एक राज्य में दो दुनिया का खेल

शेखर गुप्ता | Sep 16, 2016, 16:08 IST
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ला 98.1 फीसदी गैर हरियाणवी भारतीयों को यह कैसे समझाया जाए कि हरियाणा में पिछले दिनों मची अशांति का मूंछों से क्या ताल्लुक था, मैं यह समझाने का प्रयास कर सकता हूं कि हरियाणा में मूंछ का क्या अर्थ है। खासतौर पर रसूखदार जाट समुदाय के लिए (जो राज्य की कुल आबादी का 30 फीसदी है) मूंछ केवल वह नहीं है जो हमारे होठों के ठीक ऊपर मौजूद है। इसे केवल इज्जत या शान से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। अहम या आत्मसम्मान से भी नहीं। इसमें इन चारों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा शामिल है। एक कहावत है कि जाट गन्ना नहीं देगा गुड़ की भेली दे देगा। यानी खुशी-खुशी वह आपको चाहे जो दे दे लेकिन आप उससे कुछ छीन या चुरा नहीं सकते। जाट आखिर ऐसा क्यों करेगा क्योंकि यह उसकी मूंछ से जुड़ा मसला है। आप उसे सम्मान दीजिए, उसकी उदारता की प्रशंसा कीजिए फिर देखिए उसका दिल कितना बड़ा है। लेकिन अगर आप उलझे, तो वही होगा जो आपने पिछले दिनों हरियाणा में होता देखा।

हरियाणा में गुस्साई भीड़ ने जो विनाश किया उसके लिए वह सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है जिसने इसे भड़काया। राजनीतिक गलतियों और गलत आकलनों ने इसे बढ़ावा दिया। शायद यह अतिसरलीकरण लग रहा हो लेकिन हरियाणा के लोगों का दिमाग भी बहुत जटिल नहीं है। यही वजह है कि बीते दशकों के दौरान 25 लाख से अधिक की आबादी वाला यह राज्य देश का सबसे अमीर प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य बन गया। इसकी आबादी देश की कुल आबादी का बमुश्किल दो फीसदी है लेकिन देश के कुल ओलिंपिक या एशियाड पदकों का 75 प्रतिशत हिस्सा यहीं से आता है।

इनमें से अधिकांश मुक्केबाजी या कुश्ती जैसी स्पर्धाओं में आते हैं, हालांकि बैडमिंटन और एथलेटिक्स में भी अब नजर आने लगे हैं। देश के सशस्त्र बलों में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में भी यह अव्वल है। एक और बात, इनमें से अधिकांश पदक जीतने वाले तथा सशस्त्र बलों के अधिकारी जाट समुदाय से हैं। इसे कन्या भ्रूण हत्या, खाप पंचायत और देश के खराब लैंगिक संतुलन से किस प्रकार संबद्ध किया जाए, यह प्रश्न मुझसे न पूछा जाए क्योंकि हम हरियाणवी बहुत जटिल लोग नहीं हैं। मैं फिर कहूंगा कि इसका संबंध मूंछ से है। जब आप कुछ करने की ठान लेते हैं तो आप चाहते हैं कि आप इस काम में सबको पीछे छोड़ दें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जाट हैं या जटनी।

पत्रकार और केंद्रीय मंत्री रह चुके मेरे मित्र तथा अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष अजय सिंह एक और बात को रेखांकित करते हैं। जाट पिछले 23 साल से आरक्षण के लिए शांतिपूर्वक प्रदर्शन करते रहे हैं। एक बार तो उन्होंने दो लाख प्रदर्शनकारियों के साथ बोट क्लब को जाम कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक पैसे का नुकसान नहीं किया। तो इस बार उनको किस बात से इतना गुस्सा आ गया।

ठीक 50 साल पहले तक हरियाणा जैसे किसी राज्य का अस्तित्व तक नहीं था। हां, वर्ष 2016 हरियाणा की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ का साल है। यह दुखद है कि उसे ऐसी हिंसा का सामना इस साल करना पड़ा। हरियाणा का इलाका गरीब था, यहां शहर नहीं थे, कोई बौद्घिक या उद्यमी वर्ग नहीं था। बुनियादी ढांचे और राजनीतिक प्रतिभाओं की कमी थी, हालांकि इस पर विवाद हो सकता है। हरियाणा इसलिए बना क्योंकि सिख अपना अलग सूबा चाहते थे। भाषाई धु्रवीकरण ने हिंदुओं और सिखों को बांट दिया। पंजाबी हिंदू हिंदी को अपनी मातृभाषा बताते लेकिन सआदत हसन मंटों के शब्दों में कहें तो उनकी हिंदी उतनी ही हिंदी होती जितनी कि पाकिस्तानी पंजाब के लोगों की उर्दू। मंटो कहते थे कि पाकिस्तान के पंजाबी उर्दू बोलते तो लगता कि झूठ बोल रहे हैं।

नतीजा यह हुुआ कि कई शहरीकृत जिले हरियाणा में आ गए, बावजूद इसके कि वहां अच्छी खासी पंजाबी आबादी थी। उनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल थे जो पाकिस्तान से आए थे। उनको आज भी शरणार्थी कहा जाता है। मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का परिवार खुद झांग से आया था। हालांकि उनका खुले दिल से स्वागत किया गया और उन्होंने नए राज्य के विकास में अहम योगदान भी किया लेकिन उनको राज्य की राजनीति और सत्ता का दावेदार नहीं माना गया। दशक बीतने के साथ हरियाणा में पंजाबी आबादी 26 फीसदी हो गई। यह आंकड़ा जाटों से मामूली कम है। स्थानीय बनाम बाहरी कभी भी हरियाणा में मुद्दा नहीं रहा। लेकिन सत्ता संतुलन बदलने के साथ ही यह बात उभरने लगी। अगर आज जाट आबादी का 30 फीसदी हैं तो आप समझ सकते हैं कि पंजाबियों के आने के पहले उनका अनुपात बेहतर रहा होगा।

दिल्ली और चंडीगढ़ के पास गुडगाँव और पंचकूला जैसे नए उपनगरीय केन्द्र उभरे। इस बात ने हरियाणा के लोगों के उस गुस्से को शांत कर दिया जो पंजाब पर और केंद्र पर था। यह गुस्सा पानी के मुद्दे पर और चंडीगढ़ को लेकर वादा न निभाने के कारण था। इन औद्योगीकृत कस्बों से उपजी समृद्घि का लाभ स्थानीय लोगों को भी मिला क्योंकि उनकी संपत्ति के दाम आसमान छूने लगे। यह सच है कि हरियाणा में बने तमाम नए टावरों और नई तकनीक पर आधारित फैक्टरियों में शायद ही किसी हरियाणवी को रोजगार दिया जाता हो लेकिन स्थानीय लोगों ने इनका स्वागत किया क्योंकि उन्हें संपत्ति के कारोबारी बनने का अवसर मिल रहा था। उनके पास धन आया और छोटे पैमाने पर ही सही कारोबारी और उद्यमिता की भावना भी विकसित हुई। बाद के दिनों में देश की सबसे तेज विकसित हुई फर्में जैसे कि डीएलएफ और इंडिया बुल्स आदि हरियाणवी जाट उद्यमियों ने खड़े किए हैं और जमीन के कारोबार में भी वे शामिल हैं।

बाहरियों के साथ यह साझेदारी एक सामान्य तथ्य थी। राजनीतिक शक्ति जाटों के साथ बनी रही। यदा-कदा जाटों के साथ नहीं भी तो बाकी मूल हरियाणवियों के साथ। भजनलाल (बिश्नोई) ने राज्य पर सफलतापूर्वक शासन किया लेकिन वह हरियाणवी थे जो जाटों के बीच जाट बनकर और गैर जाटों के बीच गैर जाट बनकर अपना काम चला सकते थे। हाल के दशकों में शासन करने वाले बंसीलाल, देवीलाल और हूडा आदि सभी जाट थे। पंजाबी, ब्राह्मण और बनिया वर्ग के लोग शहरी हरियाणा के आर्थिक और सामाजिक बुर्जुआ बनकर उभरे जबकि राजनीतिक शक्ति ग्रामीण जाटों के हाथ में बनी रही। इस बात ने हरियाणा को शांत बनाए रखा जहां एक ही राज्य में दो दुनियाएं रह रही थीं। इनमें से एक को गुडगाँव और दूसरे को कैथल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। कैथल यानी जाट बहुल अंदरूनी हरियाणा जो कैप्टन पवन कुमार के घर से बहुत दूर नहीं। गत वर्ष भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने इस ढांचे को हिला दिया। बदलाव के लिए बेचैन युवाओं और कांग्रेस की गरीबोन्मुखी राजनीति से असंतुष्टों ने मोदी के नाम पर मतदान किया। लेकिन भाजपा ने हरियाणा की सत्ता के मूल चरित्र के साथ छेड़छाड़ की। उसने एक गैर जाट को मुख्यमंत्री बना दिया उस पर भी एक पंजाबी शरणार्थी को। उनके दूसरे सबसे प्रमुख सहयोगी अनिल विज भी पंजाबी हैं। नए डीजीपी समेत तमाम प्रमुख पदों पर गैर जाटों को नियुक्त किया गया। जाटों ने इसे उनके अधिकारों से वंचित करने की कोशिश माना और उनमें बहुत बड़ा गुस्सा भड़क गया। ध्यान रहे कि हरियाणा के दो नए ब्रांड एम्बेसडर बाबा रामदेव और परिणीति चोपड़ा भी गैर जाट यानी क्रमश: यादव और पंजाबी हैं।

लेकिन यह आग भड़की कैसे, इसकी शुरुआत एक अभियान के पागलपन से हुई जिसे कुरुक्षेत्र के सैनी समुदाय के भाजपा सांसद ने ओबीसी सेना की शुरुआत की घोषणा के साथ शुरू किया। उन्होंने जाटों को माओवादियों के समान कुचल डालने का आह्वान किया। उनके आधिकारिक फेसबुक पेज और गूगल पर उनके वीडियो इसके गवाह हैं। राज्य सरकार ने इसकी अनदेखी करनी जारी रखी। वह गौशालाएं बनाने, गुरुकुल स्थापित करने और विद्यालयों में गीता पढ़ाना अनिवार्य करने जैसे काम कर रही थी। यह जाटों के लिए मूंछ का प्रश्न बन गया था। इसके बाद वैसे ही हालात बने जिनमें अनुष्का शर्मा की फिल्म एनएच-10 में गुडगाँव का एक पुलिसकर्मी कहता है, ''आपका कानून, आपका संविधान इन्हीं 10 किलोमीटर में चलता है। इसके बाहर एकदम अलग दुनिया है।'' रोहतक समेत हरियाणा के तमाम लुटेपिटे हिस्से इसके गवाह हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं)

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