केरल और लक्षद्वीप में शून्य तो राजस्थान में बढ़ी सिर्फ 1 रुपए मनरेगा मजदूरी
Madhav Sharma | Mar 17, 2021, 13:18 IST
सभी राज्यों की बात करें तो मजदूरी में एक रुपए से लेकर 23 रुपए तक की बढ़ोतरी की गई है।
केन्द्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर दी है। 15 मार्च को ग्रामीण विकास मंत्रालय के नोटिफिकेशन के अनुसार केरल और लक्षद्वीप में एक भी पैसे की बढ़ोतरी नहीं की गई है जबकि राजस्थान में सिर्फ एक रुपए मनरेगा मजदूरी बढ़ाई गई है।
राजस्थान में अब तक मनरेगा (NREGA) में अकुशल मजदूरों की मजदूरी 220 रुपए तय थी जो एक अप्रैल से 221 रुपए दी जाएगी। जबकि उत्तर प्रदेश में 3 रुपए बढ़कर मजदूरों को 204 रुपए मिलेंगे। सभी राज्यों की बात करें तो मजदूरी में एक रुपए से लेकर 23 रुपए तक की बढ़ोतरी की गई है। राजस्थान इस बढ़ोतरी के मामले में देश में सबसे पीछे है। प्रदेश में मनरेगा मजदूरों को यहां के निर्माण मजदूरों से भी कम मजदूरी मिल रही है। राजस्थान में अकुशल मजदूरी 225 रुपए है।
सबसे ज्यादा मजदूरी मेघालय में (23 रुपए) बढ़ाई गई है। यहां अब तक मनरेगा में काम करने वाले अकुशल मजदूरों को 203 रुपए मजदूरी मिल रही थी, जो अगले वित्तीय वर्ष से 226 रुपए हो जाएगी।
राजस्थान मजदूरी देने के मामले में देश के 17 राज्यों से पीछे है। सबसे ज्यादा मजदूरी हरियाणा में 315 रुपए प्रति दिन है। वहीं, देश में सबसे कम मनरेगा मजदूरी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश (193 रुपए) है।
मात्र एक रुपए बढ़ोतरी को लेकर मनरेगा पर काम करने वाले राजस्थान के कई सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है। संगठनों का कहना है कि देशभर में महंगाई चरम पर है। डीजल-पेट्रोल से लेकर खाने-पीने की चीजें तक महंगी हो रही हैं। ऐसे में सरकार ने मजदूरी में सिर्फ एक रुपए बढ़ोतरी कर मनरेगा मजदूरों के साथ मजाक किया है।
कैसे तय होती है मनरेगा मजदूरी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार मनरेगा मजदूरी तय करने का कोई अलग से पैमाना नहीं है। मनरेगा एक्ट-2005 की धारा 6 (1) में कहा गया है कि मजदूरी का कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-एग्रीकल्चर से कोई सीधा संबंध नहीं होगा, लेकिन फिलहाल मजदूरी इसी सूचकांक से ही तय हो रही है। राज्यवार निकाले जाने वाले इस सूचकांक के आधार पर सीपीआई-एग्रीकल्चर जितना बढ़ता है उतनी ही मजदूरी उस राज्य में बढ़ जाती है। अगर सूचकांक कम हो जाए तो मजदूरी कम होने के आसार भी होते हैं। हालांकि सूचकांक कम होने की स्थिति में अभी तक किसी राज्य में मजदूरी कम करने की जानकारी नहीं है। उसे बीते साल के बराबर ही रखा जाता है।
हैरानी की बात है कि जब गांव कनेक्शन ने राजस्थान के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार सिंह से मजदूरी तय करने का फार्मूला जानना चाहा तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दिया। कहा, "केन्द्र सरकार ये रेट तय करती है। मुझे इसकी जानकारी नहीं है कि मजदूरी कैसे तय होती है। राज्य का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता।"
मजदूरी सीपीआई-रूरल से तय करने की मांग
राजस्थान सहित देशभर में कई संगठन मनरेगा मजदूरी कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-रूरल (सीपीआई-रूरल) से तय करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि मनरेगा ग्रामीण भारत की योजना है तो मजदूरी भी ग्रामीण भारत की महंगाई और बाजार के हिसाब से तय होनी चाहिए।
जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे गांव कनेक्शन को बताते हैं कि मनरेगा में मजदूरी तय करने का फार्मूला सीपीआई-रूरल के करने की हम लोग कई साल से मांग कर रहे हैं। सरकार ने इसके लिए 2014 में सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई जिसे इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के तत्कालीन डायरेक्टर एस. महेन्द्र देव ने चेयर किया था। इस कमेटी के सदस्य निखिल डे भी रहे थे।
कमेटी ने केन्द्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में मनरेगा मजदूरों को लेकर कई सिफारिशें दीं। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों में न्यूनतम मजदूरी और मनरेगा मजदूरी में जो भी ज्यादा हो, उसे लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा हर साल कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-रूरल के सूचकांक के आधार पर मनरेगा मजदूरी में बढ़ोतरी की सिफारिश भी महेन्द्र देव कमेटी ने की।
राजस्थान सरकार में मनरेगा कमिश्नर पी.सी किशन ने कहा, "जो मजदूरी बढ़ाई गई है वो सीपीआई या होल-सेल प्राइज इंडेक्स के आधार पर बढ़ाई जाती है। इसीलिए जो रेट राजस्थान की रही उसके अनुसार मजदूरी बढ़ी है। ये काफी है।"
किशन ने सीपीआई-रूरल से मजदूरी तय करने के सवाल पर कहा, "ये फॉर्मूला सभी राज्यों के लिए लागू होता है। सूचकांक के आधार पर ही मजदूरी हर साल तय होती है। इसमें राज्य को केन्द्र से कोई शिकायत नहीं है।"
बीते तीन साल में सबसे ज्यादा से कम मजदूरी देने वाले राज्यों की स्थिति जानिए
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राजस्थान में अब तक मनरेगा (NREGA) में अकुशल मजदूरों की मजदूरी 220 रुपए तय थी जो एक अप्रैल से 221 रुपए दी जाएगी। जबकि उत्तर प्रदेश में 3 रुपए बढ़कर मजदूरों को 204 रुपए मिलेंगे। सभी राज्यों की बात करें तो मजदूरी में एक रुपए से लेकर 23 रुपए तक की बढ़ोतरी की गई है। राजस्थान इस बढ़ोतरी के मामले में देश में सबसे पीछे है। प्रदेश में मनरेगा मजदूरों को यहां के निर्माण मजदूरों से भी कम मजदूरी मिल रही है। राजस्थान में अकुशल मजदूरी 225 रुपए है।
सबसे ज्यादा मजदूरी मेघालय में (23 रुपए) बढ़ाई गई है। यहां अब तक मनरेगा में काम करने वाले अकुशल मजदूरों को 203 रुपए मजदूरी मिल रही थी, जो अगले वित्तीय वर्ष से 226 रुपए हो जाएगी।
राजस्थान मजदूरी देने के मामले में देश के 17 राज्यों से पीछे है। सबसे ज्यादा मजदूरी हरियाणा में 315 रुपए प्रति दिन है। वहीं, देश में सबसे कम मनरेगा मजदूरी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश (193 रुपए) है।
मात्र एक रुपए बढ़ोतरी को लेकर मनरेगा पर काम करने वाले राजस्थान के कई सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है। संगठनों का कहना है कि देशभर में महंगाई चरम पर है। डीजल-पेट्रोल से लेकर खाने-पीने की चीजें तक महंगी हो रही हैं। ऐसे में सरकार ने मजदूरी में सिर्फ एक रुपए बढ़ोतरी कर मनरेगा मजदूरों के साथ मजाक किया है।
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कैसे तय होती है मनरेगा मजदूरी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार मनरेगा मजदूरी तय करने का कोई अलग से पैमाना नहीं है। मनरेगा एक्ट-2005 की धारा 6 (1) में कहा गया है कि मजदूरी का कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-एग्रीकल्चर से कोई सीधा संबंध नहीं होगा, लेकिन फिलहाल मजदूरी इसी सूचकांक से ही तय हो रही है। राज्यवार निकाले जाने वाले इस सूचकांक के आधार पर सीपीआई-एग्रीकल्चर जितना बढ़ता है उतनी ही मजदूरी उस राज्य में बढ़ जाती है। अगर सूचकांक कम हो जाए तो मजदूरी कम होने के आसार भी होते हैं। हालांकि सूचकांक कम होने की स्थिति में अभी तक किसी राज्य में मजदूरी कम करने की जानकारी नहीं है। उसे बीते साल के बराबर ही रखा जाता है।
हैरानी की बात है कि जब गांव कनेक्शन ने राजस्थान के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार सिंह से मजदूरी तय करने का फार्मूला जानना चाहा तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दिया। कहा, "केन्द्र सरकार ये रेट तय करती है। मुझे इसकी जानकारी नहीं है कि मजदूरी कैसे तय होती है। राज्य का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता।"
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मजदूरी सीपीआई-रूरल से तय करने की मांग
राजस्थान सहित देशभर में कई संगठन मनरेगा मजदूरी कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-रूरल (सीपीआई-रूरल) से तय करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि मनरेगा ग्रामीण भारत की योजना है तो मजदूरी भी ग्रामीण भारत की महंगाई और बाजार के हिसाब से तय होनी चाहिए।
जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे गांव कनेक्शन को बताते हैं कि मनरेगा में मजदूरी तय करने का फार्मूला सीपीआई-रूरल के करने की हम लोग कई साल से मांग कर रहे हैं। सरकार ने इसके लिए 2014 में सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई जिसे इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के तत्कालीन डायरेक्टर एस. महेन्द्र देव ने चेयर किया था। इस कमेटी के सदस्य निखिल डे भी रहे थे।
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कमेटी ने केन्द्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में मनरेगा मजदूरों को लेकर कई सिफारिशें दीं। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों में न्यूनतम मजदूरी और मनरेगा मजदूरी में जो भी ज्यादा हो, उसे लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा हर साल कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स-रूरल के सूचकांक के आधार पर मनरेगा मजदूरी में बढ़ोतरी की सिफारिश भी महेन्द्र देव कमेटी ने की।
राजस्थान सरकार में मनरेगा कमिश्नर पी.सी किशन ने कहा, "जो मजदूरी बढ़ाई गई है वो सीपीआई या होल-सेल प्राइज इंडेक्स के आधार पर बढ़ाई जाती है। इसीलिए जो रेट राजस्थान की रही उसके अनुसार मजदूरी बढ़ी है। ये काफी है।"
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किशन ने सीपीआई-रूरल से मजदूरी तय करने के सवाल पर कहा, "ये फॉर्मूला सभी राज्यों के लिए लागू होता है। सूचकांक के आधार पर ही मजदूरी हर साल तय होती है। इसमें राज्य को केन्द्र से कोई शिकायत नहीं है।"
बीते तीन साल में सबसे ज्यादा से कम मजदूरी देने वाले राज्यों की स्थिति जानिए
| राज्य | सालवार मजदूरी | इस साल हुई बढ़ोतरी | ||
| 2021-22 | 2020-21 | 2019-20 | ||
| हरियाणा | 315 | 309 | 284 | 9 |
| गोवा | 294 | 280 | 254 | 14 |
| केरल | 291 | 291 | 271 | 0 |
| कर्नाटक | 289 | 275 | 249 | 14 |
| अंडमान | 279 | 267 | 250 | 12 |
| पुड्डुचेरी | 273 | 256 | 229 | 17 |
| तमिलनाडू | 273 | 256 | 229 | 17 |
| दादरा-नागर हवेली | 269 | 258 | 224 | 11 |
| पंजाब | 269 | 263 | 241 | 6 |
| लक्षद्वीप | 266 | 266 | 248 | 0 |
| मणिपुर | 251 | 238 | 219 | 13 |
| महाराष्ट्र | 248 | 238 | 206 | 10 |
| तेलंगाना | 245 | 237 | 211 | 8 |
| आंध्रप्रदेश | 245 | 237 | 211 | 8 |
| मिजोरम | 233 | 225 | 211 | 8 |
| गुजरात | 229 | 224 | 199 | 5 |
| मेघालय | 226 | 203 | 187 | 23 |
| असम | 224 | 213 | 193 | 11 |
| राजस्थान | 221 | 220 | 199 | 1 |
| ओडिशा | 215 | 207 | 188 | 8 |
| लद्दाख | 214 | 204 | - | 10 |
| जम्मू-कश्मीर | 214 | 204 | 189 | 10 |
| प. बंगाल | 213 | 204 | 191 | 9 |
| त्रिपुरा | 212 | 205 | 192 | 7 |
| सिक्किम | 212 | 205 | 192 | 7 |
| नगालैंड | 212 | 205 | 192 | 7 |
| अरुणाचल | 212 | 205 | 192 | 7 |
| उत्तराखंड | 204 | 201 | 182 | 3 |
| यूपी | 204 | 201 | 182 | 3 |
| हिमाचल प्रदेश | 203 | 198 | 185 | 5 |
| झारखंड | 198 | 194 | 171 | 4 |
| बिहार | 198 | 194 | 171 | 4 |
| एमपी | 193 | 190 | 176 | 3 |
| छत्तीसगढ़ | 193 | 190 | 176 | 3 |