गणतंत्र दिवस पर इन्हें भी कहिएगा ‘अमर रहें’

Dr SB Misra | Jan 24, 2017, 18:07 IST
Republic Day
जनवरी के महीने में 12 तारीख को स्वामी विवेकानन्द का जन्मदिन होता है और 23 जनवरी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का। इन जैसे हजारों लोगों के प्रयासों से देश आजाद हुआ और गणतंत्र बना। स्वतंत्रता के परिपेक्ष्य में हम इन्हें तथा अन्य अनेक समर्पित सपूतों को भूल जाते हैं।

प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते समय जब हमें संविधान और हमारी स्वाधीनता की याद आती है। स्वाधीन भारत में कुछ ने मंत्री, कुछ ने प्रधानमंत्री, कुछ एमपी, एमएलए या अन्य पदों का सुख भोगा। उनके बेटे बेटियों को स्वाधीनता सेनानी पेंशन का हकदार माना गया जो आजादी में योगदान को भुनाते रहे। कुछ ने तो मरने के बाद भी पचासों एकड़ जमीन पर कब्जा कर रखा है, कितने ही भवन और पार्कों पर नाम दर्ज हैं और कितनी ही योजनाएं उनके नाम पर चलती हैं। दूसरी तरफ वे हैं जिन्होंने सर्वस्व समर्पित किया देश के लिए लेकिन उन्हें कोई याद तक नहीं करता।

गणतंत्र भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भले ही सत्ता को तिलांजलि दी लेकिन दूसरों ने कई पीिढ़यों तक खूब सत्ता सुख भोगा है, फिर भी उन्हें त्यागी और बलिदानी कहा जाता है। साठ के दशक में इन्दिरा गांधी ने मोरारजी के खिलाफ चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री का पद हासिल किया था। आगे चलकर 1975 में यह पद बचाने के लिए देश में आपातकाल भी लागू किया था। उसके बाद तो इस पद के लिए अनेक बार संघर्ष हुए, आज भी हो रहे हैं। क्या सत्ता लोलुप लोगों को त्यागी और बलिदानी कहना चाहिए।

याद कीजिए रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, विनायक दामोदर सावरकर, अरविन्द घोष, मंगल पांडे, चन्द्रसिंह गढ़वाली, चाफेकर बन्धु, गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल, अश्ाफाक़ उल्ला खान, राजेन्द्र लाहिड़ी, खुदीराम बोस, बटुकेश्वर दत्त, हेमू कलानी, विपिन चन्द्र पाल, ऊधम सिंह सहित लिस्ट बहुत लम्बी है। इनके नाम पर कितने भवन, भूमि और योजनाएं हैं। इनका जयकारा भी यदाकदा ही लगता है।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को अंग्रेजी हुकूमत में बड़ा ओहदा मिल सकता था क्योंकि वह आईसीएस की परीक्षा पास कर चुके थे। दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने, देश के नौजवानों के चहेते रहे, देश और विदेश में रहकर आजादी की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। कांग्रेस के नेताओं जवाहर लाल नेहरू आदि ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया तब वह पार्टी छोड़कर काबुल चले गए और भारतीय राष्ट्रीय सेना बनाई और आजादी का द्वार खटखटा दिया। आजाद भारत के नेता उनके जीवन से जुड़े दस्तावेज भी सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, मोदी सरकार ने नेहरू और उनकी सरकार को नंगा कर दिया। आजादी की लड़ाई में क्या उनका योगदान किसी से कम था जो उन्हें याद तक नहीं किया जाता।

विनायक दामोदर सावरकर ने अंग्रेजों के घर में रहकर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। आज भी लंदन के इंडिया हाउस में लिखा है भारत का देशभक्त दामोदर सावरकर यहां रहा था। वह 1857 की लड़ाई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते थे, भारत विभाजन के खिलाफ थे, जाति प्रथा के बहुत खिलाफ थे, बन्दी बनाकर भारत लाया जा रहा था तो अथाह सागर में कूद कर निकल गए थे और उन्हें आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए 50 साल की कैद हुई थी। अंडमान निकोबार जेल में अधिकांश जीवन बीता और 1966 में उन्होंने शरीर त्याग दिया। जीवन में या मरणोपरान्त उन्हें क्या मिला, कोई उनका नाम तक नहीं लेता।

बिरसा मुंडा ने छापामार युद्ध के जरिए अंग्रेजों से लोहा लिया था। अंग्रेजों ने उनकी सेना पर रात के अंधेरे में हमला करके उन्हें हिरासत में लिया और फांसी की सजा दी। उनका एक चित्र लोकसभा की गैलरी में लगा है लेकिन देश के अधिकांश लोग उन्हें नहीं जानते। इसी प्रकार चाफेकर बन्धुओं का नाम भी लोगों के ध्यान में कम ही आता है। पूना के निकट एक गाँव के दामोदर हरि, वासुदेव हरि और बालकृष्ण हरि तीनों बलिदानी भाइयों ने मिलकर पूना के प्लेग कमिश्नर रैंड को मौत के घट उतार दिया था क्योंकि वह जश्न मना रहा था जब भारत के लोग प्लेग से मर रहे थे। भारतवासियों में देशभक्ति की चिनगारी फूंकने वालों की जरूरत है।

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