36 वर्षीय गौरंग नंदी के पास बोलने का समय शायद ही है क्योंकि उन्हें डेडलाइन से पहले साड़ी की बुनाई कर लेनी हैं. लेकिन, वह पावरलूम रोकर गांव कनेक्शन को बताते हैं कि पावरलूम बुनकरों की स्थिति काफी अच्छी नहीं है. गौरंग नंदी कहते हैं कि हम एक दिन में पांच साड़ी बुन सकते हैं, लेकिन हमें केवल 70 रुपये प्रति साड़ी का भुगतान किया जाता है. सामान्य रूप से साड़ी की बुनाई में दो से तीन घंटे लगते हैं.

एक पावरलूम बुनकर को एक दिन में कम से कम पांच साड़ियां बुननी पड़ती हैं. एक दिन में वह लगभग 350 रुपये की कमाई कर पाता है, लेकिन उसे इसी में बिजली और मजदूरी का भुगतान करना पड़ता है."जीविका चलाने के लिए यह आय मुश्किल से पर्याप्त है और काम भी अनियमित है, क्योंकि शांतिपुर साड़ियों की मांग घट रही है." गौरंग नंदी ने गांव कनेक्शन को बताया.

352697-unit-of-a-weaver-in-shantipur
352697-unit-of-a-weaver-in-shantipur
शांतिपुर हथकरघा बुनकर ऐसी जीर्ण-शीर्ण इकाइयों में काम करते हैं। फोटो: गुरविंदर सिंह

महाजनों (व्यापारियों) ने बुनकरों को बताया कि अब लोग सूती साड़ियों को पसंद नहीं करते हैं। महाजन बुनकरों को कच्चा माल प्रदान करते हैं और तैयार उत्पाद एकत्र करने के बाद उसे उन्हें विक्रेताओं को बेचते हैं। व्यापारी उत्तम साधुखान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मांग गिरने के पीछे सिंथेटिक कपड़ों से प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है जबकि बुनकर अभी भी सूती धागे पर काम करते हैं।" उन्होंने यह भी बताया कि सिंथेटिक साड़ियों की तुलना में कॉटन साड़ियों की लागत लगभग दोगुनी होती है। लगभग चार से पांच साल पहले हमारा उत्पादन एक महीने में एक हजार साड़ी का था जो घटकर सिर्फ दो सौ रह गया है। हमने इतने बुरे दिन पहले कभी नहीं देखें थे।

नादिया जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स के संयुक्त सचिव तारक दास ने गाँव कनेक्शन को बताया कि हैंडलूम बुनकर लुप्त हो रहे हैं, लेकिन पावरलूम वाले बुनकरों की स्थिति बहुत बुरी नहीं हैं। लॉकडाउन के चलते बुनकरों की मजदूरी कम रही है, लेकिन यह जल्द ही सामान्य हो जाएगी। उन्होंने बताया कि पावरलूम बुनकर अभी भी लगभग 350 रुपये प्रतिदिन कमा लेते हैं जो वर्तमान परिस्थितियों में खराब नहीं है। दास सूती साड़ियों का थोक व्यापार भी करते हैं।

शांतिपुर में चुनाव से मतदाताओं को किसी भी चमत्कार की बहुत उम्मीद नहीं है जो उनके स्थिति में कोई बदलाव ला पाएं। वे अब तक किए गए सभी वादों को देख चुके हैं, जिसे कभी भी पूरा नहीं किया गया है। वे कहते हैं कि उनका शिल्प और व्यापार कई वर्षों से लगातार गिरता जा रहा है, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने उनकी मदद के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।

(अनुवाद: आनंद कुमार)

यह खबर अंग्रेजी में पढ़ें

Tags:
  • west bengal election 2021
  • west bengal
  • story
  • video

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.