मानसून में आम, अमरूद और नींबू का बाग लगाने की सही विधि और पूरी देखभाल गाइड

Gaon Connection | Aug 09, 2025, 12:59 IST
मानसून में आम, अमरूद और नींबू का बाग लगाने की सही तकनीक जानें। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ जयप्रकाश सिंह दे रहे हैं किस्म चयन, गड्ढा तैयारी, खाद, पानी और रोग नियंत्रण की पूरी जानकारी।
आम बागवानी टिप्स, अमरूद पौध रोपण तकनीक, नींबू खेती गाइड, फलदार पेड़ लगाने का सही समय, मानसून में बाग लगाने के फायदे, प्रमाणित नर्सरी से पौध, हाई डेंसिटी प्लांटिंग पद्धति, बाग लगाने में गड्ढे की तैयारी, जैविक खाद का उपयोग, दीमक नियंत्रण उपाय
मानसून का मौसम बाग लगाने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है, खासकर आम, अमरूद और नींबू के पौधों के लिए। इस मौसम में लगाई गई पौधों की जड़ें जल्दी जम जाती हैं और सर्वाइवल रेट अधिक होता है। लेकिन केवल मौसम सही होना ही पर्याप्त नहीं है - किस्म का चुनाव, भूमि की तैयारी, गड्ढे का सही आकार, खाद का सही मिश्रण और रोपाई के बाद देखभाल भी उतनी ही जरूरी है। डॉ. जयप्रकाश सिंह के अनुसार, बाग लगाने से पहले मिट्टी की जांच कर यह देखना जरूरी है कि उसमें आवश्यक पोषक तत्व हैं या नहीं। इसके लिए किसान सॉइल हेल्थ कार्ड की मदद ले सकते हैं। आमतौर पर बलुई दोमट मिट्टी बागवानी के लिए आदर्श मानी जाती है, जबकि छारीय मिट्टी में सुधार के लिए जिप्सम का उपयोग जरूरी है।

किस्म चुनते समय किसान भाइयों को पूसा की उन्नत किस्मों जैसे पूसा लालिमा, मल्लिका, आम्रपाली और पूसा प्रतिभा पर विचार करना चाहिए। ये पौधे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), राज्यों के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, सरकारी नर्सरी और लाइसेंस प्राप्त निजी नर्सरी जैसे निर्मल नर्सरी, शेल्टर एग्री, सेवन स्टार फ्रूट्स या देवभूमि इंटरप्राइज से प्राप्त किए जा सकते हैं। पूर्वी भारत के किसानों के लिए कोलकाता स्थित शेल्टर एग्री फार्म और पश्चिम भारत के लिए महाराष्ट्र की नर्सरियां भी एक अच्छा स्रोत हैं। बड़े पैमाने पर बाग लगाने के इच्छुक किसान सीधे संस्थानों से संपर्क करके पौध उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं।

गड्ढा बनाने की प्रक्रिया भूमि के प्रकार के अनुसार तय होती है। यदि भूमि छारीय है या नीचे हार्ड पैन है, तो 1 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरा गड्ढा खोदना चाहिए। अगर भूमि गहरी और अच्छी है, तो 60 सेंटीमीटर लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा पर्याप्त होगा। गड्ढा कम से कम एक महीना पहले तैयार करना बेहतर है ताकि धूप की गर्मी से मिट्टी का सोलराइजेशन हो सके और हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाएं। गड्ढा बनाते समय ऊपर की 15–20 सेंटीमीटर उपजाऊ मिट्टी को अलग रखें और बाद में भराई में इस्तेमाल करें।

गड्ढे में 30–40 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालना जरूरी है। अगर मिट्टी का पीएच 7.5 से अधिक है, तो प्रति गड्ढा 2 किलो जिप्सम मिलाना चाहिए और उसमें पानी डालकर कुछ दिन छोड़ देना चाहिए ताकि मिट्टी का पीएच सामान्य हो सके। जिप्सम का यह प्रयोग पौधों को शुरुआती दिनों में छारीय पानी और मिट्टी से होने वाले नुकसान से बचाता है। इसके अलावा, पौध रोपाई से पहले नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की संतुलित मात्रा डालना जरूरी है। प्रति पौधा 100 ग्राम नाइट्रोजन (यूरिया से), 100 ग्राम फास्फोरस (सिंगल सुपर फॉस्फेट से) और 100 ग्राम पोटेशियम (पोटेशियम सल्फेट से) देना चाहिए। म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें क्लोराइड होता है जो पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। दीमक की समस्या वाले क्षेत्रों में क्लोरोपाइरीफॉस या 1–2 किलो नीम की खली का प्रयोग किया जा सकता है, जो मिट्टी को भी सुधारता है।

पानी का प्रबंधन बाग की सफलता में अहम भूमिका निभाता है। रोपाई के शुरुआती दिनों में न्यूट्रल पीएच वाला पानी उपयोग करें। बारिश का पानी सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसका पीएच सात से थोड़ा कम होता है। छारीय पानी का प्रयोग कम से कम करें और पानी का जमाव रोकने के लिए आवश्यकता पड़ने पर रेज़्ड बेड बनाएं। जिन खेतों में पानी रुकने की समस्या है, वहां पौधों को ऊंची क्यारियों पर लगाना चाहिए।

रोपाई की दूरी क्षेत्र और किस्म पर निर्भर करती है। साधारण परिस्थितियों में 5 मीटर × 5 मीटर की दूरी उपयुक्त है, जबकि सूखे और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पहले 10–12 वर्षों के लिए 3–4 मीटर की दूरी रखी जा सकती है। आजकल हाई डेंसिटी प्लांटिंग पद्धति लोकप्रिय हो रही है, जिसमें अधिक पौधे लगाए जाते हैं और नियमित छंटाई व प्रशिक्षण से उनका आकार नियंत्रित किया जाता है। इससे शुरुआती वर्षों में उत्पादन बढ़ता है, लेकिन देखभाल और प्रबंधन की लागत भी थोड़ी अधिक होती है।

पौध लगाते समय यह सुनिश्चित करें कि ग्राफ्टेड भाग जमीन से ऊपर रहे और जड़ों को नुकसान न पहुंचे। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें और पौधे के चारों ओर कटोरा (बेसिन) बनाएं ताकि पानी और खाद सही तरीके से जड़ों तक पहुंचे। शुरुआती दिनों में खरपतवार नियंत्रण, पौधों को जानवरों से बचाना और तेज हवाओं से सुरक्षा जरूरी है।

अमरूद और नींबू के पौधों के लिए गड्ढे का आकार आमतौर पर 60 सेंटीमीटर × 60 सेंटीमीटर × 60 सेंटीमीटर पर्याप्त होता है। अमरूद में नियमित छंटाई और फल तुड़ाई के बाद खाद देना जरूरी है, जबकि नींबू में फूल और फल झड़ने से बचाने के लिए समय-समय पर बोरैक्स और सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करना चाहिए। इन फसलों में भी संतुलित नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का प्रयोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन के लिए जरूरी है।

रोग और कीट प्रबंधन में समय पर पहचान और नियंत्रण जरूरी है। पत्तियों में छेद की समस्या पर नीम तेल का छिड़काव, फूल और फल झड़ने पर बोरैक्स का स्प्रे और दीमक के लिए नीम खली या क्लोरोपाइरीफॉस का प्रयोग प्रभावी उपाय हैं। इन सभी तरीकों को अपनाकर किसान न केवल पौधों की शुरुआती वृद्धि बेहतर कर सकते हैं, बल्कि आने वाले वर्षों में बाग से अच्छा उत्पादन भी ले सकते हैं।

इस प्रकार, मानसून में आम, अमरूद और नींबू का बाग लगाते समय सही किस्म का चुनाव, भूमि और गड्ढे की उचित तैयारी, संतुलित खाद और पानी का सही प्रबंधन तथा प्रमाणित नर्सरी से पौध लेना सफलता की कुंजी है। शुरुआती दो से तीन वर्षों तक नियमित देखभाल, रोग-कीट प्रबंधन और समय पर पोषण देने से बगीचा लंबे समय तक फलदायी रहेगा और किसान भाइयों को बेहतर आर्थिक लाभ मिलेगा।

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