जब लैब से खेत तक पहुँचा विज्ञान: राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार 2025 में अरोमा मिशन को बड़ी पहचान
Girindranath Jha | Dec 24, 2025, 13:05 IST
राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार 2025 समारोह में भारत ने वैज्ञानिक उत्कृष्टता, टीमवर्क और समाजोपयोगी नवाचार का उत्सव मनाया। मरणोपरांत विज्ञान रत्न से सम्मानित जयंत नारलिकर से लेकर पर्पल रिवोल्यूशन को गति देने वाले अरोमा मिशन तक, इस आयोजन ने दिखाया कि भारतीय विज्ञान किस तरह प्रयोगशाला से निकलकर आम लोगों के जीवन को बदल रहा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित भव्य समारोह में देश के 24 प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और नवप्रवर्तकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया। यह समारोह भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान, नवाचार और सामाजिक उपयोगिता को सर्वोच्च स्तर पर मान्यता देने का प्रतीक बना। कार्यक्रम में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह भी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर भारत के प्रख्यात खगोल-भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर जयंत विष्णु नारलिकर को विज्ञान के क्षेत्र में आजीवन योगदान के लिए मरणोपरांत “राष्ट्रीय विज्ञान रत्न पुरस्कार 2025” प्रदान किया गया। राष्ट्रपति ने यह सम्मान उनके अद्वितीय वैज्ञानिक योगदान और भारतीय खगोलभौतिकी को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए दिया। पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) के संस्थापक निदेशक रहे नारलिकर ने ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में हॉयल–नारलिकर सिद्धांत और क्वासी-स्टेडी स्टेट कॉस्मोलॉजी मॉडल के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक विमर्श को नई दिशा दी।
इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समारोह का एक महत्वपूर्ण आकर्षण रहा सीएसआईआर के नेतृत्व वाला अरोमा मिशन, जिसे “राष्ट्रीय विज्ञान टीम पुरस्कार 2025” से सम्मानित किया गया। अरोमा मिशन को देश में चर्चित “पर्पल रिवोल्यूशन” यानी लैवेंडर आधारित कृषि–उद्यमिता को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है। इस मिशन ने प्रयोगशाला में विकसित वैज्ञानिक शोध को सीधे किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर अपने संदेश में कहा कि अरोमा मिशन ने लैवेंडर को केवल एक फसल नहीं, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों में आजीविका का नया मॉडल बना दिया। जम्मू-कश्मीर के भदेरवाह और गुलमर्ग जैसे दुर्गम इलाकों से शुरू हुई यह पहल अब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित अन्य पहाड़ी राज्यों में भी अपनाई जा रही है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि हुई, बल्कि आवश्यक तेलों के आयात पर देश की निर्भरता भी कम हुई है।
सीएसआईआर-अरोमा मिशन के अंतर्गत सुगंधित फसलों की उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास, किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण, प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और बाजार से सीधा जुड़ाव सुनिश्चित किया गया। इस समन्वित प्रयास ने यह सिद्ध किया कि वैज्ञानिक हस्तक्षेप यदि स्थानीय जरूरतों पर आधारित हों, तो वे सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का मजबूत आधार बन सकते हैं।
राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारों की संरचना पिछले वर्ष नई रूपरेखा के साथ शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य केवल जीवन भर की उपलब्धियों को ही नहीं, बल्कि शुरुआती करियर में उत्कृष्ट कार्य करने वाले युवा वैज्ञानिकों और टीम आधारित नवाचारों को भी समान रूप से पहचान देना है। वर्ष 2025 का यह समारोह इस नई प्रणाली का दूसरा संस्करण रहा।
इस अवसर पर विज्ञान श्री पुरस्कार के तहत कृषि विज्ञान, परमाणु ऊर्जा, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, अभियांत्रिकी, पर्यावरण विज्ञान, गणित, कंप्यूटर विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। इनमें गेहूं प्रजनन, परमाणु अनुसंधान, जीनोमिक्स, स्वदेशी जल शोधन तकनीक, पर्यावरण बायोइंजीनियरिंग और क्रायोजेनिक इंजन विकास जैसे क्षेत्रों में कार्य करने वाले वैज्ञानिक शामिल रहे।
वहीं विज्ञान युवा – शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के अंतर्गत 45 वर्ष से कम आयु के उभरते वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। इन युवा शोधकर्ताओं ने कृषि जैवप्रौद्योगिकी, कैंसर जीवविज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम फिजिक्स, क्रिप्टोग्राफी, चिकित्सा और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में नवोन्मेषी योगदान दिया है।
इस वर्ष के पुरस्कारों में महिला वैज्ञानिकों की उल्लेखनीय भागीदारी भी देखने को मिली। जीव विज्ञान, गणित और कंप्यूटर विज्ञान जैसे क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिकों को मिली मान्यता देश के वैज्ञानिक परिदृश्य में बदलते नेतृत्व और बढ़ती समावेशिता को दर्शाती है।
समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पुरस्कार विजेताओं का कार्य इस बात का प्रमाण है कि भारत का विज्ञान न केवल अकादमिक उत्कृष्टता की ओर अग्रसर है, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और आम नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अरोमा मिशन को मिली मान्यता के साथ यह संदेश भी स्पष्ट हुआ कि जब सरकार समर्थित वैज्ञानिक कार्यक्रम स्थानीय जरूरतों, टीमवर्क और दीर्घकालिक दृष्टि के साथ लागू किए जाते हैं, तो उनके परिणाम प्रयोगशालाओं और शोध पत्रों से निकलकर सीधे जमीन पर दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार आज तेजी से ऐसे मंच के रूप में उभर रहे हैं, जो अनुसंधान उत्कृष्टता को सामाजिक प्रभाव से जोड़ते हैं और भारत के विज्ञान-आधारित विकास मॉडल को मजबूती प्रदान करते हैं।
भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, चिकित्सा, अंतरिक्ष और पर्यावरण जैसे विविध क्षेत्रों में विश्व को दिशा देने वाले अनेक महान वैज्ञानिक, शोधकर्ता और नवप्रवर्तक दिए हैं। विभिन्न विषयों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इन विभूतियों को सम्मानित किया जाना न केवल उनके कार्यों का अभिनंदन है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी है।
स्व. प्रो. जयंत विष्णु नार्लीकर (मरणोपरांत)
इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे
पद्म विभूषण से सम्मानित स्वर्गीय प्रो. जयंत विष्णु नार्लीकर भारत के अग्रणी खगोलभौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान विशेषज्ञ थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और पदार्थ सृजन को एकीकृत करने वाली हॉयल–नार्लीकर थ्योरी विकसित की, जिसने 1960 के दशक में स्टीडी-स्टेट यूनिवर्स मॉडल को नया आयाम दिया।
उन्होंने फ्रेड हॉयल और जेफ्री बर्बिज के साथ मिलकर क्वासी-स्टीडी स्टेट कॉस्मोलॉजी मॉडल प्रस्तुत किया, जिसने ब्रह्मांडीय पृष्ठभूमि विकिरण और आकाशगंगा निर्माण को समझने का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण दिया। भारत में खगोलविज्ञान अनुसंधान को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने पुणे में इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई।
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह
ICAR – नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज, नई दिल्ली
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह एक प्रख्यात गेहूं वैज्ञानिक हैं, जिनका योगदान भारत की खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने गेहूं की चार मेगा किस्मों के विकास में नेतृत्व दिया, जिससे उत्पादन और निर्यात क्षमता दोनों में वृद्धि हुई। उनका शोध विशेष रूप से गर्मी और सूखा सहनशील किस्मों, मार्कर-असिस्टेड सेलेक्शन और प्रिसीजन फीनोटाइपिंग पर केंद्रित रहा।
डॉ. यूसुफ मोहम्मद सेख
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), मुंबई
डॉ. यूसुफ मोहम्मद सेख ने न्यूट्रॉन और सिंक्रोट्रॉन बीमलाइन के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके कार्य ने नाभिकीय रिएक्टर अनुसंधान को नई दिशा दी। उन्होंने चुंबकीय पदार्थों, सुपरकंडक्टिविटी और मैग्नेटो-कैलोरिक प्रभाव पर आधारित अगली पीढ़ी की ऊर्जा-कुशल रेफ्रिजरेशन तकनीकों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ. कुमारासामी थंगराज
CSIR – सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद
डॉ. थंगराज एक प्रसिद्ध आनुवंशिकीविद् हैं, जिन्होंने मानव जीनोम सीक्वेंसिंग के माध्यम से रोग संवेदनशीलता, बांझपन और भारत की जन-इतिहासीय संरचना को समझने में क्रांतिकारी योगदान दिया। उनके शोध से चिकित्सा विज्ञान को महत्वपूर्ण व्यावहारिक दिशा मिली है।
प्रो. तलाप्पिल प्रदीप
IIT मद्रास, चेन्नई
प्रो. प्रदीप ने स्वदेशी, किफायती और टिकाऊ जल शोधन तकनीकों के विकास में ऐतिहासिक योगदान दिया। उनकी तकनीकें आर्सेनिक और कीटनाशक प्रदूषण से जल को मुक्त करने में अत्यंत प्रभावी हैं। उन्होंने अंतरिक्ष रसायन विज्ञान से जुड़ी बर्फीली सतहों पर आणविक अभिक्रियाओं को समझने में भी महत्वपूर्ण शोध किया।
प्रो. अनिरुद्ध भालचंद्र पंडित
इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, मुंबई
प्रो. पंडित कैविटेशनल और मल्टीफेज रिएक्टर तकनीक के अग्रणी नवप्रवर्तक हैं। सूक्ष्मजीवों के विघटन हेतु विकसित उनकी ऊर्जा-दक्ष विधियाँ औद्योगिक प्रक्रियाओं को अधिक टिकाऊ बनाती हैं।
डॉ. एस. वेंकट मोहन
CSIR–NEERI, नागपुर
डॉ. वेंकट मोहन पर्यावरण बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उन्होंने अपशिष्ट जल शोधन, जैव-ईंधन, बायोहाइड्रोजन और चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रो. महान महाराज
TIFR, मुंबई
प्रो. महाराज ने ज्योमेट्रिक ग्रुप थ्योरी, टोपोलॉजी और डायनेमिकल सिस्टम्स के अंतःसंबंधों को गहराई से समझाया।
हाइपरबोलिक 3-मैनीफोल्ड्स पर उनका कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत सम्मानित है।
श्री जयन एन.
इसरो, बेंगलुरु
श्री जयन एन. ने इसरो के क्रायोजेनिक इंजन विकास में अहम भूमिका निभाई। उनकी रीजेनेरेटिव कूलिंग तकनीक ने भारी प्रक्षेपण यानों की क्षमता को सशक्त बनाया।
टीम अरोमा मिशन (CSIR-CIMAP)
CSIR की अरोमा मिशन टीम ने सुगंधित फसलों की उच्च उपज किस्मों के विकास, किसानों तक तकनीक पहुँचाने और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय कार्य किया है। इस मिशन ने किसानों की आय बढ़ाई, महिलाओं को सशक्त किया और ग्रामीण रोजगार सृजन को नई गति दी।
इस अवसर पर भारत के प्रख्यात खगोल-भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर जयंत विष्णु नारलिकर को विज्ञान के क्षेत्र में आजीवन योगदान के लिए मरणोपरांत “राष्ट्रीय विज्ञान रत्न पुरस्कार 2025” प्रदान किया गया। राष्ट्रपति ने यह सम्मान उनके अद्वितीय वैज्ञानिक योगदान और भारतीय खगोलभौतिकी को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए दिया। पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) के संस्थापक निदेशक रहे नारलिकर ने ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में हॉयल–नारलिकर सिद्धांत और क्वासी-स्टेडी स्टेट कॉस्मोलॉजी मॉडल के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक विमर्श को नई दिशा दी।
इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समारोह का एक महत्वपूर्ण आकर्षण रहा सीएसआईआर के नेतृत्व वाला अरोमा मिशन, जिसे “राष्ट्रीय विज्ञान टीम पुरस्कार 2025” से सम्मानित किया गया। अरोमा मिशन को देश में चर्चित “पर्पल रिवोल्यूशन” यानी लैवेंडर आधारित कृषि–उद्यमिता को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है। इस मिशन ने प्रयोगशाला में विकसित वैज्ञानिक शोध को सीधे किसानों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर अपने संदेश में कहा कि अरोमा मिशन ने लैवेंडर को केवल एक फसल नहीं, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों में आजीविका का नया मॉडल बना दिया। जम्मू-कश्मीर के भदेरवाह और गुलमर्ग जैसे दुर्गम इलाकों से शुरू हुई यह पहल अब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित अन्य पहाड़ी राज्यों में भी अपनाई जा रही है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि हुई, बल्कि आवश्यक तेलों के आयात पर देश की निर्भरता भी कम हुई है।
सीएसआईआर-अरोमा मिशन के अंतर्गत सुगंधित फसलों की उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास, किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण, प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और बाजार से सीधा जुड़ाव सुनिश्चित किया गया। इस समन्वित प्रयास ने यह सिद्ध किया कि वैज्ञानिक हस्तक्षेप यदि स्थानीय जरूरतों पर आधारित हों, तो वे सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का मजबूत आधार बन सकते हैं।
राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारों की संरचना पिछले वर्ष नई रूपरेखा के साथ शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य केवल जीवन भर की उपलब्धियों को ही नहीं, बल्कि शुरुआती करियर में उत्कृष्ट कार्य करने वाले युवा वैज्ञानिकों और टीम आधारित नवाचारों को भी समान रूप से पहचान देना है। वर्ष 2025 का यह समारोह इस नई प्रणाली का दूसरा संस्करण रहा।
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह एक प्रख्यात गेहूं वैज्ञानिक हैं, जिनका योगदान भारत की खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने गेहूं की चार मेगा किस्मों के विकास में नेतृत्व दिया, जिससे उत्पादन और निर्यात क्षमता दोनों में वृद्धि हुई।
इस अवसर पर विज्ञान श्री पुरस्कार के तहत कृषि विज्ञान, परमाणु ऊर्जा, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, अभियांत्रिकी, पर्यावरण विज्ञान, गणित, कंप्यूटर विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। इनमें गेहूं प्रजनन, परमाणु अनुसंधान, जीनोमिक्स, स्वदेशी जल शोधन तकनीक, पर्यावरण बायोइंजीनियरिंग और क्रायोजेनिक इंजन विकास जैसे क्षेत्रों में कार्य करने वाले वैज्ञानिक शामिल रहे।
वहीं विज्ञान युवा – शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के अंतर्गत 45 वर्ष से कम आयु के उभरते वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। इन युवा शोधकर्ताओं ने कृषि जैवप्रौद्योगिकी, कैंसर जीवविज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम फिजिक्स, क्रिप्टोग्राफी, चिकित्सा और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में नवोन्मेषी योगदान दिया है।
इस वर्ष के पुरस्कारों में महिला वैज्ञानिकों की उल्लेखनीय भागीदारी भी देखने को मिली। जीव विज्ञान, गणित और कंप्यूटर विज्ञान जैसे क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिकों को मिली मान्यता देश के वैज्ञानिक परिदृश्य में बदलते नेतृत्व और बढ़ती समावेशिता को दर्शाती है।
समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पुरस्कार विजेताओं का कार्य इस बात का प्रमाण है कि भारत का विज्ञान न केवल अकादमिक उत्कृष्टता की ओर अग्रसर है, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और आम नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अरोमा मिशन को मिली मान्यता के साथ यह संदेश भी स्पष्ट हुआ कि जब सरकार समर्थित वैज्ञानिक कार्यक्रम स्थानीय जरूरतों, टीमवर्क और दीर्घकालिक दृष्टि के साथ लागू किए जाते हैं, तो उनके परिणाम प्रयोगशालाओं और शोध पत्रों से निकलकर सीधे जमीन पर दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार आज तेजी से ऐसे मंच के रूप में उभर रहे हैं, जो अनुसंधान उत्कृष्टता को सामाजिक प्रभाव से जोड़ते हैं और भारत के विज्ञान-आधारित विकास मॉडल को मजबूती प्रदान करते हैं।
भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, चिकित्सा, अंतरिक्ष और पर्यावरण जैसे विविध क्षेत्रों में विश्व को दिशा देने वाले अनेक महान वैज्ञानिक, शोधकर्ता और नवप्रवर्तक दिए हैं। विभिन्न विषयों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इन विभूतियों को सम्मानित किया जाना न केवल उनके कार्यों का अभिनंदन है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी है।
विज्ञान रत्न
इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे
पद्म विभूषण से सम्मानित स्वर्गीय प्रो. जयंत विष्णु नार्लीकर भारत के अग्रणी खगोलभौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान विशेषज्ञ थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और पदार्थ सृजन को एकीकृत करने वाली हॉयल–नार्लीकर थ्योरी विकसित की, जिसने 1960 के दशक में स्टीडी-स्टेट यूनिवर्स मॉडल को नया आयाम दिया।
उन्होंने फ्रेड हॉयल और जेफ्री बर्बिज के साथ मिलकर क्वासी-स्टीडी स्टेट कॉस्मोलॉजी मॉडल प्रस्तुत किया, जिसने ब्रह्मांडीय पृष्ठभूमि विकिरण और आकाशगंगा निर्माण को समझने का एक वैकल्पिक दृष्टिकोण दिया। भारत में खगोलविज्ञान अनुसंधान को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने पुणे में इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई।
विज्ञान श्री – कृषि विज्ञान
ICAR – नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज, नई दिल्ली
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह एक प्रख्यात गेहूं वैज्ञानिक हैं, जिनका योगदान भारत की खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने गेहूं की चार मेगा किस्मों के विकास में नेतृत्व दिया, जिससे उत्पादन और निर्यात क्षमता दोनों में वृद्धि हुई। उनका शोध विशेष रूप से गर्मी और सूखा सहनशील किस्मों, मार्कर-असिस्टेड सेलेक्शन और प्रिसीजन फीनोटाइपिंग पर केंद्रित रहा।
विज्ञान श्री – परमाणु ऊर्जा
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), मुंबई
डॉ. यूसुफ मोहम्मद सेख ने न्यूट्रॉन और सिंक्रोट्रॉन बीमलाइन के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके कार्य ने नाभिकीय रिएक्टर अनुसंधान को नई दिशा दी। उन्होंने चुंबकीय पदार्थों, सुपरकंडक्टिविटी और मैग्नेटो-कैलोरिक प्रभाव पर आधारित अगली पीढ़ी की ऊर्जा-कुशल रेफ्रिजरेशन तकनीकों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विज्ञान श्री – जीव विज्ञान
CSIR – सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद
डॉ. थंगराज एक प्रसिद्ध आनुवंशिकीविद् हैं, जिन्होंने मानव जीनोम सीक्वेंसिंग के माध्यम से रोग संवेदनशीलता, बांझपन और भारत की जन-इतिहासीय संरचना को समझने में क्रांतिकारी योगदान दिया। उनके शोध से चिकित्सा विज्ञान को महत्वपूर्ण व्यावहारिक दिशा मिली है।
विज्ञान श्री – रसायन विज्ञान
IIT मद्रास, चेन्नई
प्रो. प्रदीप ने स्वदेशी, किफायती और टिकाऊ जल शोधन तकनीकों के विकास में ऐतिहासिक योगदान दिया। उनकी तकनीकें आर्सेनिक और कीटनाशक प्रदूषण से जल को मुक्त करने में अत्यंत प्रभावी हैं। उन्होंने अंतरिक्ष रसायन विज्ञान से जुड़ी बर्फीली सतहों पर आणविक अभिक्रियाओं को समझने में भी महत्वपूर्ण शोध किया।
विज्ञान श्री – अभियांत्रिकी विज्ञान
इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, मुंबई
प्रो. पंडित कैविटेशनल और मल्टीफेज रिएक्टर तकनीक के अग्रणी नवप्रवर्तक हैं। सूक्ष्मजीवों के विघटन हेतु विकसित उनकी ऊर्जा-दक्ष विधियाँ औद्योगिक प्रक्रियाओं को अधिक टिकाऊ बनाती हैं।
विज्ञान श्री – पर्यावरण विज्ञान
CSIR–NEERI, नागपुर
डॉ. वेंकट मोहन पर्यावरण बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उन्होंने अपशिष्ट जल शोधन, जैव-ईंधन, बायोहाइड्रोजन और चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
विज्ञान श्री – गणित एवं कंप्यूटर विज्ञान
TIFR, मुंबई
प्रो. महाराज ने ज्योमेट्रिक ग्रुप थ्योरी, टोपोलॉजी और डायनेमिकल सिस्टम्स के अंतःसंबंधों को गहराई से समझाया।
हाइपरबोलिक 3-मैनीफोल्ड्स पर उनका कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत सम्मानित है।
विज्ञान श्री – अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
इसरो, बेंगलुरु
श्री जयन एन. ने इसरो के क्रायोजेनिक इंजन विकास में अहम भूमिका निभाई। उनकी रीजेनेरेटिव कूलिंग तकनीक ने भारी प्रक्षेपण यानों की क्षमता को सशक्त बनाया।
CSIR – भारत का नवाचार इंजन
CSIR की अरोमा मिशन टीम ने सुगंधित फसलों की उच्च उपज किस्मों के विकास, किसानों तक तकनीक पहुँचाने और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय कार्य किया है। इस मिशन ने किसानों की आय बढ़ाई, महिलाओं को सशक्त किया और ग्रामीण रोजगार सृजन को नई गति दी।