ये आरा पेड़ पर नहीं, आपके फेफड़ों पर चल रहा

अंकित मिश्रा | Sep 16, 2016, 16:03 IST
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उन्नाव। सड़क चौड़ी करने के लिए हज़ारों पेड़ों को काट तो दिया गया, लेकिन इसके बदले लगाए कहां जाएंगे उसकी जगह तक तय नहीं। पौधे लगाने मेें सुस्ती का यह हाल तब है जब राजधानी लखनऊ समेत कई शहरों का प्रदूषण के मामले में बुरा हाल है।

चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर उन्नाव से शुक्लागंज तक जाने वाली सड़क के चौड़ीकरण के लिए दस हज़ार पेड़ों को काट दिया गया। केन्द्र ने काटने की अनुमति इसी शर्त पर दी थी कि एक के बदले पांच पौधे लगाए जाएंगे। लेकिन अभी तक जगह तक तय नहीं हो पाई है।

यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार वर्ष 2014 में वायु में कार्बन कण की मात्रा (पीपीएम) 135.4 थी, जो नवंबर 2015 में बढ़कर 146.4 हो गई। वहीं, 2014 में यूपी के 20 जिलों में पीपीएम तय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति वर्ग मीटर से पांच गुना तक अधिक पाया गया।

लगातार काटे जा रहे अंधाधुंध पेड़ों की अपेक्षा लगने वाले कम पौधों से वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एयर क्वालिटी इंडेक्स बुलेटिन के मुताबिक लखनऊ की इंडेक्स वैल्यू 411 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। जो प्रदेश में सबसे प्रदूषित है। वहीं कानपुर और वाराणसी की औसत इंडेक्स वैल्यू 305 और 345 दर्ज़ की गई।

''फोरलेन निर्माण के तहत जितने पेड़ काटे गए हैं उसके बदलेे नए पौधे लगाए जाएंगे। भारत सरकार पौधे लगाने के बदले ही पेड़ काटने की अनुमति देती है। स्थान का चयन कर लिया गया है। जल्द ही पौधे लगवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।" उन्नाव की डीएम सौम्या अग्रवाल ने कहा।

चौड़ी की जा रही इस सड़क के दोनों ओर स्थित गाँवों और कस्बाई क्षेत्रों में करीब छह लाख लोग रहते हैं। इसी के आसपास लेदर पार्क में दर्जनों चमड़ा फैक्ट्रियां हैं। लेकिन यहां के लोग प्रदूषित वायु की समस्या झेलने को मजबूर हैं।

"काटे गए पेड़ों की विक्रय की धनराशि केंद्र को भेज दी गई है। अब वहां से पैसा आएगा तब पौधों की खरीद की जाएगी। नए पौधों को फॉरेस्ट रिजर्व में लगाया जाना है। जगह कम पडऩे पर नए स्थान का चयन किया जाएगा।" वीके मिश्रा, जिला वन अधिकारी, उन्नाव बताते हैं।

उन्नाव जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. आईएम तव्वाब बताते हैं, "वायु प्रदूषण से फेफड़ों में होने वाले स्वास की बीमारी (सीआेपीडी) की शिकायत हो जाती है। सीआेपीडी से स्वांस नलियां सिकुड़ जाती हैं और सांस लेनेे में तकलीफ होती है। वातावरण में मौजूद रहने वाले सूक्ष्म पदार्थ फेफड़ों पर असर डालते हैं। वायु प्रदूषण से अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस और हार्ट अटैक का कारण बन सकते हैं।"

वायु प्रदूषण से बच्चों के फेफड़े हो रहे कमज़ोर

देश भर में स्वास्थ्य पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था 'हील फाउंडेशन' द्वारा जारी किए गए सर्वे के अनुसार 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के फेफड़ों पर वायु प्रदूषण का असर ज्यादा होता है, क्योंकि वह पूरी तरह विकसित नहीं हुए होते हैं। संस्था ने यह सर्वे भारत के 2,000 स्कूलों में आठ से चौदह वर्ष के बच्चों के बीच कराया। इसी तरह बुजुर्गों के फेफड़ों की क्षमता कम होने लगती है जिसके कारण उन्हें भी खतरा रहता है।

पेड़ क्यों हैं ज़रूरी

एक पेड़ प्रति वर्ष लगभग साढ़े छह किलो तक कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करके करीब 130 किग्रा आक्सीजन छोड़ता है। एक व्यक्ति को वर्ष में करीब सात सौ चालीस किलोग्राम ऑक्सीजन की जरूरत होती है।

रिपोर्टर - अंकित मिश्रा/श्रीवत्स अवस्थी

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