मेंथा के आसवन के समय रखें इन बातों का ध्यान, नहीं होगी दुर्घटना, मिलेगा ज्यादा तेल
Divendra Singh | May 29, 2019, 08:01 IST
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। हर वर्ष मेंथा की पेराई (आसवन) के समय असावधानी बरतने से टंकी फटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, ऐसे में कुछ सावधानियां बरतकर ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। मई के आखिरी हफ्ते से लेकर जून-जुलाई तक किसान मेंथा का पेराई (आसवन) करते हैं।
किसानों की ज़रा सी लापरवाही की वजह से उनके साल भर की मेहनत तबाह हो जाती है। मेंथा टैंक फटने की घटना से जान जाने का ख़तरा तो रहता ही है साथ ही मेहनत और रुपयों को बर्बादी भी होती है।
ये समय मेंथा के आसवन का होता है, ज्यादातर टंकी फटने की घटनाएं सस्ती किस्म की असुरक्षित टंकियों के इस्तेमाल के कारण होती हैं। सयंत्र की डिजाइन व निर्माण सामग्री ठीक न होने के कारण टंकी फटने से अनेक दुर्घटनायें होती हैं, जिससे जान-माल का नुकसान होता रहता है। वेपर पाइप पतला होने के कारण पौध सामग्री की पत्ती इत्यादि पाईप और क्वायल कंडेंसर में फंस जाती है जिसके कारण टंकी में प्रेशर उत्पन्न हो जाता है और टंकी फट जाती है।
वेपर पाइप और कंडेंसर के पाइप को मोटा और टंकी और पाइप के बीच में एक जाली लगाकर इस समस्या को दूर किया जा सकता है। टंकी के ऊपर ढक्कन में एक सेफ्टी वाल्व और प्रेशर गेज लगाने से भी दुर्घटना से बचा जा सकता है। इसमें लगभग दो से ढाई हजार रुपये का खर्च आता है। इसके अतिरिक्त आसवन करते समय कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातों पर विशेष ध्यान रखने से दुर्घटना से भी बचा जा सकता है।
इस बात का ध्यान रखें
1. आसवन से पूर्व टंकी की अच्छी प्रकार से सफाई एवं जांच करलें कहीं से टंकी की चादर गली न हो ।
2. क्वायल कंडेंसर में पानी डालकर रुकावट की जांच कर लें।
3. मेंथा की पत्ती भरने से पहले टंकी में लगभग डेढ़ से दो फिट पानी भरें।
4. आवश्यकता से अधिक मेंथा की पत्ती को दबाकर ना भरें तथा पत्ती को भाप नली के नीचे तक ही भरें।
5. कंडेंसर से निकलने वाले तेल का बहाव एवं तापमान को समय-समय पर जांचते रहें।
इसके अलावा मेंथा के पेराई के दौरान अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो तेल ज्यादा निकलता है। पिपरमेंट में तेल पौधे की पत्तियों में होता है, जिसे विशेष आसवन यूनिट यानी पेराई की टंकी में उबाल कर तेल निकाला जाता है। अच्छे उत्पादन यानि फसल से पूरा तेल निकले इसके लिए जरुरी फसल की कटाई 90 दिनों के पहले न की जाए। कटाई के एक हफ्ते पहले से सिंचाई न की गई हो। इसके साथ काटने के बाद मेंथा का ढेर न लगाया जाए। और आखिर में सबसे जरुरी बात कि आसवन टंकी अच्छी हो।
सीमैप में आसवन विधियों के जानकार वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक इंजीनियर सुदीप टंडन ने बताया, "किसान हजारों रुपए लगातार मेंथा उगाता है, इसलिए अच्छे मुनाफे के लिए जरुरी है उसका आसवन यानि पेराई ठीक से हो। अगर सीमैप की विकसित टंकी या आधुनिक पेराई संयंत्र आपके पास है तो कम से कम 10 से 20 फीसदी तेल ज्यादा निकल सकता है। क्योंकि सामान्य टंकियों में कंडेंसर अच्छा न होने और टंकी की बनावट के चलते नुकसान हो जाता है।"
सुदीप टंडन बताते हैं, "टंकी का साफ होना बहुत जरुरी है। उसे निरमा आदि से बिल्कुल न धुले, टंकी के अंदर किसी तरह का ग्रीस या मोबिल न लगाएं, अगर पहले से रखा है तो उसे गर्म पानी की भाप से ही साफ रखें,वर्ना तेल खराब हो गया तो उसका अच्छा रेट नहीं मिलेगा। दूसरा अगर एक ही टंकी में मेंथा, लेमनग्रास और खस आदि का तेल निकालते हैं तो भी टंकी को अच्छे से साफ करें।"
आसवन टंकी में तीन प्रमुख भाग होते हैं, उबालने वाली बड़ी टंकी, जिसमें पिपरमेंट आदि भरकर नीचे से आग जलाते हैं, दूसरा कंडेसर, जिसमें भार बनकर पानी तेल पहुंचते हैं, तीसरा सपरेटर यानि वो छोटा सा यंत्र जहां पानी और तेल अलग-अलग हो जाते हैं।
अच्छा हो कि पूरी टंकी स्टील की हो। वर्ना सपरेटर और कंडेयर तो हर हाल में होना चाहिए। कंडेंसर का पानी जल्दी-जल्दी बदलते रहना चाहिए, ताकि तेल और पानी अच्छे से अलग हो सकें। अगर सपरेटर में पहुंचने वाला तेल गर्म है तो समझिए भाप में तेल उड़ रहा है।
1.मेंथा की फसल को 90 दिनों के पहले न काटे
2.कटाई के बाद मेंथा का ढेर न लगाएं, करीब एक दिन सूखने के बाद टंकी में भर दें।
3.टंकी पूरी तरह साफ-सुथरी, लेकिन उसे निरमा आदि से बिल्कुल न धुले।
4.हौदी में लगे कंडेंसर का पानी लगातार बदलते रहें, अगर पानी ज्यादा गर्म हुआ तो तेल का नुकसान होगा।
5.सपरेटर और कंडेंसर अगर स्टेनलेस स्टील के हैं तो तेल की गुणवत्ता अच्छी होगी।
6.भट्टी के नीचे की राख समय-समय पर हटाते रहें ताकि आंच पूरी तरह टंकी में लगे
7.पिपरमेंट या लेमनग्रास को एक दिन तक सुखाकर उसे आसवन टंकी पर ले जाएं
8.जेरेनियम और गुलाब के आसवन के लिए ज्यादा विलम्ब नहीं करना चाहिए।
9. टंकी में फसल को अच्छी तरीके से दबाकर भरें, कोई खाली स्थान न रहने पाए।
10. पेराई होने के बाद टंकी में कभी ग्रीस, पेंट या कोई मेबिल न लगाए।
किसानों की ज़रा सी लापरवाही की वजह से उनके साल भर की मेहनत तबाह हो जाती है। मेंथा टैंक फटने की घटना से जान जाने का ख़तरा तो रहता ही है साथ ही मेहनत और रुपयों को बर्बादी भी होती है।
ये समय मेंथा के आसवन का होता है, ज्यादातर टंकी फटने की घटनाएं सस्ती किस्म की असुरक्षित टंकियों के इस्तेमाल के कारण होती हैं। सयंत्र की डिजाइन व निर्माण सामग्री ठीक न होने के कारण टंकी फटने से अनेक दुर्घटनायें होती हैं, जिससे जान-माल का नुकसान होता रहता है। वेपर पाइप पतला होने के कारण पौध सामग्री की पत्ती इत्यादि पाईप और क्वायल कंडेंसर में फंस जाती है जिसके कारण टंकी में प्रेशर उत्पन्न हो जाता है और टंकी फट जाती है।
टंकी को फटने से बचाने का उपाय
RDESController-481
इस बात का ध्यान रखें
1. आसवन से पूर्व टंकी की अच्छी प्रकार से सफाई एवं जांच करलें कहीं से टंकी की चादर गली न हो ।
2. क्वायल कंडेंसर में पानी डालकर रुकावट की जांच कर लें।
3. मेंथा की पत्ती भरने से पहले टंकी में लगभग डेढ़ से दो फिट पानी भरें।
4. आवश्यकता से अधिक मेंथा की पत्ती को दबाकर ना भरें तथा पत्ती को भाप नली के नीचे तक ही भरें।
5. कंडेंसर से निकलने वाले तेल का बहाव एवं तापमान को समय-समय पर जांचते रहें।
इसके अलावा मेंथा के पेराई के दौरान अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो तेल ज्यादा निकलता है। पिपरमेंट में तेल पौधे की पत्तियों में होता है, जिसे विशेष आसवन यूनिट यानी पेराई की टंकी में उबाल कर तेल निकाला जाता है। अच्छे उत्पादन यानि फसल से पूरा तेल निकले इसके लिए जरुरी फसल की कटाई 90 दिनों के पहले न की जाए। कटाई के एक हफ्ते पहले से सिंचाई न की गई हो। इसके साथ काटने के बाद मेंथा का ढेर न लगाया जाए। और आखिर में सबसे जरुरी बात कि आसवन टंकी अच्छी हो।
सीमैप में आसवन विधियों के जानकार वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक इंजीनियर सुदीप टंडन ने बताया, "किसान हजारों रुपए लगातार मेंथा उगाता है, इसलिए अच्छे मुनाफे के लिए जरुरी है उसका आसवन यानि पेराई ठीक से हो। अगर सीमैप की विकसित टंकी या आधुनिक पेराई संयंत्र आपके पास है तो कम से कम 10 से 20 फीसदी तेल ज्यादा निकल सकता है। क्योंकि सामान्य टंकियों में कंडेंसर अच्छा न होने और टंकी की बनावट के चलते नुकसान हो जाता है।"
सुदीप टंडन बताते हैं, "टंकी का साफ होना बहुत जरुरी है। उसे निरमा आदि से बिल्कुल न धुले, टंकी के अंदर किसी तरह का ग्रीस या मोबिल न लगाएं, अगर पहले से रखा है तो उसे गर्म पानी की भाप से ही साफ रखें,वर्ना तेल खराब हो गया तो उसका अच्छा रेट नहीं मिलेगा। दूसरा अगर एक ही टंकी में मेंथा, लेमनग्रास और खस आदि का तेल निकालते हैं तो भी टंकी को अच्छे से साफ करें।"
RDESController-482
आसवन टंकी में तीन प्रमुख भाग होते हैं, उबालने वाली बड़ी टंकी, जिसमें पिपरमेंट आदि भरकर नीचे से आग जलाते हैं, दूसरा कंडेसर, जिसमें भार बनकर पानी तेल पहुंचते हैं, तीसरा सपरेटर यानि वो छोटा सा यंत्र जहां पानी और तेल अलग-अलग हो जाते हैं।
अच्छा हो कि पूरी टंकी स्टील की हो। वर्ना सपरेटर और कंडेयर तो हर हाल में होना चाहिए। कंडेंसर का पानी जल्दी-जल्दी बदलते रहना चाहिए, ताकि तेल और पानी अच्छे से अलग हो सकें। अगर सपरेटर में पहुंचने वाला तेल गर्म है तो समझिए भाप में तेल उड़ रहा है।
नीचे दिए गए 10 जरुरी प्वाइंट्स पर ध्यान दें
2.कटाई के बाद मेंथा का ढेर न लगाएं, करीब एक दिन सूखने के बाद टंकी में भर दें।
3.टंकी पूरी तरह साफ-सुथरी, लेकिन उसे निरमा आदि से बिल्कुल न धुले।
4.हौदी में लगे कंडेंसर का पानी लगातार बदलते रहें, अगर पानी ज्यादा गर्म हुआ तो तेल का नुकसान होगा।
5.सपरेटर और कंडेंसर अगर स्टेनलेस स्टील के हैं तो तेल की गुणवत्ता अच्छी होगी।
6.भट्टी के नीचे की राख समय-समय पर हटाते रहें ताकि आंच पूरी तरह टंकी में लगे
7.पिपरमेंट या लेमनग्रास को एक दिन तक सुखाकर उसे आसवन टंकी पर ले जाएं
8.जेरेनियम और गुलाब के आसवन के लिए ज्यादा विलम्ब नहीं करना चाहिए।
9. टंकी में फसल को अच्छी तरीके से दबाकर भरें, कोई खाली स्थान न रहने पाए।
10. पेराई होने के बाद टंकी में कभी ग्रीस, पेंट या कोई मेबिल न लगाए।