कर्ज की वजह से हुई मौत को क्यों छिपा रहा हैं प्रशासन?

Arvind Singh Parmar | Dec 05, 2019, 07:19 IST
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ललितपुर (उत्तर प्रदेश)। बुंदेलखंड के ललितपुर में 54 साल के किसान गुमान बुनकर की मौत कैसे हुई, इस पर सवाल उठ रहे हैं। परिजनों का कहना है कि गुमान पर करीब 2 लाख का कर्ज़ था। उड़द की फसल बर्बाद होने से उन्होंने परेशान होकर आत्महत्या की है। वहीं जिला प्रशासन इसे हादसा बता रहा है। जिला प्रशासन के मुताबिक किसान के ऊपर बैंक का कर्ज भी नहीं था। हालांकि बैंक पासबुक कुछ और कह रही है।

ललितपुर जिले के पाली तहसील के सिगैपुर गांव के किसान गुमान बुनकर का शव अपने घर से 70 किलोमीटर दूर तालबेहट में रेलवे लाइन के पास नीम के पेड़ से लटका मिला था। उनके परिवार में तीन मजदूरी करने वाले बेटे, बीमार पत्नी और पोते-नाती को मिलाकर कुल 15 लोग हैं। गुमान अपनी लकवाग्रस्त पत्नी की दवा लेने के लिए झांसी गए थे।

"दो लाख बैंक का कर्ज 7 साल से नहीं भर पाए। हर साल सूखा पड़ता था लेकिन इस बार उड़द पानी से गल गया। उसी वजह से कर्ज के पैसे वापिस नहीं कर पाये। पुराना मटर बोया था, उसके पौधे दूर-दूर निकले। यह देखकर वह घबड़ा गये। चिंता थी कि खेत की लागत कौन देगा? ऊपर से करीब एक लाख रुपए गांव वालों का कर्ज था।", गुमान की पत्नी मीराबाई (52वर्ष) बताती हैं। उन्होंने बताया कि घर चलाने और बैंक का कर्ज चुकाने के लिए उनके दो बेटे जुलाई महीने में कमाने के लिए इंदौर गए थे।

जिलाधिकारी योगेश कुमार शुक्ल के निर्देश पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं एसडीएम पाली से मामले की जाँच कराई गई। रिर्पोट का जिक्र समाचार पत्रों में है जिसमें बताया गया, "मृतक गुमान बुनकर के तीन पुत्र हैं उनके दो पुत्र इंदौर में 12-12 हजार की नौकरी करते हैं। गुमान की बैंक से दो लाख की लिमिट थी जरूरत के हिसाब से बैंक से रुपया लेते थे और खेती में लगाया करते थे। पैदावार होते ही धनराशि बैंक को वापिस कर देते थे। गुमान बुनकर पर 2 लाख रुपए का कोई कर्ज नहीं हैं। परिवार में सिर्फ एक समस्या हैं गुमान की पत्नी का पैर पैरालाइज है। कोई झगड़ा भी नहीं था।"

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स्थानीय समाचार पत्रों में आत्महत्या की खबरों को झुठलाता प्रशासन

गुमान के परिवार से मिलने पहुंचे गांव कनेक्शन के संवाददाता को पीड़ित परिवार ने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की खाली पासबुक दिखाई, जिस पर जमा-निकासी को उल्लेख नहीं था। गुमान के बड़े बेटे गुन्नू ने जब बैंक जाकर उसकी नवीन एंट्री कराई, तो उसमें कर्ज दर्ज था।

गुमान बुनकर ने सात एकड़ जमीन पर 16 अगस्त 2012 को पीएनबी बैक बिरधा से 2 लाख 20 हजार रुपए की लिमिट की केसीसी बनवाकर कर्ज निकाला। वह कार्ड 15 अगस्त 2017 अर्थात 5 साल तक के लिए वैध था। बैंक का पूरा कर्ज वापिस ना कर पाने की वजह से कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो पाया। बैंक की पासबुक के मुताबिक 30 सितम्बर 2019 को 1 लाख 15 हजार 587 रुपए बैंक का कर्ज है। परिजनों के मुताबिक पिछले वर्षों में लगातार सूखा और फिर ओलावृष्टि जैसी दैवीय आपदाओं के चलते वो कर्ज नहीं चुका पाए थे।

इंदौर में मजदूरी करने वाले गुमान के बेटे सुनू बुनकर (33 वर्ष) कहते हैं, "कर्ज से परेशान होकर हम इंदौर मजदूरी करने चले गये। हमें फोन पर जानकारी मिली कि पिता जी ने फांसी लगा ली। हम लोग कर्ज से बहुत परेशान हैं, सरकार हमारी मदद करे।"

गमान बुनकर ने अपने सात एकड़ खेत में उड़द की फसल बोई थी। गुमान की तरह जिले के सभी किसानों की सितंबर-अक्टूबर माह में हुई अधिक बारिश से पूरी फसल तबाह हो गई। कृषि विभाग, ललितपुर के आंकड़ों के अनुसार, "जिले के 2,61,776 हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन और तिलहन की फसल बोयी गयी थी, जिसमें से 1,80,965 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों की फसल बर्बाद हुई। बर्बाद हुई फसल में अधिकतर उड़द की फसल थी।"



किसान यूनियन के मण्डल उपाध्यक्ष कीरत बाबा कहते हैं, "2018 मे बैंको द्वारा 18,164 किसानों के केसीसी से फसल बीमा की राशि काट ली। बैकों ने बीमा कम्पनी को पैसा नहीं दिया। किसान नेताओं के विरोध करने पर अधिकारियों ने 15,387 किसानों के 14 करोड़ 62 लाख रुपया वापिस करने की बात कही जो बैंको ने फसल बीमा के नाम पर काटे हैं। अधिकारी 2,777 किसानों की बात पर कुछ नहीं कहते हैं।"

बात को जारी रखते हुऐ कीरत बाबा कहते हैं, "2018 में हुए नुकसान के एवज में जिला प्रशासन ने प्रदेश शासन से 1 अरब 64 करोड़ 75 लाख 75 हजार 489 रुपए की मांग की थी। जिला प्रशासन की मांग के आधार पर 6 मार्च 2019 को शासन द्वारा 83 करोड़ 1 लाख 8 हजार 250 रुपया ही जिले को मिला। मुआवजे का पैसा किसानों को बांटने के बजाय 25 वें दिन 31 मार्च 2019 को जिला प्रशासन ने आचार संहिता का हवाला देते हुऐ शासन को पैसे वापिस कर दिए।"

"पिछले साल से ज्यादा इस साल किसान बर्बादी के साथ कंगाल हो गया। राहत के नाम पर किसान के हाथ खाली हैं। सरकार से मदद मिली होती तो ललितपुर का किसान आत्महत्या वाले कदम नहीं उठाता। चारो तरफ कर्ज से घिरे किसान आत्महत्या कर रहे हैं।", कीरत बाबा आगे कहते हैं।

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिर्पोट के अनुसार भारत में साल 2016 में 11,379 किसानों ने खुदकुशी की है। यह आंकड़ा एनसीआरबी की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड' रिपोर्ट में सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर महीने 948 या हर दिन 31 किसानों ने आत्महत्या की। हालांकि रिपोर्ट यह भी बताती है कि साल दर साल खुदकुशी के मामलों में कुछ कमी आई है 2016 में जहां 11,379 किसानों ने खुदकुशी की तो वहीं 2014 में 12,360 और 2015 में 12,602 किसानों ने आत्महत्या की थी।

गुमान बुनकर की आत्महत्या के एक दिन पहले महरौनी तहसील अंतर्गत कुआँघोषी गाँव के भागीरथ की पत्नी मजदूरी करने गई थी और लड़का गजेन्द्र भैस चराने। तभी भैस चराते समय गजेन्द्र के पास फोन आया कि पापा भागीरथ (54 वर्ष) ने गाँव से सड़क की ओर जाने वाले रास्ते के बीच आम के पेड़ पर लटक कर आत्महत्या कर ली। भागीरथ के पास साढ़े तीन एकड़ जमीन थी। लगातार सूखे और अतिवृष्टि की मार से भागीरथ के फसल को नुकसान हुआ था। भागीरथ ने अपनी पाँच बच्चियों की जमीन बेचकर शादी की और कर्जा चुकाया। अब उसके पास महज एक एकड़ जमीन बची है।

"उड़द की फसल नहीं हुई, खाद बीज लेने तक को पैसे नहीं थे।", पापा पर पचास हजार कर्ज होने की बात करते हुए गजेन्द्र कुशवाहा (23 वर्ष) निःशब्द रह गए। कुछ देर गुमसुम रहने के बाद वह कहते हैं, "पापा ने महाजनों से कर्ज लिए थे। कह रहे थे कि कोई रास्ता नहीं दिखता। जमीन बेचेंगे तो पूरा घर सड़क पर आ जायेगा। हम भैस चराने गये थे और मां मजदूरी करने। फोन पर मालूम हुआ कि पापा ने आत्महत्या कर ली।"

"साढ़ें तीन एकड़ भूमि थी। पांच बच्चियों और एक बच्चे की शादी की। परेशानी बहुत थी। कर्जा चुकाने के लिए वो जमीन बेच गये, अब एक एकड़ ही बची है। बसकारे (बरसात) से उड़द में कुछ नहीं निकला। गेहूँ की खेती के लिए कोई पैसा नही दे रहा था। जिसका पैसा लिया उसका वापिस नही दे पाये।" भागीरथ की पत्नी लाली (52 वर्ष) कहती हैं।

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मृतक किसान भागीरथ के परिजन

भागीरथ की बड़ी लड़की उमादेवी (32 वर्ष) कहती हैं, "फसल हर बार धोखा देती रही। कभी उपज कम हुई तो कभी फसल नष्ट हो गई। कर्जा भी था, घर में पैसे भी नहीं रहते थे। जमीन बेचकर सभी बहनों की शादी की और कर्ज चुकाया।"

उमादेवी आगे कहती हैं, "आपसी वालों (महाजनों) के 50-60 हजार रुपए चुकाने थे। पापा को चिंता थी कि सालभर क्या खाएंगे। जमीन भी तो बेचने के लिए नहीं बची थी।"

ललितपुर के कृषि अधिकारी गौरव यादव बताते हैं, "हाँ किसानों की फसलें बर्बाद हुई है। उनके नुकसान का अनुमान कृषि विभाग लगा रहा है। आकलन की मुताबिक 65 से 70 प्रतिशत फसलें खराब हुई हैं। खेत टू खेत आधार पर जो रिर्पोट शासन को जाती है, वही मानी जाती हैं।"

गौरव यादव आगे बताते हैं, "कुछ दिन पहले भारत सरकार की टीम खरीफ के नुकसान का जायजा लेने के लिए जनपद में आयी थी, उन्होने माना कि खरीफ कि फसल में 70 प्रतिशत तक का नुकसान हुआ हैं।"

शासन को पैसा वापिस करने की बात को स्वीकार करते हुए गौरव कहते हैं, "2019 में आपदा का पैसा आया था लेकिन आचार संहिता लगने की वजह से किसानों को वितरित नही हो सका।"



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