'प्राइवेट स्कूल की भारी भरकम फीस से बचा सकते हैं सरकारी स्कूल'

निजी विद्यालय की फीस का स्थाई समाधान सरकारी परिषदीय विद्यालय ही बन सकते हैं बशर्ते उन विद्यालयों में प्राइवेट स्कूलों की सुविधाएं सरकार प्रदान कर दे और यह जनता ही मांग सकती है।

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प्राइवेट स्कूल की भारी भरकम फीस से बचा सकते हैं सरकारी स्कूल

विपिन उपाध्याय

पिछले कई दशकों से शिक्षा का अधिकार भारत में प्राथमिकता पर रहा है। शिक्षा को प्रत्येक सरकार ने अपने निर्णयों में प्राथमिकता पर रखा। सरकार जब शिक्षा को प्राथमिकता पर रखती है तो ध्यान जाता है सरकारी विद्यालयों की ओर, लेकिन जनता का रुझान प्राइवेट विद्यालयों की ओर चला जाता है जो वर्तमान समय में जनमानस को अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल रहते हैं।

भारी भरकम फीस के बावजूद अभिभावक छात्र का दाखिला प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवा कर खुद को संतुष्ट पाते हैं, लेकिन फीस को लेकर समय-समय पर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं।

आए दिन सुनने में आता है कि लोग प्राइवेट स्कूल की फीस को लेकर बेहद चिंतित दिखाई देते हैं, एक रिक्शा चलाने वाला, एक ठेला लगाने वाला कभी निजी विद्यालयों के सपने भी नहीं देखता है लेकिन कोई भी इससे बचने के उपाय के बारे में नहीं सोचता। अधिक फीस के बाद भी निजी विद्यालयों में ऐसा क्या व्यवस्था है जो वह अभिभावकों को आकर्षित करने में सफल रहते हैं।


प्राइवेट स्कूलों में पढ़वाना ज्यादा पसंद

और वहीं सरकारी परिषदीय विद्यालय हैं जहां पर शोषित और वंचित वर्ग के बच्चों को शिक्षा दी जा रही है, आर्थिक रूप से सामान्य अभिभावक और यहां तक की शिक्षक, कर्मचारी नेता आदि भी स्वयं के बच्चों का दाखिला परिषदीय विद्यालयों की बजाय प्राइवेट स्कूलों में पढ़वाना ज्यादा पसंद करते हैं।

लोग अभिभावक निजी स्कूलों की फीस से त्रस्त तो हैं लेकिन उसके स्थाई समाधान के बारे में विचार नहीं कर रहे। निजी विद्यालय की फीस का स्थाई समाधान सरकारी परिषदीय विद्यालय ही बन सकते हैं बशर्ते उन विद्यालयों में प्राइवेट स्कूलों की सुविधाएं सरकार प्रदान कर दे और यह जनता ही मांग सकती है।

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इस पर आत्म मंथन की आवश्यकता है और यह भी समझना चाहिए कि सिर्फ सरकारी विद्यालय के शिक्षक पर हंटर चलाने से क्या व्यवस्था में सुधार आ सकता है, शायद नहीं। क्योंकि अगर शिक्षक अपनी जगह सही नहीं होता तो पूरे प्रदेश में पिछले शिक्षा सत्र से लगभग 3 लाख छात्रों का अधिक नामांकन हुआ है, इससे काफी हद तक स्पष्ट है कि शिक्षक तो अपनी जगह कार्य कर रहा है तो फिर कमी कहां है।

बहुत कुछ स्थिति स्पष्ट हो जाएगी

अब एक बार प्राइवेट स्कूल की तुलना अगर परिषदीय विद्यालय से की जाए तो आपको बहुत कुछ स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि क्यों अभिभावक प्राइवेट में अपनी पूरी जमा पूंजी देने के बाद भी क्यों प्राइवेट स्कूल की ओर ही आकर्षित होता है।

एक ओर जहां प्राइवेट प्राइमरी स्कूल में हर कक्षा के लिए एक कमरा होता है जहां कक्षा 1 से 5 तक के छात्र के लिए 5 कमरे, 1 कमरा कॉमन रूम जिसमें बच्चे खेलें, 1 स्टाफ रूम, 1 प्रधानाचार्य कक्ष, खेल का मैदान और साफ-सुथरे और पर्याप्त मात्रा में शौचालय, चारों तरफ से दीवार से घिरा सुरक्षित परिसर।

वहीं परिषदीय विद्यालयों में 2 कमरे, 1 बरामदा, 1 किचन, 1 प्रधानाचार्य कक्ष, कहीं-कहीं मैदान और कहीं-कहीं चारदीवारी।

प्राइवेट स्कूलों में बच्चों के बैठने के लिए टेबल कुर्सी, पढ़ाने के लिए व्हाइट/ग्रीन बोर्ड बिजली पंखा, शुद्ध पानी, एलईडी आदि दिए जाते हैं लेकिन परिषदीय प्राइमरी विद्यालय में आज भी छात्र को जमीन पर फट्टी बिछा कर, उसी काले श्याम पट पर पढ़ना होता है जो आदि काल से चला आ रहा है।

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अब आप विद्यालय का स्टाफ देखिए

अब आप विद्यालय स्टाफ देखिए जहां एक ओर प्राइवेट स्कूल में कम से कम 5 शिक्षक, 1 प्रधानाध्याक, 1 लिपिक, 1 चपरासी, 1 सफाई कर्मी वहीं परिषदीय में 1 या 2 शिक्षक ही पूरा विद्यालय संभालते हैं।

और इसी के साथ समय-समय पर सूचनाओं को भेजना, प्रतिदिन खाना (एमडीएम) की व्यवस्था करना, मीटिंग में जाना और कई प्रकार के गैर शैक्षणिक कार्य आदि करना भी शिक्षक के ही जिम्मे सौंप रखे गए हैं। विद्यालय के ताले खोलने से लेकर साफ-सफाई, फट्टी बिछाना हर पीरियड की घंटी बजाना और शौचालयों में साफ-सफाई रखना भी उन्हीं 1 या 2 शिक्षकों के हवाले है जो शिक्षण कार्य के लिए रखे गए थे।

यहां तक की अगर स्कूल समय में किसी बच्चे ने गंदगी फैलाई तो उसकी सफाई के लिए भी कोई अन्य स्टाफ (सफाई कर्मी, चपरासी) नहीं है यह भी उसी शिक्षक के जिम्मे है, तो शिक्षक तो अपना दायित्व कहीं ना कहीं अच्छे से निर्वाह कर रहा है, तो फिर चूक कहां हो रही है?

अब शिक्षकों की योग्यता देखिए

अब शिक्षकों की योग्यता देखिए, प्राइवेट में अधिकांश जगह योग्यता का कोई मानक नहीं रखा गया है और जहां मानक है भी वह इंटरमीडिएट या स्नातक अथवा ज्यादा से ज्यादा बीएड को नियुक्ति दे देते हैं। लेकिन परिषदीय विद्यालय में एक शिक्षक की योग्यता बीएड/बीटीसी फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा फिर सहायक अध्यापक लिखित परीक्षा और उसके बाद मेरिट तब जा कर एक युवा शिक्षक बन पाता है। अगर यह कहा जाए कि पूरे प्रदेश का सबसे योग्य युवा बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापक है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जागरूक जनता को चाहिए कि वह सरकार से मांग करे कि सरकारी विद्यालयों में प्राइवेट की सुविधाएं दी जाएं जिससे कि अनुचित फीस के बोझ से आम जनता को मुक्ति मिले और वह बचा हुआ बच्चे के भविष्य के लिए सहेज सकें। सभी को मुफ्त और उत्तम शिक्षा मिल सके, और सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र को निजी विद्यालय के छात्र को देख कर हीन भावना ना हो।

(लेखक पेशे से एक शिक्षक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)

   

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