समाप्त होना ही चाहिए ग्रामीणों में व्याप्त अंधविश्वास

Dr SB Misra | Jul 29, 2025, 15:58 IST

गाँवों में बच्चों को डराकर या परंपराओं के नाम पर जो अंधविश्वास पनपते हैं, वे केवल डर नहीं फैलाते, बल्कि वैज्ञानिक सोच को भी दबा देते हैं। कैसे झाड़-फूंक, भूत-प्रेत, बिल्ली के रास्ता काटने जैसी बातें आज भी लोगों को भ्रमित कर रही हैं और क्यों ज़रूरी है कि हम शिक्षा और तर्क की मदद से इनसे बाहर निकलें।

घरों में छोटे बच्चे जब शैतानी करते हैं, कहना नहीं मानते और उद्दंड व्यवहार करते हैं, तो बड़े लोग उन्हें कह देते हैं कि अगर शांत नहीं रहोगे तो भूत आ जाएगा, प्रेत आ जाएगा। यह ऐसी कल्पना होती है, जिसके बारे में बच्चों को कुछ पता नहीं होता। बच्चा समझता है कि भूत कोई खूंखार चीज होती होगी और वह डरकर शांत हो जाता है। मैं जब छोटा था और स्कूल जाता था, तो मेरे साथ दो और सहपाठी हुआ करते थे। जंगल में होकर निकलना पड़ता था और वहां पर डर तो लगता था, लेकिन मुझे बताया गया था कि हनुमान जी का नाम लेने से भूत-पिशाच या कोई बलाएं पास नहीं आतीं। हम लोग जैसे ही जंगल में घुसते थे, बस "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर" और "भूत पिशाच निकट नहीं आवे, हनुमान जब नाम सुनावे" कहते हुए दौड़ते हुए जंगल पार कर जाते थे। भूत-पिशाच भागते थे कि नहीं, मैं नहीं जानता लेकिन हमारे दिल का डर थोड़ी देर के लिए भाग जाता था और आत्मविश्वास आ जाता था। रोज का यही तरीका था जंगल पार करने का।

बड़े लोग प्रेत-आत्मा और प्रेत योनि की बातें करते रहते हैं, लेकिन यह बच्चों को नहीं बताया जाता है कि आत्मा अजर और अमर है—वह या तो ईश्वर के पास चली जाती है अथवा पुनर्जन्म ले लेती है। आत्मा अनावश्यक रूप से विचरण नहीं करती। बचपन से इस तरह की भ्रांतियां जन्म नहीं लेंगी, यदि बचपन से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिखाया जाए। ग्रामीण लोग स्वावलंबी नागरिक के रूप में खड़े होंगे।

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गाँव के लोगों को विश्वास है कि झाड़-फूंक के द्वारा विभिन्न रोगों को ठीक किया जा सकता है। आज से 70 या 80 साल पहले यह विश्वास बहुत ही मजबूत था, लेकिन अब इतने साल बाद लोग झाड़-फूंक के बजाय डॉक्टर और अस्पताल चले जाते हैं। अभी भी सांप काटने पर झाड़-फूंक का पहला सहारा लिया जाता है और जब तक अस्पताल पहुंचते हैं, सर्पविष का प्रभाव बहुत अधिक हो चुका होता है—कभी-कभी बहुत देर हो जाती है।

मेरे गाँव में एक सीताराम बाबा रहते थे। मैं बचपन में उन्हें कई बार बिच्छू आदि का विष उतारते हुए देखा था और खुद भी मुझे ले जाया गया था जब बिच्छू ने डंक मारा था। वह तेल लेकर और अगर हाथ की उंगली में कटा होता था, तो ऊपर से नीचे को मालिश करते जाते थे और कुछ फुसफुसाते रहते थे। एक बार किसी ने उनसे पूछा, “बाबा आप कौन सा मंत्र पढ़ते हो बिच्छू का विष उतारने के लिए?” तब उन्होंने सच्चाई बता दी। उन्होंने कहा, “मैं तो बस मालिश करता हूं और बिच्छू को मन में गाली देता रहता हूं।” उनके मालिश करने से लाभ तो होता था, शायद खून नीचे उतर आता था, लेकिन वह मंत्र का प्रभाव नहीं था।

आप यात्रा पर निकल रहे हो और कोई छींक दे, तो कहा जाएगा—एक क्षण रुक जाओ। उसे बैठने को कहा जाएगा और एक गिलास पानी पीने को देंगे, फिर कुछ समय बाद जाने के लिए कहा जाएगा। यदि वह चल पड़ा और बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो इसे अशुभ माना जाता है। और यदि बिल्ली काली हुई तो और भी अशुभ। इसमें यह भी देखा जाता है कि दाहिनी से बाईं ओर रास्ता काटा या बाईं से दाहिनी ओर। यात्रा के लिए दिशाओं का भी विचार किया जाता है, जैसे: “मंगल-बुध उत्तर दिशि, काला सोम शनिचर पूरव न चाला।” इसी प्रकार रवि और शुक्र को पश्चिम दिशा में तथा बृहस्पति को दक्षिण दिशा में जाना अशुभ माना जाता है। आज के युग में जब यात्राएं सिर्फ पैदल नहीं बल्कि विभिन्न सार्वजनिक साधनों से होती हैं, तो बस और ट्रेन हमारे हिसाब से तो नहीं चलेंगी।

जिस तरह यात्रा और दिशा को लेकर अंधविश्वास है, उसी तरह हजामत बनवाने को लेकर भी कई अंधविश्वास प्रचलित हैं। मंगल और शनिवार को हजामत नहीं बनवानी चाहिए, और गुरुवार को भी नहीं। बाकी चार दिन में से किसी भी दिन बनवा सकते हैं। यदि पंचक मुहूर्त में कोई व्यक्ति शरीर छोड़ता है, तो उसका दाह संस्कार तब तक नहीं किया जाएगा जब तक पंचक समाप्त न हो जाए। उसके मृत शरीर को किसी पेड़ की डाल पर बांधकर रखा जाता था और उसकी सुरक्षा में कोई एक व्यक्ति बैठता था। मैंने ऐसा होते हुए बचपन में देखा है, लेकिन अब यह नहीं होता।

सर्वाधिक अंधविश्वास फलित ज्योतिष को लेकर बने हैं। वैसे गणित ज्योतिष तो निर्विवाद है, लेकिन फलित ज्योतिष की दुकानें खुली हैं और टीवी चैनलों पर लोग बैठे हैं जो बताते हैं कि कौन से ग्रह का दोष किस प्रकार मिटाया जा सकता है। अच्छी और बुरी मुहूर्त का ज्ञान किसी को हो सकता है, लेकिन कोई भी आदमी दैवी गति को कैसे टाल सकता है? विधि के विधान को अगर आप पूजा-पद्धति से टाल सकते हैं, तो यह सर्वशक्तिमान को चुनौती होगी। इस संदर्भ में मुझे एक घटना याद आती है। जब मैं लखनऊ के गवर्नमेंट जुबली कॉलेज का छात्र था, तब वहां के प्रिंसिपल पंडित श्रीधर सिंह थे। वह भारी शरीर वाले, गरिमामय व्यक्तित्व के धनी थे।

एक बार शकुंतला देवी नामक महिला भाषण देने आईं। उन्होंने छात्रों से पूछा, “किसी को अपनी राशि पता हो?” मैंने कहा, “मेरी कुंभ राशि है।” प्रिंसिपल साहब बोले, “देखो यह दुबला-पतला बच्चा भी कुंभ राशि का है और मैं भी। हममें क्या समानता है?” सचमुच कोई समानता नहीं थी—वह संपन्न व्यक्ति, पीईएस अधिकारी, और मैं आर्थिक संघर्ष में डूबा विद्यार्थी। यह उदाहरण बताता है कि केवल राशि पर किसी का भविष्य नहीं तय होता।

आजकल तो यदि चाहें तो अच्छे मुहूर्त में सिजेरियन विधि से बच्चों का जन्म कराया जा सकता है। तब फलित ज्योतिष का क्या होगा? फलित ज्योतिष की बातें करने वाले लोग हाथ की रेखाएं या माथे की झुर्रियां देखकर भविष्य बताने का दावा करते हैं। वे पिछले जन्म की बातें भी बताते हैं और नासमझ लोग उन पर विश्वास भी कर लेते हैं।

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अंधविश्वासों से छुटकारा पाने के लिए शिक्षा से जुड़े लोगों की बड़ी भूमिका है। यदि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो और वे बच्चों में शुरू से ही यह नजरिया पैदा करें, तो आज जो हालात हैं वह नहीं रहेंगे। बहुत सी बातों के लिए ऑप्टिकल इल्यूजन जिम्मेदार होता है, और अनेक बातों के लिए आंख मूंदकर विश्वास करने की आदत। अंधविश्वास को एक दिन, महीने या साल में समाप्त नहीं किया जा सकता। लेकिन हम अपने परिवार से इसकी शुरुआत कर सकते हैं और फिर धीरे-धीरे गांव और समाज में बदलाव ला सकते हैं। हम रस्सी को सांप न समझ बैठें, इसके लिए जरूरी है कि बचपन से ही तर्क के ज़रिए चीजों का फर्क समझाया जाए—डर पैदा करके नहीं, समझ देकर।

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