गुजरात के इस स्कूल से सीखिए जल संरक्षण, बचा लेता है बारिश का एक लाख लीटर पानी
Ankit Kumar Singh | Sep 12, 2019, 10:49 IST
महेसाणा (गुजरात)। "पहले स्कूल के लिए हर महीने पानी के चार टैंकर मंगाने पड़ते थे, जिसका खर्च 15 से 16 सौ रुपए आ जाते, लेकिन अब वो खर्च नहीं होगा, न ही हमें पानी मंगाना पड़ेगा, क्योंकि हमने पानी बचा लिया है, "तक्षशिला विद्यालय के अध्यापक परेश प्रजापति खुश होकर कहते हैं।
परेश प्रजापित महेसाणा के तक्षशिला विद्यालय के अध्यापक हैं, जहां पर एक लाख लीटर क्षमता के चार वाटर टैंक बनाएं गए हैं, जहां पर बारिश के पानी का संरक्षण किया जाता है। परेश प्रजापति कहते हैं, "हम धरती माता से कुछ लेते ही रहते हैं जिसके चलते आज प्राकृतिक में काफी असंतुलन देखने को मिल रहा है। जल के रूप में देखें तो आज जलस्तर काफी हद तक नीचे चला गया है। आए दिन जल संकट का ख़तरा भयानक रूप ले रहा है। इन्हीं सभी सोच के साथ हमने तय किया की क्यों न हम बरसात के पानी का संग्रह करके इसका उपयोग स्कूल में पीने के पानी के रुप में किया जाए।"
वो आगे बताते हैं, "इसी सोच के साथ हमने विद्यालय के खेल मैदान में मटके के आकार के 25 हजार लीटर के चार मटके बनाए। मटके को जमीन के अंदर बनाया गया। सबसे बड़ी बात है ये है की इसके निर्माण में न तो लोहे की सरिया का उपयोग हुआ हैऔर ना ही आरसीसी के तहत बनाया गया है। इसका निर्माण केवल ईट से किया गया है और इसके अन्दर और बाहर प्लास्टर किया गया है, जिसके बाद इसे मिट्टी से ढंक दिया गया है।"
बरसात के पानी का संचयन के लिए छत से पाईप लाया गया है जो एक चेम्बर में जाता है और उस चेम्बर से पाइप उस मटके से जुड़ा हुआ है। चेम्बर की बनावट कुछ इस तरह से की गई हैं कि जब बरसात के पानी की जरूरत हो तभी वह मटके में जाता है नहीं तो वह बाहर चला जाता है। पानी साफ जाए इसके लिए एक फिल्टर लगाया गया हैं, जिससे पानी छन कर जाता है। जब बरसात होती है तो 10 से 15 मिनट तक उसके पानी को संग्रह नही किया जाता है जब छत के गंदगी निकल जाती है और उसके फर्स को साफ कर दिया जाता हैउसके बाद पानी मटके में जाता है। उस मटके के पानी को मोटर के ज़रिये छत पर लगे टैंक में ले जाया जाता है और उसे नलों के माध्यम से पीने के उपयोग में लिया जाता हैं।
परेश प्रजापति आगे कहते हैं, "इसमें एक लाख लीटर पानी जमा हो सकता हैं जिसका हम उपयोग पीने के लिए दस से इग्यारह महीने तक चल सकता है, वहीं पहले हमें महीने में लगभग चार पानी के टैंकर मंगवाना पड़ता था जिसका खर्च 15 से 16 सौ रुपए आता था। वह अब नही आने वाला है। सबसे बड़ी बात ये है कि जो पानी का उपयोग हम पहले करते थे आज उस पानी का उपयोग दूसरे लोगों को मिलेगा। आज इस तरह का सकरात्मक कदम इस स्कूल ने उठाया है वैसे ही और दूसरे विद्यालय को उठाने की जरूरत है।"
परेश प्रजापित महेसाणा के तक्षशिला विद्यालय के अध्यापक हैं, जहां पर एक लाख लीटर क्षमता के चार वाटर टैंक बनाएं गए हैं, जहां पर बारिश के पानी का संरक्षण किया जाता है। परेश प्रजापति कहते हैं, "हम धरती माता से कुछ लेते ही रहते हैं जिसके चलते आज प्राकृतिक में काफी असंतुलन देखने को मिल रहा है। जल के रूप में देखें तो आज जलस्तर काफी हद तक नीचे चला गया है। आए दिन जल संकट का ख़तरा भयानक रूप ले रहा है। इन्हीं सभी सोच के साथ हमने तय किया की क्यों न हम बरसात के पानी का संग्रह करके इसका उपयोग स्कूल में पीने के पानी के रुप में किया जाए।"
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वो आगे बताते हैं, "इसी सोच के साथ हमने विद्यालय के खेल मैदान में मटके के आकार के 25 हजार लीटर के चार मटके बनाए। मटके को जमीन के अंदर बनाया गया। सबसे बड़ी बात है ये है की इसके निर्माण में न तो लोहे की सरिया का उपयोग हुआ हैऔर ना ही आरसीसी के तहत बनाया गया है। इसका निर्माण केवल ईट से किया गया है और इसके अन्दर और बाहर प्लास्टर किया गया है, जिसके बाद इसे मिट्टी से ढंक दिया गया है।"
कैसे संग्रह होता है बरसात का पानी
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परेश प्रजापति आगे कहते हैं, "इसमें एक लाख लीटर पानी जमा हो सकता हैं जिसका हम उपयोग पीने के लिए दस से इग्यारह महीने तक चल सकता है, वहीं पहले हमें महीने में लगभग चार पानी के टैंकर मंगवाना पड़ता था जिसका खर्च 15 से 16 सौ रुपए आता था। वह अब नही आने वाला है। सबसे बड़ी बात ये है कि जो पानी का उपयोग हम पहले करते थे आज उस पानी का उपयोग दूसरे लोगों को मिलेगा। आज इस तरह का सकरात्मक कदम इस स्कूल ने उठाया है वैसे ही और दूसरे विद्यालय को उठाने की जरूरत है।"