अगर ऐसी ही हर ग्राम प्रधान की सोच हो तो बदल जाएगी गाँवों की तस्वीर

गाँव कनेक्शन | Jun 12, 2019, 11:41 IST
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नेहा श्रीवास्तव

लखनऊ(उत्तर प्रदेश)। गाँव में गए होंगे अभी तक आपने देखा होगा की किसी के राशन कार्ड नहीं बने तो कहीं स्वच्छता का अभाव है तो किसी के घर शौचालय की दिक्कत है लेकिन हम आपको एक ऐसे प्रधान और गाँव से मिलवा रहें हैं जो इन सारी समस्याओं से मुक्त है।

लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज ब्लॉक के लालपुर गाँव की रहने वाली गायत्री जोकि हरिता स्वयं सहायता की कोषाध्यक्ष हैं बताती हैं, ''हमारा गाँव पहले बहुत गन्दा रहता था फिर बनारस से लोग आये और हमलोगों को प्रशिक्षण दिया अभी हरिता स्वयं सहायता में 5 औरतें काम करतीं हैं प्रधान जी के सहयोग से अभी हम लोगों को रोज़गार भी मिलता है और हमारा गाँव भी साफ़ है।"

ग्राम प्रधान ज्ञानेन्द्र सिंह को 28 मई को मेंस्ट्रुअल हाईजिन डे पर अपने गाँव में माहवारी पर किये गए काम के लिए वॉटर ऐड की तरफ़ से पुरस्कार भी मिल चुका है डीएम के तरफ से स्वच्छता के लिए भी अवार्ड मिला है।

ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं, "मैं 2015 में प्रधान चुना गया, पहले के प्रधानों द्वारा भी काम किया गया था। सरकारी भवनों के निर्माण हुए थे, लेकिन उनके रखरखाव की कमी के कारण भवन भी खंडहर की दशा में पहुंच गए। मैं जब ब्लॉक गया तो मुझे ओडीएफ का पर्चा थमाया तब मुझे पता भी नहीं था की ये क्या होता है।"

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वो आगे बताते हैं, "मुझे लगा की कोई लोहिया गाँव या जनेश्वर गाँव जैसी योजना होगी खूब पैसे आएंगे, लोगों को खूब हैंडपंप आवास मिलेंगे लेकिन जब मुझे वो पर्चा थमा कर पूछा गया की आपके गाँव में कितने घर शौच मुक्त हैं तो मैं थोड़ा सहम गया फिर मुझे लगा की ये तो बड़ी जिम्मेदारी का काम है तभी मैंने सोचा की मुझे अपने गाँव को ही शौच मुक्त बनाना है।"

3 मई 2016 को लालपुर गाँव शौच मुक्त हो गया, फिर वॉटर ऐड वाले आए सर्वे किया हमलोगों को माहवारी के बारे और पैड या गंदे कपड़ों का कैसे निस्तारण होगा इस बारे में जानकारी दी इससे पहले मुझे भी इसकी जानकारी नहीं थी।

वो बताते हैं, "घर में पहले माताजी भाभी को खाना देने या बनाने से भी रोकतीं थीं मुझे तब लगता था की माताजी ग़ुस्सा हैं, लेकिन अब पता चला की ये व्यवहार माहवारी के कारण था। पहले लोग कुप्रथाओं में घिरे रहते थे खाना नहीं बनाना है, मंदिर नहीं जाना है ऐसी तरह तरह की बाते जो वो फॉलो करते आ रहीं थी अच्छा सबसे बड़ी समस्या नहाने की थी की इस अवस्था में नहाना नहीं है तो मैंने पूछा ऐसा क्यों तो वो बताती थीं की तालाब में नहाना होता था और लोग तालाब का पानी पीते थे तब मुझे लगा की वाकई ये बड़ी समस्या थी।"

अब मैं खुद इस मुद्दे पर जागरूक हूँ और भी जो हमारे गाँव की लड़कियां हैं वो इसके बारे में सुन कर झिझक जाती थीं, लेकिन अब वो खुद लोगों के घरों में जा कर जागरूक करतीं है इसपे चर्चाएं होती है कार्यक्रमों में हिस्सा लेतीं हैं।

कूड़ा निस्तारण की बेहतरीन व्यवस्था

गांवों में आज भी कूड़ा निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है। सफाई के प्रति लोग जागरूक तो हो रहे हैं लेकिन कूड़ा निस्तारण के प्रति सरकार इतनी सजग नहीं दिखती, इसके लिए कोई व्यापक योजना भी नहीं है। लेकिन इस मामले में भी यह गांव अपवाद है। इस बारे में प्रधान ज्ञानेन्द्र सिंह कहते हैं, "हम शौच मुक्त हो गए लेकिन फिर भी लोग बीमार पड़ रहे थे। मैंने अपने गाँव को देखा की कूड़ा फेंकने को लेकर दिक्कत आ रही है। लोग कूड़ा सड़कों पर या किसी सरकारी जगह पर फेंक देते थे जिससे मच्छर पनपते थे। मैंने प्लास्टिक पर काम करना शुरू किया।"

गीले और और सूखे कचड़े के बारे में लोगों को बताया फिर वॉटर ऐड तथा वात्सल्य (एनजीओ) के माध्यम से ढाई सौ घरों में लाल और हरा डस्टबीन रखवाया। हरिता स्वयं सहायता की महिलाओं द्वारा कूड़ा कलेक्ट किया जाता है] जिसको एक सेंटर पर ले जा कर सूखे और गीले कचड़ों की छंटनी होती है। सूखे कचड़ों में से बिकने लायक सामानों को निकाल लिया जाता है। गीले कचड़ से खाद बनाया जाता है। हमारे इस प्रयास में गांव के 80 फीसदी लोग अपना सहयोग दे रहे हैं।

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शिक्षा पर भी काम किया है

प्रधान बताते हैं की शिक्षा की हालत भी खस्ता थी फिर मैंने सोचा क्या किया जाये तो मैंने जो रिटायर हो चुकें है उनसे बात की कि वो अगर पढ़ाने को इच्छुक हैं तो उन लोगों ने हामी भर दी इस तरह वो बच्चों को ट्यूशन देते हैं( स्कूल में भी काफी दिक्कत थी शौचालय टूटे थे उनकी मरम्मत करा ऑरो लगवाया तथा टीचरों को रेगुलर आने को बोला।

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नशा और गरीबी मुक्त बनाना है गाँव

वो बताते हैं, "हमने शौच मुक्त किया, माहवारी पर काम किया, स्वच्छता पर काम किया लेकिन अब समस्या है की गाँव को गरीबी मुक्त कैसे किया जाये। मैंने अपने गाँव में एक सर्वे करवाया था, जिसके मुताबिक क़रीब ढाई सौ परिवारों सौ परिवार जो अंत्योदय कार्ड धारक हैं 80 लोग जो बीपीएल कार्ड धारक हैं उनका रेश्यो लगाया तो लगभग 8500 रूपए रोज़ पान पुड़िया, बीड़ी पर खर्च किया जा रहा है तो मुझे लगा की जिसकी आमदनी ढ़ाई सौ रूपए प्रतिदिन है और वो सौ रूपए बीड़ी दारू पर खर्च कर देता है।"

वो कहते हैं, "अगर ये आदत छूट जाये या तो लगभग 9000 तक की बचत होगी लेकिन दूसरे की आदत भी छुड़वाना एक चुनौती है लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे शौचालय भी एक समस्या थी उसका भी हमने निस्तारण किया। हाँ इसमें वक़्त लगेगा लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे।

ये गाँव आस पास के गाँवों के लिए प्रेरणा है

पहले आस पास के गाँव के प्रधान पहले काम को लेकर या जागरूकता को लेकर कोई कदम उठाना नहीं चाहते थे, लेकिन जब से मुझे मेरे कार्यों के लिए पुरस्कार मिलने लगें मेरा नाम बड़े बड़े स्टेजों पे एलाउंस होने लगा तो और प्रधानों पर प्रभाव पड़ा वो भी स्वच्छता को लेकर काम करने लगे। मुझे अभी मेंस्ट्रुअल हाईजीन डे पर माहवारी को ले कर किये गए काम के लिए पुरस्कार मिला है। डीएम के द्वारा भी स्वच्छता के लिए पुरस्कृत किया गया हूँ। मेरे गाँव की ही एक महिला कतला देवी को पचास लोगों में पुरस्कार दिया गया। हमारे गाँव की चर्चा विदेशों में भी पहुँच गयी ऑस्ट्रेलिया, यूके, दक्षिण कोरिया से भी लोग आये हमारे गाँव को विज़िट किया और खूब प्रशंसा भी की।

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