बाढ़ के बादः बाढ़ के पानी में बह रही मोकामा दाल किसानों की आस

Daya Sagar | Nov 12, 2019, 13:47 IST
'बाढ़ के बाद' के हालात को जानने-समझने के लिए गांव कनेक्शन की टीम देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा कर रही है। इसी क्रम में टीम बिहार के मोकामा टाल पहुंची, जिसे 'दाल का कटोरा' कहा जाता है। जानिए कैसे हैं, वहां बाढ़ के बाद के हालात-
#bihar flood
"यह जो चारों तरफ आप पानी-पानी देख रहे हैं ना भईया, वह कोई नदी या ताल नहीं बल्कि हमारा खेत है। कुछ साल पहले तक दीवाली-छठ से पहले बाढ़ का पानी हमारी खेतों से बाहर निकल जाता था और हम दाल की बुआई कर खुशी-खुशी त्योहार मनाते थे। लेकिन देखिए अभी क्या हो रहा है। पहले धान की खड़ी की खड़ी फसल बाढ़ की वजह से बर्बाद हो गई और अब दाल की फसल पर भी संकट आ गया है। खेत में दस फीट पानी जमा है, बुआई कहां करें?"

बिरंची महतो (32 वर्ष) पानी में डूबे सैकड़ों एकड़ खेत को दिखाते हुए कहते हैं। बिहार के मोकामा टाल के त्रिमोहान गांव के सुरेंद्र एक सीमांत किसान हैं, जो अपने दो बीघा खेती के साथ-साथ बड़े किसानों और जमींदारों के खेतों में मजदूरी करते हैं ताकि उनका घर चल सके।

'दाल का कटोरा' कहे जाने वाला 'मोकामा टाल' बिहार के चार जिलों पटना, नालंदा, लखीसराय और शेखपुरा के एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक जमीन पर फैला हुआ है। इस क्षेत्र के लगभग 1.5 लाख किसान और 3 लाख खेतिहर मजदूर दाल की खेती करते हैं। लेकिन नवंबर में भी खेतों में बाढ़ का पानी जमा होने की वजह से किसान दाल की बुआई नहीं कर पा रहे हैं।

342105-mokama-8
342105-mokama-8
किसानों के खेत पानी में डूबे हुए हैं और किसान इंतजार कर रहे हैं कि पानी कब जाए और वे बुआई शुरु करें।

एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ पुनपुन, हरोहर, मोरहर, धोबा, सकरी, जोह और फलगू सहित दर्जन भर छोटी नदियों से घिरे मोकामा टाल का आकार कटोरीनुमा है। बारिश के समय नदियों में बढ़ा हुआ पानी इस कटोरीनुमा क्षेत्र में इकट्ठा होता है। इसलिए इस क्षेत्र को ताल या 'टाल' कहा जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार अंग्रेज ताल (Taal) का उच्चारण 'टाल' करते थे, जो कि बोलते-बोलते बाद में टाल ही हो गया।

मानसून के वक्त टाल में इकट्ठा हुआ पानी यहां के किसानों के लिए फायदेमंद होता है बशर्ते यह समय से ही वापस निकल जाए। बाढ़ का पानी अपने साथ गाद लाती है, जो यहां की काली मिट्टी को उपजाऊ बनाते हुए दाल की फसल के लिए अनुकूल हालात पैदा करती है। बाढ़ के पानी का टाल से निकलने का आदर्श समय 30 सितंबर से 15 अक्टूबर है लेकिन हाल के कुछ वर्षों में बाढ़ का पानी टाल क्षेत्र में अधिक देर तक रुकने लगा है, जिसकी वजह से दाल की खेती पर गहरा असर पड़ा है।

इस साल तो किसानों पर प्रकृति की दोहरी मार पड़ी है। सितंबर के अंत में गंगा नदी में आई बाढ़ ने ना सिर्फ किसानों से उनकी खरीफ (धान आदि) की फसल छीन ली बल्कि रबी के फसल पर भी तलवार लटका दिया है।

खेतिहर मजदूर सुरेंद्र (34 वर्ष) कहते हैं, "पहले हमारी धान की फसल बाढ़ के पानी में डूब गई, जब सिर्फ कटाई होना बाकी था। समझ लिजिए, हमारी थाली से भात छीन लिया गया। अब दाल अगहन (नवंबर) में बो पाएंगे या पूस (दिसंबर) में, यह पता नहीं है?" सुरेंद्र कहते हैं कि हालत इतने खराब हो गए हैं कि युवाओं को दाल की पारम्परिक खेती छोड़ दिल्ली, मुंबई, गुजरात और पंजाब की तरफ पलायन करना पड़ रहा है। वह खुद अभी गुजरात से होकर आए हैं।

342069-mokama-9
342069-mokama-9
पीछे पानी में डूबे अपने खेत को दिखाते सुरेंद्र। सुरेंद्र गुजरात में रहकर मजदूरी करते हैं और दाल की बुआई के लिए गांव आए हुए हैं।

मोकामा टाल के लाखों किसान उम्मीद लगाए हुए हैं कि उनके खेतों से बाढ़ का पानी जल्द से जल्द निकले और वे दाल की बुआई शुरू करें। दाल की बुआई का आदर्श समय 15 अक्टूबर से शुरू होता है, लेकिन इस बार पानी की वजह से नवंबर के अंत तक भी बुआई की कोई स्थिति बनती नहीं दिख रही।

'टाल चौपाल' नाम की एक पत्रिका निकालने वाले दाल किसान आनंद मुरारी कहते हैं कि ऐसा गंगा और क्षेत्र की अन्य नदियों में गाद जमा होने के कारण हो रहा है। वह आगे बताते हैं, "गंगा और टाल क्षेत्र में बहने वाली नदियों की तलहटी में गाद जमा हो गया है, जिसकी वजह से अब टाल से पानी आसानी से नहीं निकल पाता। पिछले एक दशक में कई बार ऐसा हुआ है कि अक्टूबर में भी पानी ठहरा रहे। हम कई सालों से प्रशासन से जलभराव की इस समस्या के निपटारे की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी नहीं सुन रहा।"

दरअसल इस टाल क्षेत्र में दर्जनभर नदियों के साथ-साथ सैकड़ों पईन (नहर) भी हैं, जो कि नदियों से जुड़ी हैं और सिंचाई के लिए जल संसाधन का प्रमुख साधन हैं। सितंबर में जब गंगा नदी का जलस्तर कम होने लगता है, तब इन नदियों व पईन के रास्ते से टाल में जमा पानी गंगा में मिल जाता है।

आनंद मुरारी कहते हैं, "गाद जमने के कारण नदियों की जल संचयन क्षमता घट गई है। सालों से हरोहर नदी में ड्रेजिंग नहीं हुई है, वहीं गंगा में भी लगातार गाद बढ़ रहा है। इसकी वजह से टाल क्षेत्र से पानी निर्धारित समय से बाहर निकल नहीं पाता है और किसानों को दिक्कत होती है।"

इसके उपाय के संबंध में आनंद मुरारी कहते हैं, "यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है, बस उचित जल प्रबंधन का मामला है। हम कई सालों से सरकार से मांग कर रहे हैं कि टाल क्षेत्र में जितने भी पईन, सोते (स्त्रोत) और नदियां हैं, उन्हें आपस में जोड़ा जाए। नदियों और पईन को साफ कर उन्हें गाद और अतिक्रमण से मुक्त किया जाए और जगह-जगह पर चेक डैम और एंटीफ्लड सुलिस गेट बनवाया जाए ताकि किसानों को राहत मिले।"

342073-mokama-13
342073-mokama-13
एंटीफ्लड सुलिस गेट। किसानों की मांग है कि हर नदी में ऐसे सुलिस गेट और चेक डैम की जरुरत है ताकि किसानों की जरुरत के अनुसार पानी को नियंत्रित किया जा सके।

आनंद मुरारी ने बताया कि किसानों के बार-बार मांग और आंदोलन करने पर सरकार ने कुछ जगहों पर एंटीफ्लड सुलिस गेट और चेक डैम बनवाया हैं, लेकिन इनकी संख्या अभी काफी नहीं है। हर पईन में दो-दो किलोमीटर पर चेक डैम की जरुरत है। वहीं एंटीफ्लड सुलिस गेट को भी टाल की हर नदी में बनाए जाने की जरुरत है। इससे टाल क्षेत्र में बाढ़ और सुखाड़ दोनों की समस्या को हल किया जा सकता है।

मोकामा टाल क्षेत्र में जहां जुलाई से अक्टूबर तक पानी भरा रहता है, वहीं फरवरी से मई-जून तक सुखाड़ की स्थिति बनती है। ऐसा भी नदियों में गाद जमा होने की वजह से हो रहा है। कम बारिश की स्थिति में गंगा नदी का बैकवाटर पहले हरोहर नदी के रास्ते से टाल क्षेत्र में आता था, लेकिन गाद जमा होने की वजह से गंगा का बैकवाटर भी टाल क्षेत्र में नहीं आ पा रहा है। इससे यहां के लोगों को फरवरी के बाद से बारिश आने तक (मानसून) सूखे का सामना करना पड़ता है। आनंद मुरारी के शब्दों में, 'जो इलाका आपको समुद्र जैसा दिख रहा है, वह फरवरी के बाद काले रेगिस्तान की तरह नजर आता है।'

प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाएटी (पैक्स) मोकामा के अध्यक्ष उमेश शर्मा (62 वर्ष) कहते हैं कि कभी सुखाड़ तो कभी बाढ़ के कारण पिछले कुछ सालों में दाल के उत्पादन में 25 से 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। उन्होंने यह भी बताया कि बाढ़ और सुखाड़ की वजह से फसल को हुई क्षति का मुआवजा भी किसानों को नहीं मिल पाता है।

342075-mokama-11
342075-mokama-11
किसानों का कहना है कि कोई भी नेता, कोई भी अधिकारी उनकी नहीं सुनते। (त्रिमुहान गांव, मोकामा)

बाढ़ और सुखाड़ के अलावा यहां के दाल किसान मंडी और क्रय केंद्र ना होने से भी परेशान रहते हैं। दाल का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र होने के बावजूद भी यहां पर कोई बड़ा बाजार, मंडी और सरकारी क्रय केंद्र नहीं है। इसलिए किसान औने-पौने दामों पर अपना दाल बिचौलियों को बेचने को मजबूर होते हैं।

किसान ओम प्रकाश सिंह ने बताया, "क्रय केंद्र, मंडी और कोल्ड स्टोरेज की मांगों को लेकर मोकामा के दाल किसानों ने कई बार आंदोलन किया। आंदोलन खत्म करवाने के लिए मंत्रियों और अधिकारियों की तरफ से निर्माण का आश्वासन भी मिला। लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं, कहीं कुछ भी नहीं बदला। हम दाल के एक बड़े उत्पादक होते हुए भी एक अदद क्रय केंद्र को तरस रहे हैं।"

बाढ़ के बाद: फिर से बसने की आस में बाढ़ प्रभावित



Tags:
  • bihar flood
  • pulses crop
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.