पश्चिम बंगाल: सिकुड़ रही है घुरनी की प्रसिद्ध मिट्टी की गुड़िया की दुनिया, गौरवशाली रहा है इतिहास

अपनी कला और संस्कृति के लिए विख्यात पश्चिम बंगाल में कई ऐसे हुनर हैं जिनका दुनिया लोहा मानती हैं। इन्हीं में से एक है मिट्टी की गुड़िया (मैटिर पुतुल) जो विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन अब इन्हें बनाने वाले कारीगरों के सामने आजीविका का संकट है। मांग कम होने से यह कला लुप्त होने की कगार पर है।

Gurvinder SinghGurvinder Singh   24 April 2021 5:05 AM GMT

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घुरनी (पश्चिम बंगाल)। बांग्ला कला की अद्भुत मिसाल मिट्टी की ये गुड़िया ऊंचाई में 2 से 3 इंच की होती है, लेकिन अपने अंदर पूरा ग्रामीण जीवन समेटे होती हैं। सब्जी काटती महिलाएं, हाट बाजार में दुकानदार, इकतारा बजाता कलाकार, संथाल (आदिवासी) नृत्य, दुल्हा-दुल्हन और यहां तक की पशु-पक्षी के पुतलों को देखकर एक बारगी आपको लगेगा कि ये किसी भी पल बोल पड़ेंगी।

दरअसल घुरनी की मिट्टी की गुड़िया (मैटिर पुतुल) की कलात्मक दुनिया है ही ऐसी। इसका इतिहास महाराजा कृष्ण चंद्र (1710-1783) के शासनकाल से जुड़ा है, लेकिन अब थोड़ा बदलाव यहां दिखता है और मौजूदा वक्त में क्रिकेटर, फिल्मी सितारों और लोकप्रिय कॉमिक किरदार भी इन मैटिर पुतुल में नजर आते हैं।

पश्चिम बंगाल में नदिया जिले के कृष्णा नगर में एक छोटी सी जगह है घुरनी, जहां पर मिट्टी की गुडिया आज भी बनाई बनाई और बेची जाती हैं। प्रदीप पाल कुछ सालों से गुड़िया बाजार (पुतुल पट्टी) में घुरनी की इन प्रसिद्ध मिट्टी की गुड़िया को बेच रहे हैं। 55 साल के इस बुजुर्ग ने पिछले वर्षों में इसमें मुनाफा कमाया है और अपने बुढ़ापे के लिए पैसा भी जोड़ा है।

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 100 किलोमीटर दूर कृष्णानगर में करीब 300 पारंपरिक गुड़िया निर्माता और मजदूर रहते हैं। पिछले कुछ समय से उनकी आजीविका संकट में है। मिट्टी की गुड़िया खरीदारों को खो रही हैं, एक पारंपरिक शिल्प की चमक तेजी से कम हो रही है।

मिट्टी की गुडिया बेचने वाले प्रदीप पाल बाजार में नकली गुड़िया आने से परेशान हैं। फोटो- गुरविंदर सिंह

"हमें अब बड़ी मुश्किल से खरीदार मिलते हैं। पिछले दो दशकों में हालात में पूरी तरह से बदलाव आया है।" प्रदीप ने गांव कनेक्शन को बताया।

"कुछ कारीगर घटिया सामग्री से गुड़िया बनाते हैं और उन्हें मेलों और प्रदर्शनियों में घुरनी की गुड़िया के नाम पर बेचते हैं। ये गुड़िया कुछ ही दिनों में अपनी चमक खो देती हैं और इससे वास्तविक निर्माताओं की बदनामी होती है। जब तक यह बंद होगा, हमारे शिल्प और उसे बनाने वाले इतिहास के पन्नों तक ही सीमित रह जाएंगे।" दुःख के साथ प्रदीप ने आगे बताया।

घुरनी, कृष्णा नगर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां 22 अप्रैल को विधानसभा चुनावों के लिए मतदान हुआ। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) की उम्मीदवार टॉलीवुड अभिनेत्री कोशनी मुखर्जी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने यहां दिग्गज नेता मुकुल रॉय को उतारा है। रॉय ममता बनर्जी के पूर्व सहयोगी हैं और बीजेपी की तरफ से मैदान में हैं।

क्या है मिट्टी की गुड़िया का इतिहास

नदिया जिले के घुरनी ने हमेशा पश्चिम बंगाल की कला और संस्कृति के क्षेत्र के लिए एक स्तंभ के रूप में कार्य किया है। कृष्णा नगर की मिट्टी की गुड़िया का एक शानदार अतीत है। महाराजा कृष्णचंद्र (1710-1783) ने 1757 में प्लासी की लड़ाई में सिराज उद-दौला के खिलाफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद की थी। महाराजा कृष्ण चंद्र साहित्य, संगीत और कलाओं के संरक्षक थे और मिट्टी की गुड़िया की कला को आगे बढ़ाने में मददगार थे।

1727 में वह ढाका और नाटोरे (वर्तमान में बांग्लादेश में हैं) से कुम्हार के परिवारों को लाए और उन्हें घुरनी में बसा दिया। तब से कारीगर यहां रहकर मिट्टी की गुड़िया, खिलौने और यहां तक कि मूर्तियां भी बना रहे हैं।

ये हैं घुरनी की प्रसिद्ध मिट्टी की गुड़िया।

क्या है, जो इन गुड़िया को खास बनाता है


घुरनी की मिट्टी की गुड़िया असाधारण रूप से अलग हैं। वे पारंपरिक मिट्टी के काम से आगे बढ़कर प्रतिनिधित्व करती हैं। फिर भी कुछ पहलू सदियों पुरानी तकनीकों में निहित हैं। पारंपरिक काम की तरह गुड़िया निर्माता लोहे की छोटी-छोटी तारों से इसे एक आकार देते हैं और फिर नाजुक उपकरणों के साथ इस पर काम करते हैं। गुड़िया को एक भट्टी में पकाया जाता है। वार्निश का एक अंतिम कोट देने के बाद उसे पेंट किया जाता है और फिर कपड़े पहनाए जाते हैं।

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इससे पहले गुड़िया को जलंगी नदी के किनारे से मंगवाई गई मिट्टी से बनाया जाता था। लेकिन अब, कारीगर कृषि क्षेत्रों की मिट्टी का उपयोग करते हैं, क्योंकि नदी के किनारों से मिट्टी उठाने पर प्रतिबंध है।

मिट्टी की गुड़िया बनाने वाले कारीगर अपनी इस कला और अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। क्योंकि घुरनी गुड़िया की मांग हर गुजरते दिन के साथ कम होती जा रही है।

51 वर्षीय कारीगर मंटू पाल ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमें थोक विक्रेताओं से कोई ऑर्डर नहीं मिलते और यहां तक कि खुदरा बाजार भी बहुत उत्साहजनक नहीं है। कच्चे माल की कीमतें बढ़ गई हैं, लेकिन गुड़िया अभी भी पुरानी कीमत पर बेची जा रही है, क्योंकि लोग सही कीमत नहीं चुकाना चाहते। कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन ने स्थिति को बदतर बना दिया है। हमारी योग्यता गुमनामी में फीकी पड़ सकती हैं।"

सुबीर पाल

संस्थागत प्रशिक्षण की है आवश्यकता

घुरनी की गिरती प्रतिष्ठा के लिए कारीगर गुड़िया के सस्ते संस्करण (नकली गुडिया) के अलावा प्रशिक्षण संस्थानों की कमी को भी दोष देते हैं। प्रसिद्ध कारीगर 51 वर्षीय सुबीर पाल ने गांव कनेक्शन को बताया, "युवा पीढ़ी को कला में कोई रुचि नहीं है। क्योंकि यहां कोई प्रशिक्षण संस्थान या कोई कला महाविद्यालय नहीं है। बावजूद इसके कृष्णानगर अपनी गुड़िया के साथ विश्वव्यापी प्रसिद्धि पा रहा है। ऐसा कोई संग्रहालय नहीं है, जो युवाओं को प्रेरित कर सके। हमने प्रशासन से घुरनी को समर्पित संस्था बनाने के लिए कई बार अपील की है, लेकिन कुछ भी काम नहीं हुआ है।"

सुबीर ने ममता बनर्जी सरकार पर आरोप लगाया कि वह घुरनी को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं कर रही है। उन्होंने आगे कहा, "घुरनी कृष्णा नगर रेलवे स्टेशन से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन लोग इस कला से परिचित हो सकें सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। सरकार पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए घुरनी मूर्तियों का सौंदर्यीकरण कर सकती है।"

माचिस की तीलियों से ताजमहल बनाकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाले साहेली पाल घुरनी के रहने वाले हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "हमने अपने बड़ों को मिट्टी की गुड़िया को आकार देते देखा है और उन्हें देख कर सीखा है, लेकिन दूसरे लोग जो शिल्प सीखना चाहते हैं उन्हें एक संस्थान की जरूरत है। सरकार को एक आर्ट कॉलेज बनाना चाहिए, जहां हमारे पूर्वजों की रचनाओं (कृतियों) का प्रदर्शन हो, जिससे युवाओं को प्रेरित किया जा सकें।"

घुरनी में मिट्टी के पुतले को आकार देता कलाकार। फोटो- गुरविंदर सिंह

चूंकि प्रदेश में चुनावी माहौल है, इसलिए राजनेताओं को घुरनी के मिट्टी के पुतलों के प्रति अपनी चिंता दिखाने की जल्दी है।

टीएमसी नेता दिलीप बिस्वास ने कहा, "राज्य सरकार घुरनी कारीगरों को लेकर चिंतित है। हमने उन्हें एक बड़े क्षेत्र में स्थानांतरित करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने जाने से इनकार कर दिया। सरकार उन्हें हजार रुपये मासिक पेंशन भी मुहैया करा रही है। अगर हम तीसरी बार सत्ता में लौटते हैं तो हमारे पास इनके लिए योजनाएं हैं।"हालांकि भाजपा ने लगातार अपीलों के बावजूद कुछ नहीं करने के लिए टीएमसी को दोषी ठहराया। भाजपा के एक स्थानीय नेता बिल्टू पंडित ने कहा, "हम स्थानीय प्रशासन से कई बार कारीगरों के लिए एक न्यूनतम मजदूरी देने और आसान ऋण उपलब्ध कराने की सुविधा की पेशकश की, लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं किया है। अगर हम सत्ता में आते हैं तो उनका उत्थान हमारी प्राथमिकता होगी।"

चुनावी सरगर्मियों के बीच सुबीर से लेकर प्रदीप पाल तक के मन में सवाल गूंजता रहता है,

गुजरते वक्त में क्या घुरनी के मिट्टी के पुतले खुद को बचा पाएंगे?

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