लखनऊ में चालू हैं पॉलीथीन फैक्ट्रियां

दिति बाजपेई | Sep 16, 2016, 16:15 IST
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लखनऊ। पर्यावरण को बचाने के लिए लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में जोर-शोर से शुरू किया गया पॉलीथीन पर प्रतिबंध का अभियान किसी काम का नहीं साबित हुआ। सब्जी के ठेलों से लेकर बड़ी-बड़ी दुकानों तक खुलेआम पॉलीथीन का प्रयोग हो रहा है। हालत यह है कि अब तो लखनऊ में कुछ दिन बंद रही पॉलीथीन बनाने की फैक्ट्रियां भी धड़ल्ले से चालू हो गई हैं।

पॉलीथीन से बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने पॉलीथीन के इस्तेमाल पर 21 जनवरी को प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ दिन तक शहर में दुकानदारों पर छापेमारी की गई। नियम न मानने वाले दुकानों से जुर्माना भी वसूला गया है। फैक्ट्रियों पर ताले भी लगाए गए, लेकिन अब अभियान पूरी तरह से ठप हो चुका है।

गाँव कनेक्शन की संवाददाता ने नरही व अहियागंज की दुकानों में पॉलीथिन मांगी तो बिना किसी संकोच के दुकानदारों ने दे दी। नरही में थोक विक्रेता सवित्री कुमार ने बताया, “बीच में कुछ दिनों कारोबार मंदा रहा था, लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं है। दिनभर में पांच-छह पैकेट (5-6 किलो) बिक जाते हैं”। नरही में फल, सब्जी और मछली समेत कई मंडिया हैं, यहां धड़ल्ले से पॉलीबैग का प्रयोग होता है।

वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट के अनुमान के अनुसार भारत में औसतन प्रति वर्ष प्रत्येक व्यक्ति तीन किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है। प्रदेश में पॉलीथीन पर है पूर्ण प्रतिबंध के तहत रेहड़ी-खोमचे वाले, सब्जी वाले, मिठाई और कपड़े के दुकानदार खाद्य पदार्थ या अखाद्य पदार्थ का पॉलीथीन में भंडारण नहीं करेगा। इसके साथ ही किसी भी प्रकार की पॉलीथीन का निर्माण, विपणन, बिक्री या व्यापार नहीं कर सकेगा। इसमें पॉली प्रॉपलीन न बुने हुए फैब्रिक प्रकार के पॉलीबैग भी शामिल हैं। 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलीथीन पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए बेहद खतरनाक है।

पॉलीथिन बनाने, बेचने, भंडारण और इस्तेमाल करने पर पांच साल तक जेल और एक लाख रुपए जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि दोषसिद्ध होने के एक साल बाद भी उल्लंघन जारी रहता है तो जेल की अवधि सात साल तक बढ़ायी जा सकती है।

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