बैंड बाजा का काम छोड़कर कोई बेचने लगा है चाय, तो कोई कर रहा है खेत में मजदूरी

Abhishek Verma | Jul 06, 2020, 07:22 IST
बैंड वाले गांव के नाम से मशहूर इस गाँव की रौनक बिल्कुल गायब है। सैकड़ों लोग बेरोज़गार हो गए हैं। इस गांव का अकेला व्यापार बैंड ही है जो पूरी तरह से बंद पड़ा है।
coronavirus
लखनऊ। शादियों में बैंड बाजा बजाने वाले कमल किशोर ने आजकल सड़क किनारे चाय की दुकान शुरू कर दी है, उनके कई साथी तो खेतों में मजदूरी भी करने लगे हैं। पिछले कुछ महीनों में बैंड बाजा के व्यवसाय से जुड़े लोगों की स्थिति खराब हो गई है।

कोरोना संक्रमण की वजह से दूसरे कई व्यवसाय की तरह ही शादी-विवाह के व्यवसाय से जुड़े लोग भी प्रभावित हुए, लॉकडाउन हटने के बाद से दूसरे लोगों को तो काम मिल गया। लेकिन बैंड और डीजे से जुड़े लोग अभी भी खाली बैठे हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वाराणसी जाने वाली सड़क पर लगभग बीस किमी. दूर कबीरपुर गाँव पड़ता है, जिसे बैंड वाले गाँव के नाम से जाना जाता है। साल 1975 में ब्रास बैंड शुरू हुआ था और 1995 में ट्रॉली चालू हो गयी थी। पूरे गांव में लगभग हर घर में बैंड के काम से जुड़े लोग मिल जाएंगे। लेकिन कोरोना की वज़ह से लॉकडाउन में जो काम बंद हुआ वो अभी तक चालू नहीं हो पाया है।

347177-band-business-in-corona-pandemic-4
347177-band-business-in-corona-pandemic-4

सड़क किनारे चाय की दुकान लगाए हुए कमल किशोर ने लॉकडाउन से पहले 50000 हज़ार उधार लेकर ट्रॉली बनवाई थी और सोचा था दो महीने काम करके सारा कर्ज़ा उतार देंगे लेकिन फिर लॉकडाउन लग गया और सारा काम बंद हो गया। कमल किशोर कहते हैं, "अभी मैंने चाय का काम शुरु किया है इससे पहले मेरा बैंड का काम था। लॉकडाउन में अप्रैल और मई की बुकिंग कैंसिल हो और लोग अब अपना एडवांस पैसा भी मांगने लगे हैं।"

वो आगे बताते हैं, "एक सीजन में 40-50 बुकिंग आ जाती थी और एक बार में 4000 हज़ार तक बच जाता था, लेकिन इस बार पिछले चार महीने से एक रुपए की कमाई नहीं हुई और ना ही आगे इस साल के लिए कोई बुकिंग आयी है।"

बैंड के बिना भी तो शादी हो सकती है सवाल पूछने पर कमल किशोर कहते हैं कि जैसे दाल बिना नामक के फ़ीकी लगती है वैसे ही शादी बिना बैंड के फ़ीकी लगती है।

347178-band-business-in-corona-pandemic-5
347178-band-business-in-corona-pandemic-5

देश में शादी बाारात जैसे समारोहों के लिए शर्तों के साथ छूट मिली है। तामझाम के साथ रंगीन शादियों वाले देश में शादियां सादी हो रही हैं, न बैंड बाजा होता है न ज्यादा बाराती। सरकार ने अधिकतम बारातियों की संख्या भी तय कर दी है।

कमल किशोर का तीन लोगों का परिवार है जब घर का खर्चा चलना मुश्किल हो गया तो चाय की दुकान डाल ली। ऐसी ही कहानी लगभग हर किसी की है। किसी ने खेतों में मज़दूरी शुरू कर दी तो किसी ने कोई और काम ढूंढ लिया।

पिछले 18 साल से बैंड का काम करने वाले गुरुचरण बताते हैं, "एक बैंड में 25 लोगों की जरूरत होती है सबका रोज़गार इसी से जुड़ा होता है। लेकिन लॉकडाउन से सब लोग बेरोज़गार हो गए हैं।"

"साथ मे काम करने वाले लोग पैसे मांगने आते हैं तो जब तक अपनी जेब से दे पाया दिया, लेकिन अब नहीं दे पाता हूं। अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है तो दूसरों की मदद कैसे करूं। हम बस सरकार से इतना चाहते हैं कि 25 लोगों के साथ ना सही लेकिन 8-10 लोगों के साथ बैंड चालू कर दें जिससे कुछ तो हमारा काम शुरू हो, "गुरुचरण आगे बताते हैं।

कबीरपुर गांव में 40 दुकानदार हैं और 82 ट्रॉली हैं। किसी के पास एक तो किसी के पास दो ट्रॉली हैं लेकिन सब एक किनारे खड़ी हैं। बैंड वाले गांव के नाम से मशहूर कबीरपुर की रौनक बिल्कुल गायब है। सैकड़ो लोग बेरोज़गार हो गए हैं। इस गांव का अकेला व्यापार बैंड ही है जो पूरी तरह से बंद पड़ा है।

Tags:
  • coronavirus
  • coronafootprint
  • marrige
  • band baja
  • video

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.