NTPC हादसा : क्योंकि हमारे यहां मजदूर की कोई औकात नहीं होती
Ashutosh Ojha | Nov 02, 2017, 19:46 IST
NTPC में जो घटना हुई उस पर मुझे मेरा बचपन याद आ गया। मेरे पिता भी एक सरकारी शुगर फैक्ट्री में काम करते हैं। जब भी शुगर फैक्ट्री में गन्ना पेराई का सत्र शुरू होता था, शायद ही कोई ऐसा साल छूटता था जब कोई घटना न हो।
अक्सर किसी मजदूर की ऊपर से नीचे गिरकर मौत की खबरें सामने आत थीं। कई बार शुगर फैक्ट्री में किसी के जल जाने या इंजीनियरिंग विभाग के बड़े विभाग की लापरवाही से ऐसी घटनाएं होती थीं।
एक वाकया था कि एक मजदूर गन्ने के डोंगे में गिर गया। शायद आप लोग न जानते हो कि गन्ने का डोंगा क्या है। (जिसमें गन्ना डाल कर मशीन द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है, उसे चीनी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
जरा सोचिए गन्ने के साथ वो आदमी कट गया। पुराने लोग बताते थे कि लोग सुबह जान पाए कि वो आदमी कट गया। ऐसी न जानें कितनी घटनाएं आए दिन पूरे विश्व के कारखानों में घटती होंगी। लेकिन सबसे ज्यादा भारत में, जानते है क्यों?
वो इसलिए क्योंकि हमारे यहां मजदूर की कोई औकात नहीं होती। कमीशन खोरी के चक्कर में अक्सर बड़े अधिकारी टेक्निकल चीजों में धांधली करते हैं। वजह साफ़ है अपने बेटे और बेटी को सारी सुख सुविधाएं जो देनी हैं। ज्यादा पैसा कमाकर गाड़ी भी खरीदनी है। एक आलिशान मकान भी बनवाना है।
लेकिन छोटे मजदूरों की सुरक्षा का कोई मतलब नहीं। लापरवाही से काम होता है। उन मजदूरों को मिलता भी क्या था जो इस घटना में अपना एक हाथ या शरीर का कोई अंग कट जाए तो। सिर्फ कुछ दिन की छुट्टी और कुछ पैसे। बाकी दवा पानी वो बाद में खुद कराएं। लेकिन साहब को अगर छींक भी आ जाए तो उसका बिल बनता है, उसका पैसा डबल मिलता है। शायद आज जो आप ख़बर पढ़ रहे हैं कि इतने मजदूर मर गए रायबरेली की घटना में तो उसमें चौकिये मत। मजदूर तो होता ही है लापरवाही से मरने के लिए।
घटना हुई, अब जांच होगी। जो दोषी होगा उसी का कोई जानने वाला उसकी जांच रिपोर्ट बनायेगा। आखिर में सबको क्लीन चिट। मजदूर का परिवार इसके बाद दर दर की ठोकरे खाएगा। कुछ दिन इधर-उधर मदद के लिए दौड़ेगा। फिर थक हार के, आँसुओं के साथ पूरी जिंदगी ऐसे ही काट देगा।
और फिर कुछ दिन बाद कमीशन खोरी और लापरवाही के चक्कर में कोई मजदूर किसी फैक्ट्री में मरेगा। जो घटना हुई है उसमें भी बड़े अधिकारियों द्वारा लापरवाही हुई। इसका जिम्मेदार जो भी हो, न्याय इस बार भी नहीं मिलेगा।
अक्सर किसी मजदूर की ऊपर से नीचे गिरकर मौत की खबरें सामने आत थीं। कई बार शुगर फैक्ट्री में किसी के जल जाने या इंजीनियरिंग विभाग के बड़े विभाग की लापरवाही से ऐसी घटनाएं होती थीं।
एक वाकया था कि एक मजदूर गन्ने के डोंगे में गिर गया। शायद आप लोग न जानते हो कि गन्ने का डोंगा क्या है। (जिसमें गन्ना डाल कर मशीन द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है, उसे चीनी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
जरा सोचिए गन्ने के साथ वो आदमी कट गया। पुराने लोग बताते थे कि लोग सुबह जान पाए कि वो आदमी कट गया। ऐसी न जानें कितनी घटनाएं आए दिन पूरे विश्व के कारखानों में घटती होंगी। लेकिन सबसे ज्यादा भारत में, जानते है क्यों?
वो इसलिए क्योंकि हमारे यहां मजदूर की कोई औकात नहीं होती। कमीशन खोरी के चक्कर में अक्सर बड़े अधिकारी टेक्निकल चीजों में धांधली करते हैं। वजह साफ़ है अपने बेटे और बेटी को सारी सुख सुविधाएं जो देनी हैं। ज्यादा पैसा कमाकर गाड़ी भी खरीदनी है। एक आलिशान मकान भी बनवाना है।
लेकिन छोटे मजदूरों की सुरक्षा का कोई मतलब नहीं। लापरवाही से काम होता है। उन मजदूरों को मिलता भी क्या था जो इस घटना में अपना एक हाथ या शरीर का कोई अंग कट जाए तो। सिर्फ कुछ दिन की छुट्टी और कुछ पैसे। बाकी दवा पानी वो बाद में खुद कराएं। लेकिन साहब को अगर छींक भी आ जाए तो उसका बिल बनता है, उसका पैसा डबल मिलता है। शायद आज जो आप ख़बर पढ़ रहे हैं कि इतने मजदूर मर गए रायबरेली की घटना में तो उसमें चौकिये मत। मजदूर तो होता ही है लापरवाही से मरने के लिए।
घटना हुई, अब जांच होगी। जो दोषी होगा उसी का कोई जानने वाला उसकी जांच रिपोर्ट बनायेगा। आखिर में सबको क्लीन चिट। मजदूर का परिवार इसके बाद दर दर की ठोकरे खाएगा। कुछ दिन इधर-उधर मदद के लिए दौड़ेगा। फिर थक हार के, आँसुओं के साथ पूरी जिंदगी ऐसे ही काट देगा।
और फिर कुछ दिन बाद कमीशन खोरी और लापरवाही के चक्कर में कोई मजदूर किसी फैक्ट्री में मरेगा। जो घटना हुई है उसमें भी बड़े अधिकारियों द्वारा लापरवाही हुई। इसका जिम्मेदार जो भी हो, न्याय इस बार भी नहीं मिलेगा।