बिजली नहीं पनचक्की से चलती है अंग्रेजों के जमाने की आटा चक्की

Mohit Saini | Aug 31, 2019, 07:38 IST

मेरठ (उत्तर प्रदेश)। अभी तक आपने बिजली के मोटर से चलने वाली आटा चक्की देखी होगी, लेकिन ये आटा चक्की बिजली से नहीं पनचक्की से चलती है।

मेरठ के गंगनहर पर बनी ये आटा चक्की सौ साल से भी अधिक समय से चल रही है। साल 1847 में पनचक्की से चलने वाली आटा चक्की लगाई गई थी। जो अभी भी वैसे ही चल रही है। एक समय था जब यहां पर गेहूं और मक्का पिसाने वालों की लाइन लगी रहती थी, सुबह कोई नंबर लगाता था तो शाम तक कहीं जाकर उसका नंबर लगता था।

गंग नहर का पानी जब चक्की की ओर से निकलता है तो उसका पानी चक्की की फिरकी पर गिरता है, जिससे वह फिरकी चलने लगती है और जो चक्की के पाट होते हैं वह पानी के कारण पूरी तरह से घूमने लगते हैं। पाटे के घूमने से ऊपर से गेहूं गिरता है गेहूं पिस जाता और नीचे से आटा निकलता है।



जब कभी इस आटा चक्की को बंद करना होता है तो बाहर जाकर किसी को चक्की के अंदर आने वाला गंग नहर का पानी हाथों द्वारा घुमाकर बंद करना होता है ताकि पानी चक्की की फिरकी पर ना गिरे सके और चक्की अपने आप बंद हो जाती है।

आज हर घर में मोटर बिजली की चक्की लगी होती हैं और मिनटों मे अपना गेहूं पिसवा लेते हैं लेकिन अगर आपने कभी महसूस किया हो तो मोटर बिजली से पिसा आटा गर्म होता है लेकिन अगर आप पानी की चक्की का पिसा आटा देखे तो पूरी तरह ठंडा होता है, जिसके कारण पेट मे कोई खराबी नही, आती और न ही ये आटा कभी खराब होता है इस चक्की के पिसे आटे की यही खास बात है कि ये सालों सालों रखने से भी कभी खराब नही होता और न ही आटे में कभी जाले लगते हैं।

इस पानी की चक्की का हर वर्ष ठेका छोड़ा जाता है और जो पात्र होता है उसे इस चक्की को हवाले कर दिया जाता है आपको बता दें इस चक्की का ठेका सिंचाई विभाग अपनी ओर से ठेका आवंटित करता है और कई ठेकेदार हर वर्ष अपनी अपनी पर्चियां डालते हैं ताकि चक्की पात्र के हिस्से में आ जाए।

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