ग्राउंड रिपोर्ट: मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से अब तक 70 बच्चों की मौत, दर्जनों पीड़ित भर्ती

Chandrakant Mishra | Jun 14, 2019, 05:10 IST
#Bihar
मुजफ्फरपुर (बिहार)। बिहार के मुजफ्फरपुर में संदिग्ध बुखार (दिमागी बुखार) से बच्चों के मरने की संख्या बढ़ती ही जा रही है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो अब तक 57 बच्चों की माैत हो चुकी है। शुक्रवार की सुबह मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज पहुंचे नीतीश कुमार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि मौत के कारणों पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है, जांच चल रही है।

47 बच्चों की मौत श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ( SKMCH) में हुई है जबकि 10 बच्चे केजरीवाल अस्पताल में अपनी जान गंवा चुके हैं। मेडिकल काॅलेज में अभी 40 से ज्यादा बच्चों का इजाल चल रहा है। वहीं एक निजी अस्पताल में भी 41 बच्चे भर्ती हैं।

जान गंवाने वाले बच्चों की उम्र 1 से 7 वर्ष है। 15 वर्ष तक के बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी का लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में कंपन होना है। इतनी मौतों के बाद भी बीमारी की पता नहीं लगाया जा पाया है।

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मौत के कारणों का पता लगाने के लिए केंद्र की तरफ से सात सदस्यीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम मुजफ्फपुर पहुंची है। अभी तक डॉक्टर जो बता रहे हैं उसके अनुसार चिलचिलाती गर्मी, नमी और बारिश का न होना बताया जा रहा है।



पहले जब मौत की खबरें आई थीं तब एईएस (एक्यूट इन्सेफ़लाइटीस सिंड्रोम) और जेई (जापानी इन्सेफ़लाइटीस) को कारण माना जा रहा था लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई। कुछ रिपोर्ट में लीची को भी कारण बताया जा रहा है लेकिन डॉक्टर इस बात को खारिज कर रहे हैं।

श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के सीएमएस (चीफ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट) डॉ. सुनील कुमार शाही ने गांव कनेक्शन से विशेष बातचीत में बताया " कोई भी मौत लीची खाने से नहीं हुई है। इस पर हम पहले ही रिसर्च कर चुके हैं। जैसे ही बारिश शुरू होगी यह बीमारी भी खत्म हो जायेगी।"

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उधर केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने गुरुवार को निगरानी प्रणाली को और मजबूत करने में बिहार को हरसंभव मदद देने का भरोसा दिलाया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से नई दिल्ली में मुलाकात की और खासतौर पर उन जिलों में व्यापक जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत बताई।



हर्षवर्धन ने कहा कि लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि इस तरह की बीमारी की स्थिति में बच्चों के गंभीर रूप से बीमार होने से पहले उन्हें समय पर उपचार के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ले जाएं।

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