दूध पाउडर आयात करने का निर्णय किसानों के लिए घातक

भारत 18.5 करोड़ टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन के साथ विश्व में प्रथम स्थान पर है और दूध के विषय में आत्मनिर्भर है। यदि दूध समेत पशुपालन से होने वाली सम्पूर्ण आमदनी का आंकलन करें तो लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की कृषि जीडीपी में दूध और पशुपालन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30% है।

Pushpendra SinghPushpendra Singh   9 July 2020 9:29 AM GMT

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दूध पाउडर आयात करने का निर्णय किसानों के लिए घातक

सरकार ने पिछले दिनों देश में 10,000 टन दूध पाउडर (एसएमपी- स्किम मिल्क पाउडर) आयात करने की आज्ञा दे दी है। इसके आयात पर अब तक लग रहे 50% आयात शुल्क को भी घटाकर 15% कर दिया गया है। यह निर्णय देश और किसान हित में नहीं है क्योंकि हमारे यहां इस वक्त मांग के अभाव में लगभग 1.25 लाख टन मिल्क पाउडर गोदामों में पड़ा हुआ है। मिल्क पाउडर के दाम 330 रुपये प्रति किलोग्राम के घटकर 180-190 रुपये पर आ गए हैं। ऐसी स्थिति में दूध पाउडर का आयात करने की आज्ञा देना कोई समझदारी नहीं है।

भारत 18.5 करोड़ टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन के साथ विश्व में प्रथम स्थान पर है और दूध के विषय में आत्मनिर्भर है। यदि दूध समेत पशुपालन से होने वाली सम्पूर्ण आमदनी का आंकलन करें तो लगभग 30 लाख करोड़ रुपये की कृषि जीडीपी में दूध और पशुपालन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30% है। 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुनी करने के लिए दुग्ध और पशुपालन क्षेत्र की बहुत बड़ी भूमिका है। परन्तु घाटे के चलते दुग्ध उत्पादक किसानों का पशुपालन से मोह भंग होता जा रहा है। जिन किसानों ने कामधेनु योजना के तहत लोन लेकर अपने डेयरी फार्म शुरू किए थे वो लोन चुकाने के लिए ज़मीन बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

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लॉकडाउन के कारण दूध की मांग और खरीद 25-30 प्रतिशत कम हो गई है। इससे किसान स्तर पर दूध के दाम 30 प्रतिशत तक घट गए हैं और किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। दूसरी तरफ खल, चूरी, बिनौला, छिलका, मिश्रित पशु-आहार के दाम काफी बढ़े हैं, जिस कारण दुग्ध उत्पादन की लागत में काफी वृद्धि हुई है। दूध की कम कीमत मिलने के कारण किसान पशुओं को उचित मात्रा में पौष्टिक आहार भी नहीं खिला पा रहे जिससे पशुओं ने दूध देना भी कम कर दिया है। दुग्ध उत्पादन में घाटे के कारण बीमार पशुओं के इलाज और रखरखाव पर होने वाले खर्चे में भी कटौती करनी पड़ी। डीज़ल के दाम और मजदूरी भी पिछले पांच सालों में काफी बढ़े हैं जिसका प्रभाव दूध उत्पादन की लागत पर पड़ रहा है। इससे दुग्ध उत्पादक किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है।

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सरकार का दूध पाउडर आयात करने का निर्णय दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए घातक साबित होगा। सरकार इसे तत्काल प्रभाव से वापस ले। दूध के गिरते दामों को देखते हुए सरकार को किसान स्तर पर दूध का रिज़र्व प्राइस घोषित करना चाहिए, जो इस वक्त 6.5% फैट व 9% एसएनएफ की गुणवत्ता वाले दूध पर कम से कम 45 रुपये प्रति लीटर हो। इससे नीचे मूल्य पर खरीद होने पर सरकार सीधे किसानों की सहकारी संस्थाओं को 5 रुपये प्रति लीटर तक की भावान्तर के रूप में सीधे सब्सिडी दे तो किसानों को काफी भला हो सकता है। सरकार सहकारी डेरियों से दूध पाउडर व अन्य दुग्ध उत्पाद खरीदकर गरीबों, बच्चों, मरीज़ों, अस्पतालों, क्वारंटाइन केन्द्रों आदि को वितरण कर सकती है। इससे दुग्ध उत्पादों की खपत भी बढ़ेगी, कुपोषण व भुखमरी भी कम होगी और किसानों को भी दूध के लाभकारी मूल्य मिल सकेंगे।

(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)

  

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