घूम आए दुनिया पर मन को देश ही भाया

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घूम आए दुनिया पर मन को देश ही भायागाँव कनेक्शन, वसंती हरिप्रकाश

क्या मेरी तरह आपके साथ भी ऐसा अक्सर होता है कि आप किसी जगह कुछ काम से जाएं और काम से हटकर कोई मिल जाता है, जिसके साथ एक रिश्ता सा बन जाता है या आपके दिल पर एक गहरा असर छोड़ जाता है।  

पिछले हफ्ते कर्नाटक के 'महलों की राजधानी' से मैंने आप सबसे बात की थी न, मैसूरू जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया था। मुझे वहां बुलाया गया था उस कार्यक्रम का आंखों देखा हाल आकाशवाणी के राष्ट्रीय रेडियो पर प्रस्तुत करने के लिए।

इस दौरान मेरी मुलाक़ात एक अनोखे परिवार से हुई। मेरे दोस्त और गाँव कनेक्शन के लोकप्रिय 'हर्बल आचार्य' डॉ दीपक आचार्य ने मैसूरू के रहने वाले अभिज्ञ (उम्र 11 वर्ष) के बारे में बताया था।

अभिज्ञ के पिता आनंद रामासुब्रमण्यम का फ़ोन भी आया कि दीपक जी ने उन्हें मेरे बारे में बताया और मैं अपने से कुछ समय निकालकर उनके घर खाने पर जाऊं। अगले दिन काम हो जाने के बाद मेरे शहर बेंगलूरु की तरफ वापसी भी करनी थी जो कि मैसूर से करीब 150 किलोमीटर दूर है। सोचा जाते-जाते इस बालक और उसके परिवार से मिलते हुए चलूंगी। टैक्सी से निकली और रास्ते में अभिज्ञ के पिता आनंद मुझे लेने आ गए। मैसूरू शहर के बाहर जहां करीब दो किमी के आस-पास न कोई इंसान न घर नज़र आता हो, वहां एक सुन्दर से मकान में आईटी इंडस्ट्री में काम करने वाले आनंद रहते हैं, अपनी पत्नी अन्नू, बेटे अभिज्ञ और छह वर्षीय बेटी अभिधेया के साथ।   

शाम के करीब 7.30 बजे जैसे ही घर के अन्दर कदम रखा तो यूं लगा कि वृन्दावन, नन्द के गाँव के किसी घर में घुस आई हूं। दीवार पर रंगोली बनी थी, लकड़ी का एक चौगोल प्रांगण और उसके ठीक पीछे भगवान महाविष्णु के दशावतार के दस बड़े बुत। आगे एक हॉल सा है, वहां न कोई कुर्सी, न मेज़, न सोफे और थे तो सिर्फ पानी के चार घड़े। और चूंकि मैंने उन्हें बताया था कि मैं सिर्फ 15-20 मिनट तक ही रह पाऊंगी। मेरा स्वागत करते ही अन्नू तुरंत मेरे लिए रोटियां बनाने लगीं। इतने में दो बच्चों ने आकर चरण छुए। तुम अभिज्ञ हो न और ये प्यारी सी लम्बे बाल वाली लड़की तुम्हारी छोटी बहन, पता नहीं चला की मैं तुम लोगों के लिए क्या लाऊं, ये कुछ चॉकलेट और बिस्किट्स लायी हूं, यह कहते हुए मैंने अपने बैग में जैसे ही हाथ डाला, तो वह बोला आंटी मैं ऐसी चीज़ों को खाता ही नहीं हूं ये काफी हानिकारक होती हैं। बल्कि आपको भी यह सब नहीं खाना चाहिए। सुनकर मैं चौंक गई! इतने में खुली रसोई में ज़मीन पर बैठकर यशोदा मैया की तरह मिट्टी के बर्तन में कुछ बनाती हुई, रोटियां बेलती हुई अन्नू हंसकर बोलीं, बुरा मत मानिएगा पांच साल से भी ज्यादा हुए इस घर में किसी ने ऐसा 'जंक फ़ूड' नहीं खाया।

हम कनाडा में थे, तब अभिज्ञ तीन साल का था तो एकाएक बहुत हकलाने लगा। उस समय हम किसी और परिवार की तरह ही खूब पास्ता, नूडल्स व फ्रोज़ेन फ़ूड खाते थे। पर जब ऐसा हुआ तो हमने रिसर्च की और हमें लगा की हमें देसी शुद्ध भोजन ही अपनाना चाहिए। अभिज्ञ सात साल के उम्र से ही पूरी श्रीमद्भगवद् गीता के 700 श्लोक को बिना पुस्तक देखे यूं ही बोल देता था पर अब ये सुनकर हैरान रह गई कि ये बच्चा अब तक कर्नाटक के 43 स्कूल्स में हर जगह 2-3 घंटे का भाषण दे चुका है सात्विक आहार सेवन पर। प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत का अभियान चला रहे हैं पर मेरा यह मानना है कि हमें अपने शुरुआत स्वच्छ शरीर से करना चाहिए, अभिज्ञ बताते हैं।

प्राकृतिक और हिंसा रहित आहार का सेवन यह है अभिज्ञ का सन्देश जो वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहता है। उसका मानना है कि हमारे देश के पारंपरिक आहार में खूब सारे गुण और शक्ति हैं और जंक फ़ूड खाने से हम उसे खोते जा रहे हैं।

आनंद की मातृभाषा तमिल है और उनकी पत्नी सिन्धी, बच्चे दोनों ही भाषा बोल लेते हैं। पढ़ाई नजदीक के ही सरकारी विद्यालय में हो रही है। अभिज्ञ को इस नन्ही सी उम्र में गुजरात के एक वैदिक महाविद्यालय ने 'आचार्य' की उपाधि दी है, श्रीमद्भगवद्  गीता को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए। इसके साथ-साथ यह बालक जड़ी बूटियों पर भी शोध कर रहा है, वो भी आयुर्वेद माइक्रोबायोलॉजी के विषय पर।

हर्बल आचार्य दीपक आचार्य मुझ से बताया हैं, करीब सात साल पहले गुरुपूर्णिमा के दिन आस्ट्रेलिया से मुझे एक फ़ोन आया था, दूसरी तरफ से एक नन्हे बच्चे की आवाज़ सुनाई दी। चार साल का यह बच्चा हर्बल मेडिसिन्स के बारे में बड़ी जिज्ञासा से कई सवाल करता चला गया। जैसे बहुत कुछ जानना चाहता था वो। दरअसल उसे हिंदुस्तानी पारंपरिक ज्ञान सीखने की चाह थी और बातों-बातों में उसने ये भी बताया कि उसने मेरे काफी सारे आर्टिकल्स पढ़े हैं और वो मुझे गुरुपूर्णिमा के शुभ दिन पर गुरु बनाने की इच्छा रखता है अभिज्ञ सिर्फ उम्र में छोटा है यही सोचता हूँ कि मैं इसका नहीं ये मेरा गुरु है और असल सच भी यही है। 

अभिज्ञ की मां कभी फैशन डिज़ाइनर हुआ करती थीं, लेकिन अब वो प्राकृतिक जीवन शैली अपना चुकी हैं। ये परिवार धरती के करीब रहना चाहता है, बड़ा घर है, लेकिन कुर्सी, न चारपाई, न फ्रिज है, न माइक्रोवेव, न टेलीविज़न है और न ही स्मार्ट फोन। पुराना फ्रिज था, आज वो किताबों का अलमारी बन गया है। ये परिवार कभी मॉल नहीं गया, अपने पड़ोस की दुकान ही ज़रूरी सामान और मैसूरू की बाज़ार से सीधे सब्जियां खरीदते हैं। इस आधुनिक युग में एक परिवार ऐसा भी है, ये परिवार किसी जंगल में नहीं, हमारे ही बीच में रह रहा है। आनंद और अन्नू अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, फिनलैंड, ऑस्ट्रेलिया इन सभी देशों में रहे, पर उन्हें हमेशा देश लौटने का इंतज़ार था। आखिर में यह परिवार 2013 में मैसूरू के पास थोड़ी जमीन लेकर यहीं बस गया। मेरी तरह आनंद और अन्नू भी घुमक्कड़ थे, जो आखिर घर के हो ही गए।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

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