सरकार का झूठ, दोगुनी आय का मचता शोर और खाली हाथ किसान

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सरकार का झूठ, दोगुनी आय का मचता शोर और खाली हाथ किसानमहज 6 पर्सेंट किसान ही एमएसपी पर फसल बेच पाते हैं

पहली फरवरी आई, वित्त मंत्री ने 2018-19 के लिए बजट प्रस्तुत किया पर किसानों के हाथ कुछ नहीं लगा, सिवाय एक अजीब से बयान के, कि सरकार पहले से ही इस रबी सीजन की अधिकांश फसलों के लिए लागत मूल्य से 50 फीसदी ज्यादा का भुगतान कर चुकी है। इस बजट को और अधिक किसान समर्थक दिखाने के लिए वित्त मंत्री ने ऐलान किया कि सरकार मोदी जी के उस वादे को लागू करने जा रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि फसलों का समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना तय किया जाएगा। जिस पल मैंने यह घोषण सुनी, मुझे 21 फरवरी 2015 का दिन याद आ गया जब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके कहा था कि वह फसलों की लागत मूल्य के 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी नहीं दे सकती। हलफनामे में कहा गया था कि ऐसा करने से बाजार में दिक्कतें पैदा जाएंगी। तर्क में कहा गया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और लागत का यह संबंध कुछ मामलों में उलटे परिणाम देता है…

वित्त मंत्री के इस ऐलान को सुनकर हर कोई उत्साहित था, फिर सचाई खुली। अरुण जेटली का यह दावा कि सरकार ने इस रबी सीजन की अधिकांश फसलों के लिए लागत मूल्य से 50 फीसदी ज्यादा का भुगतान किया है, एकदम झूठा निकला। असल में एम.एस. स्वामिनाथन कमिटी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत का डेढ़ गुना तय करने की सिफारिश की थी और प्रधानमंत्री मोदी इससे चिपक गए, उन्होंने इसे 2014 में अपना चुनावी वादा बना लिया। अपनी रिपोर्ट में एम. एस. स्वामिनाथन ने लिखा था कि एमएसपी को खेती की लागत के 50 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए। स्वामिनाथन ने उस समय यह साफ नहीं किया था कि खेती की लागत तय करने के मानक क्या हैं, हालांकि रिपोर्ट के संलग्नक में यह पूरी तरह स्पष्ट था कि उन्होंने किसान के शुद्ध लाभ की गणना C2 के आधार पर की।

ये भी पढ़ें- बजट में किसानों की मर्ज़ का उपचार हुआ, लेकिन किस मर्ज़ का ?

यहां A2 = नगदी लागत ; इस लागत में किसानों के फसल उत्पादन में किए गए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं। इसमें बीज, खाद, केमिकल, मजदूर लागत, ईंधन लागत, सिंचाई, बैल, मशीनें आदि की लागतें शामिल होती हैं।

A2+FL = इसमें नकदी लागत के साथ ही परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है।

C2=A2+FL+ इस लागत में जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और जमीन के अलावा दूसरी कृषि पूंजियों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है।

इस तरह अब यह बात साफ है कि जब प्रधानमंत्री मोदी 2014 में देश के किसानों को लुभा रहे थे उस समय वह C2 पर 50 फीसदी लाभ देने का वादा कर रहे थे। लेकिन, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है, यह A2+FL होगा, जमीन का किराया एक मिथक है। शुरुआत किए गए खर्च पर पचास फीसदी मुनाफे से होगी। इस तरह के बयान से मोदी सरकार ने ऐसी झूठी तस्वीर पेश करने की कोशिश की है कि सरकार किसानों को लागत का 50 फीसदी लाभ देने वाले 2014 के अपने चुनावी वादे को निभा रही है।

लेकिन, शब्दों की बारीकियां पकड़ने पर कमी सामने आती है। असल में झूठे वादे बड़े शानदार होते हैं, जो कहा है वह कभी पूरा होना नहीं इसलिए उस पर कोई खर्चा भी नहीं आना। यहां हम गेहूं का उदाहरण देते हुए A2+FL+ लागत और C2 लागत का अंतर स्पष्ट करते हैं। 2018-19 के रबी सीजन के लिए लागत और मूल्य निर्धारण आयोग के आंकड़े दिखाते हैं कि गेहूं के लिए A2+FL+ लागत है 817 रुपये प्रति कुंतल और इस पर 50 फीसदी लाभ होगा 1225.50 रुपये प्रति कुंतल। वहीं 2018-19 के रबी सीजन के लिए मोदी सरकार ने एमएसपी तय किया है 1735 रुपये प्रति कुंतल। अब लाख टके का सवाल है कि जब किसानों को स्वामिनाथन रिपोर्ट में तय कीमत से 509.50 रुपये प्रति कुंतल ज्यादा मिल रहे हैं तो फिर किसान सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब यूपीए सरकार भी एमएसपी के तौर पर A2+FL लागत पर 50 फीसदी मुनाफा दे रही थी तो 20014 में मोदी जी स्वामिनाथन रिपोर्ट लागू करने का शोर क्यों मचा रहे थे?

ये भी पढ़ें- किसान को ज्यादा एमएसपी देने पर केंद्र के यू-टर्न पर प्रो स्वामिनाथन का जवाब आया है

समय की मांग है कि एक किसान वेतन आयोग का गठन हो

इस सवाल का जवाब यह है कि किसान चाहते थे कि स्वामिनाथन रिपोर्ट अपने सही स्वरूप में लागू हो मतलब C2 लागत पर 50 फीसदी लाभ मिले। अब 2018-19 के रबी सीजन में गेहूं की कीमतों के मूल्य निर्धारण आयोग द्वारा जारी आंकड़ों का मूल्यांकन करें। इसके मुताबिक, गेहूं के लिए C2 लागत 1256 रुपये प्रति कुंतल है और इस पर 50 पर्सेंट लाभ का मतलब है 1884 रुपये प्रति कुंतल, जबकि मोदी सरकार ने 2018-19 के रबी सीजन के लिए एमएसपी तय किया है 1735 रुपये प्रति कुंतल। इसलिए अगर सरकार C2 को लागत मानते हुए उस पर एमएसपी दे तो किसान को गेहूं के लिए प्रति कुंतल 149 रुपये ज्यादा मिलेंगे। लेकिन अगर A2+FL को लागत माना जाए तो किसान को एक पैसा ज्यादा नहीं मिलेगा।

ठीक इसी तरह, हम धान के मामले में A2+FL पर 50 फीसदी मुनाफे की गणना करें तो किसान को मौजूदा 1550 रुपये प्रति कुंतल के एमएसपी से 125 रुपये प्रति कुंतल ज्यादा मिलेंगे और अगर C2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफे का आंकलन करें तो किसान को 676 रुपये प्रति कुंतल ज्यादा मिलेंगे। चूंकि धान और गेहूं की ही भारी मात्रा में खरीद की जाती है और अगर मोदी सरकार C2 को लागत मानती है तब उसी हालत में किसानों को कुछ अतिरिक्त पैसा मिल पाएगा। अभी हाल में ही फाइनेंसियल एक्सप्रेस ने ये गणना की है कि अगर हर किसान से मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद हो, तो सरकार को 82,276 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्चा वहन करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि हर साल हिन्दुस्तान के किसानों का 82,276 करोड़ रुपया ऐंठा जाता है, और इस आंकड़े में सब्ज़ी और फल को नहीं लिया गया है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर फसल की C2 लागत पर डेढ़ गुना मुनाफा लगाया जाए, तो हर साल किसानों का कितना पैसा ऐंठा जा रहा है ।

ये भी पढ़ें- वीडियो : स्वामीनाथन रिपोर्ट से किसानों को क्या होगा फायदा, क्यों उठ रही इसे लागू करने की मांग ?

हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि शांता कुमार कमिटी ने कहा था कि महज 6 पर्सेंट किसान ही एमएसपी पर फसल बेच पाते हैं। इस लिहाज से अगर सरकार अपना स्टैंड बदल ले और C2 लागत के आधार पर ही 50 फीसदी मुनाफे के हिसाब से एमएसपी तय करे तब भी 94 पर्सेंट किसानों को इसका फायदा नहीं मिलने वाला। उन 83 पर्सेंट किसानों का क्या जिनकी जोत 0.6 एकड़ जितनी छोटी है, जिनके पास बाजार में बेचने लायक उपज नहीं बचती और जिनकी पहुंच बैंकों जैसे संस्थागत ऋण संस्थानों तक नहीं है।

यह कहा जा रहा है कि सरकार 500 रुपये के फंड से नई मार्केट एश्योरेंस स्कीम लागू करने की योजना बना रही है। इसके तहत अगर फसलों के दाम एमएसपी से नीचे गिरने लगें तो राज्य इन फसलों को सीधे किसानों से खरीद सकेंगे। इस योजना में गेहूं और धान शामिल नहीं है। यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या 500 करोड़ रुपये काफी होंगे, खासकर जब 2014-15 में तिलहन और दलहन फसलों की कीमत 2 लाख करोड़ और 2014-15 में ही फलों और सब्जियों की कुल कीमत 4.5 लाख करोड़ से ज्यादा थी।

सरकार ने अशोक दलवई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है, जिसका सीधा लक्ष्य है कृषक परिवारों की औसत आय को 2015-16 में 96,703 रुपये सालाना से बढ़ाकर 2022-23 तक 193,406 रुपये (2015-16 की कीमतों पर ) करना। इस समिति ने अनुमान लगाया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 6.4 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश की जरूरत पड़ेगी। लेकिन इस साल के बजट में महज 4845 करोड़ का ही आवंटन हुआ। बजट में इस मुद्दे पर एकदम चुप्पी साधी हुई है कि 6.4 लाख करोड़ रुपयों की विशाल राशि आएगी कहां से। इससे पता चलता है कि सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के मामले में कितनी गंभीर है।

समय की मांग है कि किसान वेतन आयोग का गठन हो जो एक कृषक परिवार के लिए न्यूनतम सुनिश्चित आय तय करे। यह सरकार का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि आयोग द्वारा तय की गई आय और किसान को एक महीने में होने वाली आमदनी के अंतर के बराबर राशि किसान के खाते में सीधे जमा करे। यही सही मायने में सबका साथ, सबका विकास होगा।

( ये लेखक के निजी विचार हैं )

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.