संवाद 2025: जब समुदाय, संस्कृति और धरती की धड़कनें एक सुर में मिलीं

Divendra Singh | Nov 19, 2025, 14:00 IST
संवाद केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक एहसास है, जहाँ कोई मंच पर बोलता है, तो वह सिर्फ अपने समुदाय की बात नहीं करता, वह अपने पुरखों की धड़कनें, जंगलों की खुशबू और अपनी मिट्टी की स्मृतियाँ साथ लेकर आता है।
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संवाद 2025 की शुरुआत इस बार सिर्फ रंगों, संगीत और संस्कृति से नहीं हुई, बल्कि एक ऐसी ऊर्जा से हुई, जिसने हर आने वाले व्यक्ति को यह एहसास कराया कि वह किसी सामान्य आयोजन में नहीं, बल्कि अपनी जड़ों के पुनर्मिलन में कदम रख रहा है। इस साल संवाद का माहौल और भी ऐतिहासिक रहा, क्योंकि यह झारखंड राज्य स्थापना दिवस के 25 वर्ष और धरती आबा बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के साथ आयोजित हो रहा था। वातावरण में गर्व था, भावनाएँ थीं और एक अनकही खुशी कि आदिवासी समुदायों की आवाजें, उनकी कहानियाँ और उनका ज्ञान अब पूरे देश के सामने उतनी ही गरिमा के साथ खड़ा है, जितनी वह सदियों से अपने वन, अपने पहाड़, अपनी नदियों में समेटे हुए था।

सुबह का आकाश जब हल्की धूप से भरना शुरू हुआ, तभी हो, मुंडा, संताल और उराँव समुदायों के बीच एक सामूहिक प्रार्थना शुरू हुई। ढोल की थाप और पवित्र गीतों के बीच हो समुदाय की पारंपरिक विधि से अखड़ा की पवित्र सफाई की गई। यह केवल एक रस्म नहीं थी, बल्कि उस एकता और पवित्रता का प्रतीक थी, जिस पर आदिवासी समाज की पूरी नींव बनी है। अखड़ा के बीचों बीच खड़े बच्चे जो टाटा स्टील फाउंडेशन के कार्यक्रमों से जुड़कर खेलों में देश का नाम रोशन कर चुके हैं, अपनी मुस्कान के साथ बुजुर्गों का स्वागत कर रहे थे। जब उन्होंने जवा के पौधों को बुजुर्गों को सौंपा, तो वह दृश्य किसी आशीर्वाद से कम नहीं था मानो भविष्य, वर्तमान को उसका सम्मान दे रहा हो।

Samvad 2025 (11)
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संवाद 2025 के उद्घाटन की घोषणा पारंपरिक भनेर, सकुआ और नगाड़ा की गूंज के साथ हुई। आवाजें सिर्फ कानों तक नहीं पहुँचीं, दिलों में उतर गईं। मंच पर आदिवासी समाज की दिग्गज हस्तियाँ मौजूद थीं, बैजू मुर्मू, दशमथ हांसदा, गणेश पट पिंगुआ, उत्तम सिंह सरदार और साथ ही पद्मश्री सम्मानित चामी मुर्मू और जनुम सिंह सोय। उनके चेहरे पर जितनी सरलता थी, उतनी ही दृढ़ता उनकी आँखों में एक ऐसी दृढ़ता, जिसने सदियों के संघर्षों को प्रेम, प्रकृति और समुदाय की शक्ति में बदल दिया है।

टाटा स्टील फाउंडेशन के चेयरमैन टी.वी. नारेंद्रन, डायरेक्टर डी.बी. सुंदरा रमम और सीईओ सौरव रॉय भी इस गरिमामय उद्घाटन के साक्षी बने। सौरव रॉय ने कहा, "संवाद सिर्फ एक आयोजन नहीं है। यह ज्ञान, अनुभव और संस्कृतियों के बीच वह पुल है जो पीढ़ियों को जोड़ता है। आदिवासी समुदायों की यह विरासत हम सबको बेहतर और अधिक समावेशी भविष्य की ओर ले जाती है। यह संवाद उन्हीं का है, हम केवल इसे आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं।”

पहले दिन की चिंतन यात्राएँ - खानपान से लेकर कला तक

उद्घाटन के बाद सुबह के सत्र अलग-अलग समूहों में बंटे, जहाँ प्रतिभागियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। Tribal Cuisine के प्रतिभागियों ने परंपरागत रेसिपियों के पीछे छिपी कहानियों और पोषण के महत्व पर गहन चर्चा की। Samvaad Fellowship ने परियोजना प्रबंधन और परंपरागत प्रणालियों के बीच संबंधों को समझने का नया द्वार खोला। Samuday ke Saath में फिल्म निर्माताओं ने इस बात पर चर्चा की कि कैमरा जब आदिवासी हाथों में जाता है, तो कहानियाँ सिर्फ बदलती नहीं—अपनी असली आवाज़ पहचानने लगती हैं।

इस वर्ष Aatithya, संवाद का विशेष फूड पॉप-अप, 12 जनजातियों के 19 होम कुक्स के साथ शुरू हुआ। उनकी रसोई से उठती खुशबू सिर्फ भूख नहीं जगाती, बल्कि अपने गाँव, अपने जंगल और अपनी दादी के हाथों की याद दिलाती थी। यह स्टॉल रोज़ 3 बजे से 9 बजे तक खुला रहेगा और व्यंजन Zomato पर भी उपलब्ध हैं, इससे बढ़कर परंपरा का आधुनिकता से मिलन और क्या हो सकता है?

कला, हाथों की भाषा और धरोहर

गोपाल मैदान में 18 राज्यों और 30 जनजातियों की 34 अनोखी कला शैलियों को देखा जा सकता था। हर स्टॉल सिर्फ वस्तुएँ नहीं बेच रहा था, बल्कि कह रहा था- "हमारी कला हमारे जीवन की भाषा है।" पेंटिंग्स, वस्त्र, आभूषण—हर चीज़ में अपने पूर्वजों की स्मृतियाँ झलकती थीं।

Samvad 2025 (1)
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24 जनजातियों के उपचारक (healers) भी अपने पारंपरिक उपचारों के साथ मौजूद थे। आधुनिक समय की बीमारियों - लाइफस्टाइल डिसीज़ और यहां तक कि चिरोप्रैक्टिक जैसी पद्धतियों के साथ वे बता रहे थे कि प्रकृति को समझकर स्वास्थ्य प्राप्त करना विज्ञान की सबसे पुरानी, पर सबसे गहरी समझ है।

संवाद के दिन बढ़ते गए… संवाद गहराता गया

दूसरे और तीसरे दिन संवाद और भी व्यापक हो गया। कला, चिकित्सा, पर्यावरण, खानपान और सामुदायिक पहचान पर गहन विचार-विमर्श चलता रहा। Akhra में पर्यावरण की पारंपरिक समझ को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें हुईं। Samuday ke Saath में जनजातीय महिलाएँ कैमरे के पीछे अपनी आवाज़ खोज रही थीं- एक साहसी कदम, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता खोलेगा।

इस दौरान संवाद के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक रहा- Rhythms of The Earth, 44 कलाकारों का अद्भुत मल्टी-ट्राइबल म्यूज़िक बैंड।

उन्होंने लद्दाख के युवा संगीत समूह Da Shugs के साथ मिलकर अपना दूसरा एल्बम लॉन्च किया। यह सिर्फ संगीत नहीं था, यह धरती की धड़कनों का मिलन था।

शाम होते-होते उराँव, माविलन, मिजो, पवारा, गारो, कूकी और कंधन समुदायों ने ऐसी प्रस्तुतियाँ दीं, जिनमें सिर्फ नृत्य नहीं था - अपने अस्तित्व का उत्सव था।

समुदाय, नेतृत्व और भविष्य की राह

तीसरे और चौथे दिन सांवाद का केंद्र रहा नेतृत्व और समुदाय आधारित शासन प्रणाली। देश भर से आए परिवर्तनकर्मी यह साझा कर रहे थे कि कैसे आदिवासी समाज की निर्णय प्रणाली—जो प्रकृति, समुदाय और न्याय के सिद्धांत पर आधारित है—आज भी समाधान दे सकती है।

इस बीच एक ऐतिहासिक क्षण भी देखने को मिला, टाटा स्टील फाउंडेशन और इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (IHCL) के बीच पांच साल की साझेदारी का नवीनीकरण।

यह साझेदारी आदिवासी खानपान को मुख्यधारा में ले जाने, रसोइयों को प्रशिक्षण देने, और उनकी पाक-कथाओं को दस्तावेज़ करने की दिशा में बड़ा कदम है।

समुदाय की कहानियाँ- कैमरे की नज़र से

8वें Samuday ke Saath National Short Film Competition 2025 में 13 राज्यों से 42 फिल्मों ने भाग लिया। संथाल समुदाय के रेमेश कुमार हेम्ब्रम की Puise Dare, The Money Plant ने दो पुरस्कार जीते—सर्वोत्तम फिल्म और पॉपुलर चॉइस अवॉर्ड। सिनेमाई कहानियों से यह स्पष्ट था- "जब आदिवासी अपनी कहानी खुद कहते हैं, तो दुनिया कहीं ज़्यादा सच्ची लगने लगती है।"

एकता, विविधता और खुशियों से भरी रातें

हर शाम सांवाद 2025 संगीत, नृत्य और उत्सव का घर बन जाता। संथाल, मिजो, गूज्जर, साबर और माविलन समुदायों की प्रस्तुतियाँ देखने हजारों लोग पहुँचते। सिक्किम के Sofiyum Band और खासी हिल्स के Summersalt Band ने समा बांध दिया।

गोपाल मैदान का Aatithya फूड - पॉपअप लोगों से खचाखच भरा रहता—हर थाली, हर कौर, हर स्वाद पुरखों के आशीर्वाद जैसा महसूस होता।

संवाद एक आयोजन नहीं, एक लौटती हुई पहचान है

संवाद 2025 अभी जारी है, और उसके साथ जारी है, आवाज़ों का मिलन, ज्ञान का आदान-प्रदान, और वह गर्व जो हर आदिवासी अपनी मिट्टी से लेकर आता है।

यह आयोजन हमें याद दिलाता है, संस्कृतियाँ तभी जीवित रहती हैं जब उन्हें सम्मान दिया जाए और सांवाद हर वर्ष यही करता है सम्मान देता है, सुनता है, और जोड़ता है।

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