यूपी पंचायत चुनाव: 12.69 करोड़ मतदाता, गाँवों में लोकतंत्र की नई ताक़त
Gaon Connection | Dec 25, 2025, 14:24 IST
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उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों से पहले जारी हुई नई मतदाता सूची गाँवों में बदलते सामाजिक और लोकतांत्रिक परिदृश्य की तस्वीर पेश करती है। 12.69 करोड़ मतदाताओं के साथ यह सूची न केवल संख्या में बढ़ोतरी का संकेत देती है, बल्कि महिलाओं, युवाओं और प्रवासी मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी को भी रेखांकित करती है।
<p>इस बार सूची को केवल कागज़ी प्रक्रिया नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर सत्यापन के जरिए अपडेट किया गया है।<br></p>
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों की आहट के साथ ही गाँवों के लोकतंत्र की तस्वीर धीरे-धीरे साफ़ होने लगी है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी नई ड्राफ्ट मतदाता सूची के मुताबिक, इस बार प्रदेश में 12.69 करोड़ मतदाता पंचायत चुनावों में भाग लेने के लिए पंजीकृत किए गए हैं। यह संख्या पिछली पंचायत मतदाता सूची की तुलना में 40.19 लाख अधिक है। ये आंकड़े केवल प्रशासनिक अपडेट नहीं हैं, बल्कि गांवों में बदलती आबादी, बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और लोकतांत्रिक भागीदारी के विस्तार की कहानी भी कहते हैं।
पंचायत चुनावों की तैयारी अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, मतदाता सूची के इस व्यापक पुनरीक्षण में कई स्तरों पर सुधार किए गए हैं। नए युवा मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं, लंबे समय से गांवों से बाहर रह रहे प्रवासी लोगों के नाम अपडेट किए गए हैं, वहीं मृत और स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं। इस प्रक्रिया ने मतदाता सूची को पहले के मुकाबले अधिक यथार्थपरक और भरोसेमंद बनाया है।
पिछले पंचायत चुनावों की तुलना में इस बार मतदाता सूची की तस्वीर काफ़ी बदली हुई नज़र आती है। पहले कई गाँवों में मृत मतदाताओं के नाम वर्षों तक सूची में बने रहते थे, जबकि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों और युवाओं के नाम दर्ज ही नहीं हो पाते थे। महिला मतदाताओं की भागीदारी भी अपेक्षाकृत कम थी।
इस बार व्यापक पुनरीक्षण का असर साफ़ दिख रहा है। महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर पहुंच गई है, और पहली बार वोट देने वाले युवाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव पंचायत स्तर की राजनीति को अधिक प्रतिस्पर्धी और जवाबदेह बना सकता है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची पर दावे और आपत्तियों के लिए स्पष्ट कार्यक्रम जारी किया है।
इन तमाम तैयारियों के बीच पंचायत चुनावों पर सबसे बड़ा सवाल पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को लेकर बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन और तथाकथित ट्रिपल टेस्ट पूरा करना अनिवार्य है। फिलहाल आयोग का गठन नहीं हो सका है, जिसके चलते चुनाव की समय-सीमा को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं होती, तो चुनाव टलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, भले ही मतदाता सूची पूरी तरह तैयार क्यों न हो।
कुल मिलाकर, पंचायत मतदाता सूची के नए आंकड़े यह संकेत देते हैं कि गांवों में लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ रही है। युवा और महिलाएं पहले से कहीं अधिक संख्या में पंचायत चुनाव प्रक्रिया से जुड़ रही हैं और प्रशासन मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और अद्यतन बनाने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि असली चुनौती अभी बाकी है। सवाल यह नहीं कि सूची में कितने नाम दर्ज हैं, बल्कि यह है कि ये 12.69 करोड़ मतदाता मतदान के दिन बूथ तक पहुंचेंगे या नहीं। पंचायतें गांव की सरकार होती हैं, और उनका भविष्य उन्हीं हाथों में है, जो मतदान के दिन अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे।
पंचायत चुनावों की तैयारी अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, मतदाता सूची के इस व्यापक पुनरीक्षण में कई स्तरों पर सुधार किए गए हैं। नए युवा मतदाताओं के नाम जोड़े गए हैं, लंबे समय से गांवों से बाहर रह रहे प्रवासी लोगों के नाम अपडेट किए गए हैं, वहीं मृत और स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं। इस प्रक्रिया ने मतदाता सूची को पहले के मुकाबले अधिक यथार्थपरक और भरोसेमंद बनाया है।
बदलती गाँव की राजनीति
इस बार व्यापक पुनरीक्षण का असर साफ़ दिख रहा है। महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर पहुंच गई है, और पहली बार वोट देने वाले युवाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव पंचायत स्तर की राजनीति को अधिक प्रतिस्पर्धी और जवाबदेह बना सकता है।
आपत्तियों के लिए समय-सीमा तय
- 30 दिसंबर तक मतदाता सूची पर आपत्तियां और सुझाव दर्ज कराए जा सकेंगे।
- 31 दिसंबर से 6 जनवरी के बीच उनकी सुनवाई और निस्तारण किया जाएगा।
- इसके बाद 6 फरवरी 2026 को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
ओबीसी आरक्षण बना बड़ा सवाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं होती, तो चुनाव टलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, भले ही मतदाता सूची पूरी तरह तैयार क्यों न हो।
लोकतंत्र की असली परीक्षा मतदान के दिन
हालांकि असली चुनौती अभी बाकी है। सवाल यह नहीं कि सूची में कितने नाम दर्ज हैं, बल्कि यह है कि ये 12.69 करोड़ मतदाता मतदान के दिन बूथ तक पहुंचेंगे या नहीं। पंचायतें गांव की सरकार होती हैं, और उनका भविष्य उन्हीं हाथों में है, जो मतदान के दिन अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे।