अमेरिकी टैरिफ से भारत के सीफूड और कृषि निर्यात पर क्या होगा असर?

Divendra Singh | Aug 01, 2025, 14:21 IST
अमेरिका द्वारा 25% टैरिफ बढ़ाए जाने से भारत का सीफूड और कृषि निर्यात गहरे संकट में है। जानिए कैसे हजारों किसानों, मछुआरों और निर्यातकों पर इसका असर पड़ेगा और सरकार क्या कदम उठा रही है।
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ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के मछुआरे रघुनाथ स्वैन इस बार झींगे की अच्छी फसल से खुश तो थे, लेकिन बाजार में भाव सुनकर उनका चेहरा उतर गया। “पिछले साल जितनी मेहनत की थी, उसका दाम ठीक मिला था। इस बार तो नुकसान हो जाएगा। अमेरिका में टैक्स बढ़ गया है, अब वो रेट नहीं मिलेगा,” वे कहते हैं। रघुनाथ जैसे लाखों किसान और मछुआरे, अब एक अगस्त से लागू अमेरिकी टैरिफ की मार झेल सकते हैं।

अमेरिका द्वारा हाल ही में भारतीय झींगा और अन्य समुद्री उत्पादों पर 25% टैरिफ लागू करने के फैसले ने भारत की सीफूड निर्यात इंडस्ट्री को गंभीर संकट में डाल दिया है। इस फैसले का सीधा असर न केवल निर्यातकों पर, बल्कि मछुआरों, किसानों और पूरी आपूर्ति श्रृंखला पर भी पड़ेगा है। यह चिंता अब सिर्फ समुद्री खाद्य तक सीमित नहीं रही, भारत के कृषि निर्यात जैसे बासमती चावल, मसाले, फल और तेलबीज पर भी इसका परोक्ष प्रभाव पड़ सकता है।

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APEDA के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 (FY23) में भारत ने 17,35,286 मीट्रिक टन समुद्री उत्पादों का निर्यात किया, जिसकी कुल कीमत ₹63,969 करोड़ (US$ 8.09 बिलियन) रही। यह मात्रा FY22 की तुलना में 26.73% और मूल्य के लिहाज से 11.08% अधिक थी। लेकिन FY24 में यह घटकर ₹60,523.89 करोड़ (US$ 7.38 बिलियन) रह गया, हालांकि निर्यात की कुल मात्रा फिर भी बढ़कर 17,81,602 मीट्रिक टन रही।

सीफ़ूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEAI) के अध्यक्ष जी. पवन कुमार के चार अप्रैल को दिए गए बयान के अनुसार भारत, अमेरिका को झींगा निर्यात करने वाला सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। लेकिन अब 25% टैरिफ़ से पूरी वैल्यू चेन पर गहरा असर होगा। उन्होंने कहा, "यह टैरिफ़ इस क्षेत्र के सभी हितधारकों को प्रभावित करेगा और हर स्तर पर आर्थिक संकट खड़ा करेगा।"

इस आंकड़े में अमेरिका की हिस्सेदारी बेहद अहम है, भारत का करीब 40% सीफूड निर्यात अमेरिका को जाता है, और उसमें भी मुख्य रूप से फ्रोज़न झींगा प्रमुख है। FY23 में भारत ने 7,11,099 मीट्रिक टन झींगा निर्यात किया, जिसमें से 2,75,662 मीट्रिक टन केवल अमेरिका गया, जबकि FY24 में यह आंकड़ा बढ़कर 2,97,571 मीट्रिक टन हो गया।

सीफ़ूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, ओडिशा के सचिव भवानी शंकर प्रधान कहते हैं, "अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से सबसे ज़्यादा असर मछुआरों और छोटे निर्यातकों पर पड़ेगा। लागत तो बढ़ी है, लेकिन मूल्य नहीं बढ़ रहा। सरकार को इसे लेकर गंभीरता से अमेरिका से बात करनी चाहिए।"

अमेरिकी आयातक अब चाहते हैं कि भारतीय निर्यातक यह अतिरिक्त शुल्क खुद वहन करें, जिससे लागत में कटौती की मार सीधे फार्मगेट प्राइस, यानी किसानों और मछुआरों को मिलने वाले दाम पर पड़ रही है। नतीजतन, कई राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में निर्यातक नुकसान में चल रहे हैं।

विशाखापट्टनम स्थित जी. पवन कुमार ने आगे कहा, "इस सेक्टर में लाभ का मार्जिन केवल 4-5% है, ऐसे में 16% का अंतर भारत के निर्यातकों के लिए असहनीय है।"

विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के इस टैरिफ का प्रभाव केवल समुद्री खाद्य तक सीमित नहीं रहेगा। महाराष्ट्र के कृषि विशेषज्ञ विजय जावंधिया कहते हैं, "बासमती चावल का बड़ा हिस्सा अमेरिका को जाता है। अब यदि वहां दाम बढ़ते हैं तो ग्राहक कम होंगे। इससे भारत के किसानों पर सीधा असर पड़ेगा। कपास और मसालों पर भी दबाव आएगा।"

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हालांकि कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा इसे स्थायी संकट नहीं मानते। उनका कहना है कि, "अगर टैरिफ बढ़ा है, तो बाजार मूल्य भी बढ़ सकता है। जल्दबाज़ी में निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है।" लेकिन छोटे निर्यातकों और ट्रेडर्स के लिए यह जोखिम भरा समय है, जिनके पास अमेरिका के अलावा कोई मजबूत वैकल्पिक बाजार नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अमेरिका की कंपनियां अब इक्वाडोर और वियतनाम जैसे देशों की ओर रुख कर रही हैं, जो न केवल सस्ता निर्यात कर रहे हैं, बल्कि टैक्स छूट जैसी सहूलियतें भी पा रहे हैं। इससे भारत की छोटी कंपनियों को और ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

सरकार की ओर से कुछ उपाय किए जा रहे हैं। RoDTEP (Remission of Duties and Taxes on Export Products) स्कीम के तहत अब टैक्स रियायतें 3.1% तक बढ़ाई गई हैं ताकि निर्यात प्रतिस्पर्धी बने रहें। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत ₹20,050 करोड़ का निवेश करके उत्पादन और मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने की कोशिश हो रही है।

भारत सरकार ने WTO में इस मुद्दे को उठाने की बात कही है और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता की कोशिशें जारी हैं। साथ ही, अब निर्यातकों का ध्यान जापान, चीन, यूरोप और यूएई जैसे वैकल्पिक बाज़ारों की ओर बढ़ रहा है।

कुछ राज्य भी स्थानीय समाधान तलाश रहे हैं। आंध्र प्रदेश सरकार ने घरेलू बाजार में झींगा खपत को बढ़ाने के लिए प्रचार और ब्रांडिंग अभियान शुरू किया है, ताकि निर्यात न होने की स्थिति में भी उत्पादकों को नुकसान न हो।

लंबे समय के समाधान के लिए विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अब अपनी निर्यात रणनीति में विविधता लानी होगी। केवल एक देश या एक उत्पाद पर निर्भरता से बाहर निकलकर, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग जैसे मूल्य संवर्धन क्षेत्रों में निवेश करना ज़रूरी है।

किसानों और मछुआरों के लिए सीधा समर्थन भी अहम होगा, चाहे वो न्यूनतम समर्थन मूल्य हो या उत्पादन सब्सिडी, ताकि वैश्विक दबावों के बावजूद उन्हें आर्थिक स्थिरता मिल सके।

इस पूरे संकट की सबसे बड़ी सीख यही है कि निर्यात केवल आर्थिक आँकड़ों का विषय नहीं है, यह लाखों परिवारों की जीविका का आधार है। अमेरिका का यह फैसला भारत को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या हमारी पूरी रणनीति कुछ चुनिंदा बाजारों पर बहुत ज्यादा निर्भर है? और अगर हां, तो क्या समय आ गया है कि हम इससे बाहर निकलने की कोशिश करें?

भारत को अब ऐसे निर्यात मॉडल की ओर बढ़ना होगा जो केवल विदेशी मांग पर न टिका हो, बल्कि स्थानीय बाज़ारों की क्षमता, प्रोसेसिंग इनफ्रास्ट्रक्चर, और वैश्विक गुणवत्ता मानकों पर भी खरा उतरता हो। और सबसे ज़रूरी बात: यह मॉडल किसानों और मछुआरों के लिए लाभकारी और टिकाऊ होना चाहिए।

सरकार ने लिया अमेरिकी टैरिफ़ का संज्ञान, किसानों और MSME के हितों की रक्षा का भरोसा

भारत सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारतीय कृषि और समुद्री उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा का गंभीरता से संज्ञान लिया है। सरकार इस निर्णय के व्यापक प्रभावों का मूल्यांकन कर रही है और इस मुद्दे पर अमेरिका से द्विपक्षीय स्तर पर संवाद भी कर रही है।

सरकारी बयान के अनुसार, “भारत और अमेरिका पिछले कुछ महीनों से एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते को लेकर बातचीत कर रहे हैं। हम इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

सरकार ने यह भी दोहराया कि वह भारत के किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। हाल ही में ब्रिटेन के साथ किए गए समग्र व्यापार समझौते (Comprehensive Economic and Trade Agreement) की तर्ज़ पर, भारत अन्य देशों के साथ भी समान संतुलित समझौतों की दिशा में प्रयासरत है।

ट्रंप का नया आदेश, कई देशों पर बढ़ा आयात शुल्क

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार पर बड़ा असर डालने वाला कदम उठाया है। शुक्रवार को ट्रंप प्रशासन ने दर्जनों देशों पर आयात शुल्क (टैरिफ़) बढ़ाने का एलान किया। यह एलान उस समय हुआ जब अमेरिका की कुछ अहम ट्रेड डील्स की समयसीमा समाप्त होने के कुछ ही घंटे बचे थे।

ट्रंप के नए कार्यकारी आदेश के मुताबिक, कुछ देशों पर टैरिफ़ दरें तुरंत प्रभाव से लागू हो गई हैं, जबकि कई अन्य देशों के लिए यह दरें 7 अगस्त से प्रभावी होंगी। इन देशों में बांग्लादेश 20%, श्रीलंका 20%, पाकिस्तान 19% हैं।

भारत से निराश है अमेरिकी ट्रेड टीम: वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट

इस टैरिफ़ नीति की घोषणा के साथ ही अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने एक अहम बयान दिया है। उन्होंने CNBC को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और पूरी ट्रेड टीम भारत के रवैये से ‘थोड़ी निराश’ है।

बेसेंट ने कहा, “भारत शुरुआत में बातचीत की मेज़ पर आया था, लेकिन बाद में उसने चीज़ों को बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ाया।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत रूस से प्रतिबंधित तेल का एक बड़ा खरीदार बना हुआ है, जिसे वह रिफ़ाइन कर दूसरे बाज़ारों में बेचता है।

जब उनसे पूछा गया कि आगे क्या होगा, तो उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता आगे क्या होगा, ये भारत पर निर्भर करता है।"

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