अगर आप मुर्गा खाते हैं तो संभल जाइए , एंटीबायोटिक दवाएं हो सकती हैं बेअसर

गाँव कनेक्शन | Jul 24, 2017, 14:27 IST
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आपको बटर चिकन पसंद हो या फ्राइड चिकन, ये दोनों ही आपकी सेहत को खतरे में डाल सकते हैं। नए अध्ययन में किया गया यह दावा सिर्फ भारतीयों के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी लोगों के लिए भी है। भारतीय-अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, अपने बड़े पोल्ट्री फार्मों के लिए प्रसिद्ध पंजाब में शायद ऐसे ‘सुपरबग’ या बैक्टीरिया पैदा हो रहे हैं, जिनपर नियमित एंटीबायोटिक प्रभावी नहीं हो पाते।

अध्ययन में पंजाब के पोल्टरी फार्मों में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया की भारी मौजूदगी का संकेत दिया गया है और पशुपालन में वृद्धिकारक एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल के कारण मानव स्वास्थ्य पर पड़ सकने वाले भयावह प्रभाव की चेतावनी दी गई है।

हाल ही में सेवानिवृत्त हुई विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक माग्रेट चान ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के चमत्कार और ‘वंडर ड्रग्स’ कहलाने वाले एंटीबायोटिक्स के संदर्भ में कहा, ‘’दुनिया इन चमत्कारी उपचारों को खोने के कगार पर है।’’ नए अध्ययन में कहा गया कि पंजाब के भीड़भाड़ वाले पोल्टरी फार्मों में सुपरबग के पनपने की आशंका है।

अगली बार जब आप संक्रमण की चपेट में आएंगे तो नियमित एंटीबायोटिक्स के जरिए उसे ठीक करना मुश्किल हो जाएगा। यह सुपरबग्स का पनपना है। आप इसके लिए खासतौर पर पंजाब के पोल्ट्री फार्मों को दोष देने का सोच सकते हैं, जहां विशेषज्ञों का कहना है कि मुर्गों को मोटा बनाने के लिए एंटी बायोटिक्स का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है। पोल्टरी फार्म एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल बीमार जानवरों के उपचार के लिए नहीं बल्कि उन्हें जल्दी मोटा बनाने के लिए कर रहे हैं।

सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी, वाशिंगटन डीसी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन को एनवार्यमेंटल हेल्थ परस्पेक्टिव्स में प्रकाशित किया गया। इस अध्ययन में पाया गया है कि पंजाब के फार्मों में पाले गए मुर्गों में एंटीबायोटिक विरोधी बैक्टीरिया उच्च स्तर पर पाए गए। अध्ययन के लेखक और सीडीडीईपी के निदेशक रमनन लक्ष्मीनारायण ने कहा, ‘’पशु फार्मों में एंटीबायोटिक्स का अधिक इस्तेमाल हम सबको खतरे में डालता है क्योंकि यह पर्यावरण में दवा प्रतिरोधकता को बढ़ा देता है।’’

लक्ष्मीनारायण ने कहा, ‘’पशुपालन के क्षेत्र में पंजाब भारत के प्रमुख राज्यों में से एक है, यह अहम है कि हम पशुपालन के कार्यों में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल बंद करने के कदम उठाएं।’’

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एंटीमाइक्रोबियल रेसीस्टैंस (एएमआर) जीवाणुओं, परजीवियों, विषाणुओं और फंगस के कारण पैदा होने वाले बढ़ते संक्रमणों की प्रभावी रोकथाम और उपचार पर जोखिम पैदा करता है। प्रभावी एंटीबायोटिक्स के बिना बड़ी सर्जरी और कैंसर कीमोथैरेपी में मुश्किल आएगी। जो संक्रमण एंटीबायोटिक्स के प्रतिरोधी नहीं हैं, उनका उपचार उन संक्रमणों की तुलना में सस्ता होता है, जो एंटीबायोटिक्स के प्रतिरोधी हैं। दरअसल प्रतिरोधकता की वजह से बीमारी लंबे समय तक चलती है, अतिरिक्त परीक्षण करवाने पड़ते हैं और महंगी दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है।

लक्ष्मीनारायण ने कहा, ‘’यह अध्ययन सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए गंभीर परिणाम दिखाता है, हमें मानवीय खाद्य श्रृंखला से एंटीबायोटिक्स हटाने चाहिए, बीमार पशुओं के उपचार की बात स्वीकार करनी चाहिए या फिर एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल के बाद की दुनिया का सामना करना चाहिए।’’ वहीं दूसरी ओर, महंगी दवाओं का परहेज कर पाना भी मुश्किल है, जिससे अंतत: एएमआर की स्थिति ही पैदा होनी है। भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ हेंक बेकेदम ने कहा, ‘’एएमआर के भारत के लिए बड़े परिणाम हैं।’’ दुर्भाग्यवश कुछ दोष निर्जीव लेकिन स्वादिष्ट तंदूरी चिकन पर जाता है।

(पल्लव बाग्ला विज्ञान के जाने माने लेखक है, यह उनके अपने विचार हैं, पीटीआई/भाषा)

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