धान बेचने से सिर्फ निकल रहा था खर्चा, चावल बनाकर बेचा तो मुनाफा हुआ दोगुना
Arvind Shukla | Oct 30, 2019, 07:16 IST
कैथल (हरियाणा)। "शुरु में जब मैंने बोला घर में कि खेतों में रासायनिक कीटनाशक नहीं डालने हैं तो घर वाले नाराज हो गए, बोले तुम सब नाश करोगे, तुम्हें क्या बाप-दादा से ज्यादा खेती आती है? कुछ पैदा नहीं होगा। इसके बाद भी मैं लगा रहा और जब एक एकड़ धान को चावल बनाकर बेचा तो एक लाख 20 हजार रुपए मिले.. इसके बाद घर वालों को समझ में आया।" यह कहानी हरियाणा के कैथल जिले में रहने वाले युवा किसान कर्मवीर सिंह की है।
उन्होंने बताया, "हमने थोड़ा बदलाव करने की कोशिश की और कामयाब रहे। सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि हमारे खेतों में अब कोई जहर (हानिकारक कीटनाशक) नहीं डाला जाता।"
अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहते हैं, "पहले हमने खर्च कम किए, डीएपी-यूरिया की जगह देसी खाद, वेस्टडीकंपोजर, जीवामृत डाला। इससे हमारा एक एकड़ जीरी ( बासमती धान) का खर्च 800-1200 रुपए तक कम हुआ और फिर जो पैदा हुआ उसे मंडी नहीं ले गए। अगर मैं उसे मंडी ले जाता तो जैविक और अच्छा दाना होने के बावजूद मुश्किल 50,000-60,000 रुपए मिलते, लेकिन मैंने उनका चावल बनाया, साफ कराया और 120 रुपए में बेचा। इससे मुझे एक लाख 20 हजार रुपए मिले।"
कर्मवीर के मुताबिक बासमती धान में हुई ये उनकी पहली कमाई थी, एक एकड़ का पूरा धान दो महीने में बिक गया था। एक एकड़ में उनके यहां करीब 12-14 कुंतल बासमती धान होता है और 70-75 फीसदी तक चावल की रिकवरी होती है। कर्मवीर के पास सवा एकड़ जमीन है और भारत में छोटे और मंझोले किसानों की संख्या 80 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में उन्हें चाहिए कि वो ऐसे फसलें बोएं, जिसकी वो मार्केटिंग खुद कर पाएं।
कर्मवीर कहते हैं, "अगर आप जैविक खेती करते हैं जो मार्केटिंग का जुगाड़ आपको खुद करना होगा। मैंने अपनी सभी परिचितों को ही चावल दिए थे और कैथल से कोलकाता और गोरखपुर तक भेजा। जिसने चावल खाया उसने स्वाद की तारीफ की। क्योंकि मार्केट वाला बासमती पहले से आधा पका होता है, जिसमें सिर्फ कार्बोहाइड्रेट ही होता है, जबकि कच्चे चावल में प्रोटीन भी होता है। ये सेहत के लिए अच्छा होता है।"
उनकी योजना अब कुछ दूसरे प्रगतिशील किसान और कृषि जानकारों के साथ मिलकर एक डेमो फार्म बनाने की है। जहां वो खुद भी खेती करेंगे और दूसरे किसानों के लिए सीखने के मौके होंगे। कर्मवीर कहते हैं, "अभी किसी किसान से कहो कि जहर मुक्त खेती करो, तो कहता है तुमने अब तक क्या किया? कौन सी खेती की। इसलिए एक फार्म बनाएंगे जिसमें अनाज,फल सब्जियां, मोटे अनाज सब उगाएंगे और इन्हें प्रोसेस कर लोगों को बेचेंगे।"
उन्होंने बताया, "हमने थोड़ा बदलाव करने की कोशिश की और कामयाब रहे। सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि हमारे खेतों में अब कोई जहर (हानिकारक कीटनाशक) नहीं डाला जाता।"
अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहते हैं, "पहले हमने खर्च कम किए, डीएपी-यूरिया की जगह देसी खाद, वेस्टडीकंपोजर, जीवामृत डाला। इससे हमारा एक एकड़ जीरी ( बासमती धान) का खर्च 800-1200 रुपए तक कम हुआ और फिर जो पैदा हुआ उसे मंडी नहीं ले गए। अगर मैं उसे मंडी ले जाता तो जैविक और अच्छा दाना होने के बावजूद मुश्किल 50,000-60,000 रुपए मिलते, लेकिन मैंने उनका चावल बनाया, साफ कराया और 120 रुपए में बेचा। इससे मुझे एक लाख 20 हजार रुपए मिले।"
कर्मवीर के मुताबिक बासमती धान में हुई ये उनकी पहली कमाई थी, एक एकड़ का पूरा धान दो महीने में बिक गया था। एक एकड़ में उनके यहां करीब 12-14 कुंतल बासमती धान होता है और 70-75 फीसदी तक चावल की रिकवरी होती है। कर्मवीर के पास सवा एकड़ जमीन है और भारत में छोटे और मंझोले किसानों की संख्या 80 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में उन्हें चाहिए कि वो ऐसे फसलें बोएं, जिसकी वो मार्केटिंग खुद कर पाएं।
कर्मवीर कहते हैं, "अगर आप जैविक खेती करते हैं जो मार्केटिंग का जुगाड़ आपको खुद करना होगा। मैंने अपनी सभी परिचितों को ही चावल दिए थे और कैथल से कोलकाता और गोरखपुर तक भेजा। जिसने चावल खाया उसने स्वाद की तारीफ की। क्योंकि मार्केट वाला बासमती पहले से आधा पका होता है, जिसमें सिर्फ कार्बोहाइड्रेट ही होता है, जबकि कच्चे चावल में प्रोटीन भी होता है। ये सेहत के लिए अच्छा होता है।"
उनकी योजना अब कुछ दूसरे प्रगतिशील किसान और कृषि जानकारों के साथ मिलकर एक डेमो फार्म बनाने की है। जहां वो खुद भी खेती करेंगे और दूसरे किसानों के लिए सीखने के मौके होंगे। कर्मवीर कहते हैं, "अभी किसी किसान से कहो कि जहर मुक्त खेती करो, तो कहता है तुमने अब तक क्या किया? कौन सी खेती की। इसलिए एक फार्म बनाएंगे जिसमें अनाज,फल सब्जियां, मोटे अनाज सब उगाएंगे और इन्हें प्रोसेस कर लोगों को बेचेंगे।"