ये देख और सुन नहीं सकती, लेकिन फिर भी करती हैं बच्चों की फिजियोथेरेपी
Ankit Kumar Singh | Aug 30, 2019, 09:49 IST
गुजरात। "पढ़ाई के समय बहुत मुश्किलें सामने आती थी। क्लास में कोई बात करने को तैयार नहीं होता था। बोर्ड पर लिखा हुआ कुछ दिखाई नहीं देता था। टीचर क्या पढ़ा रहे हैं, समझ में ही नहीं आता था। कोई टीचर मुझपर अतिरिक्त समय भी नहीं लगाना चाहता था। लेकिन मेरा परिवार काफी शिक्षित है, उनके सहयोग की वजह से मेरी राहें थोड़ी आसान हो गई, "गुजरात की पहली डेफ ब्लाइंड फिजियोथेरपिस्ट श्रुतिलता सिंह बताती हैं।
श्रुतिलता गुजरात की पहली डेफ ब्लाइंड फिजियोथेरपिस्ट हैं। वह गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में अंधजन मंडल एशोसिएशन के अर्ली इंटरवेंशन सेन्टर में दिव्यांग बच्चों का फिजियोथिरेपी के मदद से इलाज करती हैं। वो बताती हैं, "मुझे बहुत खुशी होती है जब छोटे-छोटे बच्चों में धीरे-धीरे सुधार होता है और उनके माता पिता दुआएं देते हैं।
श्रुतिलता जब 5वीं कक्षा में थीं तो उन्हें पहली बार सुनने और देखने में दिक्कत महसूस होती है। बारहवीं कक्षा में आते-आते यह दिक्कत काफी बढ़ गई। वह चीजों को तभी देख सकती हैं जब वह बहुत ही नजदीक हो। अक्षरों को पहचानने के लिए उन्हें मैग्नीफायर का उपयोग करना पड़ता है। उनके भाई को भी ऐसी ही परेशानियां थी, उन्हें भी देखने और सुनने में परेशानी होतू थी।
वह आगे बताती हैं, "बारहवीं पूरा करने के बाद वह जब इस संशय में थी कि आगे क्या करें तो उनके भाई ने उन्हें यहां पर फिजियोथेरेपी के कोर्स के बारे जानकारी दी। वह अक्सर यहां फिजियोथेरेपी सेशन के लिए आते रहते थे।"
अक्सर जो अभिभावक आते हैं वह या तो श्रुतिलता तक इशारों में अपनी बात पहुंचाते हैं या उनकी हथेली पर बड़े साइज में लिखकर अपने बात उनको समझाते हैं। इससे भी जब काम नहीं बनता है तो वे श्रुति को मैसेज कर देते हैं। श्रुतिलता वहां मैग्निफायर एप की सहायता से उसे पढ़ लेती हैं। पहले अभिभावक उनसे अपने बच्चों का फिजियोथेरेपी कराने में हिचकते थे, लेकिन अब वही अभिभावक अपने बच्चे के फिजियोथेरेपी सेशन के लिए श्रुतिलता को ज्यादा तरजीह देते हैं।
सुनील गौरियार जो श्रुतिलता के शिक्षक हैं बताते हैं, "जब श्रूतिलता सेंटर आई तो उनसे बात करने में बहुत दिक्कत होती थी, इसके लिए हमने साइन लैंग्वेज और ब्रेललिपि सिखाई। हम श्रूतिलता को नई और अलग तकनीके तो बताते ही हैं, लेकिन इसके अलावा श्रुतिलता किताबों और इंटरनेट से भी हर रोज कुछ नया सीखने का प्रयास करती रहती है। मेरे सिखाने से ज्यादा श्रुतिलता की मेहनत ज्यादा है जो आज वह यहां पर है।
श्रूतिलता सिंह बताती हैं कि फिजियोथेरेपी में डिप्लोमा करने के दौरान उन्हें ज्यादा दिक्कतें नहीं हुई। यहां सब लोग सहयोग करते थे। सर मुझे अलग से पढ़ाते थें। दोस्तों ने भी साइन लैंग्वेज सीख ली। जब क्लास में मुझे कुछ समझ नहीं आता था, तो दोस्त अलग से मुझे समय देकर समझा देते थे।
श्रुतिलता पिछले ढाई सालों से फिजियोथेरेपिस्ट का काम कर रही हैं। उनके यहां अपने बच्चो का इलाज कराने आने वाले लोग उनके काम से बहुत खुश हैं। आज वह अपने क्षेत्र में इस काम की वजह से जैनी जाती हैं। उन्होंने यह बात साबित की है कि कोई भी काम कठिन नहीं है बस इच्छा शक्ति मजबूत होना चाहिए।
श्रुतिलता गुजरात की पहली डेफ ब्लाइंड फिजियोथेरपिस्ट हैं। वह गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में अंधजन मंडल एशोसिएशन के अर्ली इंटरवेंशन सेन्टर में दिव्यांग बच्चों का फिजियोथिरेपी के मदद से इलाज करती हैं। वो बताती हैं, "मुझे बहुत खुशी होती है जब छोटे-छोटे बच्चों में धीरे-धीरे सुधार होता है और उनके माता पिता दुआएं देते हैं।
श्रुतिलता जब 5वीं कक्षा में थीं तो उन्हें पहली बार सुनने और देखने में दिक्कत महसूस होती है। बारहवीं कक्षा में आते-आते यह दिक्कत काफी बढ़ गई। वह चीजों को तभी देख सकती हैं जब वह बहुत ही नजदीक हो। अक्षरों को पहचानने के लिए उन्हें मैग्नीफायर का उपयोग करना पड़ता है। उनके भाई को भी ऐसी ही परेशानियां थी, उन्हें भी देखने और सुनने में परेशानी होतू थी।
श्रुतिलता कहती हैं, "हर इंसान के पास दो विकल्प होते हैं। पहला वह कुछ ना करे और हार मान ले, दूसरा वह दुनिया को दिखाये उसके अंदर भी कुछ करने की क्षमता है। मैंने दूसरा विकल्प चुना।
अक्सर जो अभिभावक आते हैं वह या तो श्रुतिलता तक इशारों में अपनी बात पहुंचाते हैं या उनकी हथेली पर बड़े साइज में लिखकर अपने बात उनको समझाते हैं। इससे भी जब काम नहीं बनता है तो वे श्रुति को मैसेज कर देते हैं। श्रुतिलता वहां मैग्निफायर एप की सहायता से उसे पढ़ लेती हैं। पहले अभिभावक उनसे अपने बच्चों का फिजियोथेरेपी कराने में हिचकते थे, लेकिन अब वही अभिभावक अपने बच्चे के फिजियोथेरेपी सेशन के लिए श्रुतिलता को ज्यादा तरजीह देते हैं।
श्रूतिलता सिंह बताती हैं कि फिजियोथेरेपी में डिप्लोमा करने के दौरान उन्हें ज्यादा दिक्कतें नहीं हुई। यहां सब लोग सहयोग करते थे। सर मुझे अलग से पढ़ाते थें। दोस्तों ने भी साइन लैंग्वेज सीख ली। जब क्लास में मुझे कुछ समझ नहीं आता था, तो दोस्त अलग से मुझे समय देकर समझा देते थे।
श्रुतिलता पिछले ढाई सालों से फिजियोथेरेपिस्ट का काम कर रही हैं। उनके यहां अपने बच्चो का इलाज कराने आने वाले लोग उनके काम से बहुत खुश हैं। आज वह अपने क्षेत्र में इस काम की वजह से जैनी जाती हैं। उन्होंने यह बात साबित की है कि कोई भी काम कठिन नहीं है बस इच्छा शक्ति मजबूत होना चाहिए।