मानवाधिकार दिवस पर पढ़िए क्या हैं शरणार्थियों के अधिकार

2016 में वही के एक उग्रवादी दल ने राखिने प्रान्त में कई पुलिस पोस्ट ओर आर्मी कैंपो को निशाना बनाया। म्यानमार की सरकार के द्वारा किये जवाबी हमले की वजह से फिर रोहिंग्या निशाना बने। उनके कैंप जला दिए गए, लोगो को मारा गया और कई युवको को पूछताछ के लिए उठा के ले जाया गया।

Swati SubhedarSwati Subhedar   10 Dec 2018 10:39 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मानवाधिकार दिवस पर पढ़िए क्या हैं शरणार्थियों के अधिकार

हर साल, 10 दिसम्बर ह्यूमन राइट्स डे (मानव अधिकार दिवस) के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1947 में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 'यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स' को लागू किया था। हर देश में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, विकसित हो या विकासशील, कई ऐसी घटनाएं घटती हैं जिसकी वजह से कई मानव अधिकारों का हनन होता रहता है। ये सिर्फ कम विकसित या छोटे देशो में नहीं, कई बड़े देशो में भी ये हनन होते है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2017 में 159 देशों में मानव अधिकार के स्तिथि पर अभ्यास किया और 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरे विश्व में मानव अधिकारो के हनन की घटनायें लगातार बढती जा रही है। इस रिपोर्ट में सिर्फ टर्की, यमन, सऊदी अरबिया, सीरिया, वेनेजुला और रूस ही नहीं बल्कि अमरीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे राष्ट्र भी शामिल हैं।

भारत की स्थिति

मानव अधिकार की बात करें तो भारत में भी इनकी हालत कुछ खास सराहनीय नहीं है। 2017 में संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में सिंगापुर, जर्मनी, स्वीडन, इटली, स्लोवेनिया और कजाख्स्तान जैसे कई देशो के 112 वक्ताओ ने भारत को कई मुद्दों पर फटकार लगायी थी। इनमे से कुछ अहम् मुद्दे थे आर्टिकल 377- कम्युनल वायलेंस बिल, रिलीजियस इनटॉलेरेंस, इन्टरनेट शटडाउन, कैपिटल पनिशमेंट और जम्मू कश्मीर में सुरक्षा की हालत और देश में अल्पसंख्यको की स्थिति।

यह भी पढ़ें: म्यांमार रोहिंग्या संकट – क्या होनी चाहिए भारत की विदेशनीति

इस साल भी भारत की निंदा संयुत्क राष्ट्र और कई देशो ने तब की जब हमने असम में शरण ले रहे कुछ रोहिंग्या को देश से निकाल कर वापिस जाने को कहा। इस सरकार ने बाहर से आकर गेरकानूनी रूप से यहाँ बसे हुए लोगो पर अपना निशाना साधा है। सरकार ने इन लोगों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा और "दीमक" बताते हुए इनको यहाँ से निकालने का वादा भी किया है। यह शर्णार्थियो के मानव अधिकारों के हनन का एक गंभीर मामला है और विश्व के कई देश फिलहाल शर्णार्थियो की समस्या से जूझ रहे है।


देश में कितने शरणार्थी?

2016 के सरकारी आकड़ो के अनुसार भारत में 28 विभिन्न देशो से आये करीब 3 लाख शरणार्थी रह रहे हैं। इनमें से कई राज्यविहीन लोग भी हैं। लेकिन इन आंकड़ों में बांग्लादेश से आये लोग और म्यानमार से आये रोहिंग्या नहीं है जो गेरकानूनी रूप से यहाँ रह रहे है। फिलहाल देश में श्रीलंका से आये शर्णार्थियो की संख्या सबसे ज्यादा है। जहाँ तिब्बत से आये करीब 60,000 लोग यहाँ रह रहे हैं, वही पाकिस्तान से आये करीब 10,000 और बांग्लादेश से आये 1 लाख से ज्यादा लोग कानूनी रूप से यहाँ रह रहे हैं। यहाँ पर अफ़ग़ानिस्तान, इराक, सूडान और म्यानमार से भी कई लोग रह रहे हैं। शरणार्थी ज्यादातर तमिल नाडू, दिल्ली, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में रहते हैं जहाँ तमिलनाडू में ही इनकी संख्या करीब १ लाख है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से आये शर्णार्थियो को भारत ने विशेष प्रावधानों के तहत शरण दी है।

कौन है रोहिंग्या और कहा से आये

रोहिंग्या ज्यादातर मुस्लिम हैं जो म्यानमार के पश्चिमी प्रान्त राखिने में रहते हैं। ये लोग ज्यादातर बंगाली बोलते हैं न की बर्मीज़ जो वहा की आम भाषा है। ये लोग कई दशको से वहां रह रहे हैं लेकिन म्यानमार के लोगो ने कभी इन्हें अपनाया नहीं। इन्हें ऐसा लगता है की ये लोग बहार से आकर म्यांमार में बसे थे इसलिए रोहिंग्या को वहा नागरिकता नहीं मिलती। १९८२ के वहा के नागरिकता अधिनियम के तहत सिर्फ उन रोहिंग्या को नागरिकता मिलती है जिनके पास ये प्रमाण हो की उनके वंशज १८२३ से पहले उस देश में रह रहे थे। अगर नहीं, तो उन्हें रेज़ीडेंट फ़ोरेनर्स का दर्जा मिलता है जो कि संपूर्ण नागरिकता नहीं है। इस वजह से उन्हें कई फायदे नहीं मिलते है और ये राखिने प्रान्त के बहार खुल कर जा भी नहीं सकते।

संयुक्त राष्ट्र ने इस बात को लेकर हमेशा से म्यानमार की निंदा की है और ये इलज़ाम लगाया है कि राखिने प्रान्त में रोहिंग्या लोगो को चुन कर मारा जा रहा है। म्यानमार ने हजारो रोहिंग्या को 70 के दशक में बांग्लादेश भेज दिया था। मयन्मार में २०१५ में पहले बार चुनाव हुए लेकिन उसके बाद भी इनकी स्तिथि में कोई सुधार नहीं आया। जो पहली सरकार चुन के आई उसने भी रोहिंग्या को नागरिकता देने से इनकार कर दिया।

2012 में राखिने में रहने वाले रोहिंग्या और वही बसे बुद्धिस्ट लोगो में तनाव शुरू हो गया जब एक रोहिंग्या महिला पर बलात्कार का मामला सामने आया। एक महीने तक दंगे चले जिसमे दोनों तरफ से कई लोगो की जाने गयी। उसी साल फिर दंगे शुरू हुए तो वहा की सरकार ने लाखो रोहिंग्या को स्शार्नार्थी कैंपो में दाल दिया। बोहोत सारे लोग अपने घर छोड़ -

कर बांग्लादेश चले गए और कुछ लोग थाईलैंड, फ़िलीपीन्स, इंडोनेशिया और मलेशिया में जाके बस गए।

2016 में वही के एक उग्रवादी दल ने राखिने प्रान्त में कई पुलिस पोस्ट ओर आर्मी कैंपो को निशाना बनाया। म्यानमार की सरकार के द्वारा किये जवाबी हमले की वजह से फिर रोहिंग्या निशाना बने। उनके कैंप जला दिए गए, लोगो को मारा गया और कई युवको को पूछताछ के लिए उठा के ले जाया गया। कड़े पुलिस बंदोबस्त के बावजूद वो वह से भागने में मजबूर हुए और अचानक समुद्र के रास्ते नावो में बैठ कर लाखों की तादाद में लोग शरण लेने दुसरे देशो की चौखटों पर जा पहुचें। इस वजह से अंतर्राष्ट्रीय प्रेस ने इन्हें 'बोट पीपल' का नाम दिया।

यह भी पढ़ें: ब्रिटिश शासन से लेकर अब तक ये है रोहिंग्या का इतिहास

२०१२ में जब बांग्लादेश ने और शरणार्थी लेने से मना किया तो ये थाईलैंड पोहोचे। वहा की सरकार ने उन्हें अपने देश में रखने से इनकार कर दिया। फिर ये लोग मलेशिया पोहोचे। इनकी उम्मीद थी की एक मुस्लिम राष्ट्र उन्हें पनाह देगा। लेकिन यहाँ भी इनकी लिए दरवाज़े बंद थे। जब इंडोनेशिया ने भी इनकी मदद करने से इनकार किया तब ये लोग भारत की तरफ मुड़े।

बांग्लादेश और भारत पे भार

करीब 90,000 रोहिंग्या 2016 के बाद से बांग्लादेश में रह रहे है। पिछले दो दशको में 5 लाख रोहिंग्या वहाँ जाकर बसे है और बांग्लादेश ने कह दिया है के वो और शरणार्थी लेने में सक्षम नहीं है। बांग्लादेश ने सयुक्त राष्ट्र से अपील भी की है कि म्यानमार पर जोर डाले जिस से इस समस्या का कोई हल निकले।

जब बांग्लादेश ने इनके लिए दरवाज़े बंद किये तब ये भारत-म्यानमार बॉर्डर और भारत-बांग्लादेश-म्यानमार के रास्ते भारत में आये। यहाँ कुछ 40,000 रोहिंग्या रह रहे है। इनके कैंप असम, बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश और केरला में है। जम्मू कश्मीर की सरकार के अनुसार करीब 6000-10,000 रोहिंग्या मुस्लिम जम्मू के आस-पास बसे हैं।

क्या रोहिंग्या वाकई है सुरक्षा को खतरा?

सरकार को ख़ुफ़िया एजेंसियों के हवाले से यह खबर मिली है के रोहिंग्या के कुछ दल आतंकवादी संगठनो के संपर्क में है और आईएसआईएस द्वारा भारत पर आतंकी हमलो के लिए इस्तमाल किया जा सकते है। सरकार को लगता है ये दल जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात में सक्रिय है और आतंकवादी संगठन जैसे अल कैदा और जमात उद दावा के संपर्क में है। सरकार का यह भी मानना है की रोहिंग्या हवाला के माध्यम से कला धन लाने और ले जाने, फर्जी दस्तावेजों के ज़रिये अन्य रोहिंग्या को भारत में लाने की कोशिश, और अन्य गेर कानूनी काम जैसे मनाव तस्करी में शामिल है। जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या पे ख़ास कर निगरानी रखी जा रही है क्योकि ये लोग सीमा के काफी करीब रहते हैं।

क्या रोहिंग्या कानूनी रूप से रह रहे है यहाँ?

भारत में कुछ 14,000 रोहिंग्या ही कानूनी रूप से रह रहे हैं और वो यूनाइटेड नेशंस हाई कमिशनर फॉर रेफ्यूजीस से रजिस्टर्ड है। करीब 40,000 गैरकानूनी रूप से रह रहे हैं और देश के कई इलाको में बेहद गरीबी में झुग्गी-झोपड़ियो में रह रहे हैं। इस साल जून में सरकार ने सारे राज्य को सूचना दी की विभिन्न राज्यों में रहने वाले रोहिंग्या की सूची बनायीं जाये और उन्हें कोई भी कानूनी दस्तावेज न दिए जाये जिस से वो भविष्य में भारत की नागरिकता ना मांग सके।

क्या हैं शर्णार्थियो के अधिकार

यूएनएचसीआर की परिभाषा के अनुसार शरणार्थी वो हैं जिसकी जान को अपने देश में खतरा है और इस वजह से वो उस देश को छोड़ कर दुसरे देश में शरण लेता है। शरणार्थी सामान्यतः वापिस अपने देश जाने से डरते है या जाना ही नहीं चाहते। जब कोई शरणार्थी किसी देश में आता है तो उस देश का दायित्व बन जाता है की वो उसे अपने देश में शरण दे। किसी भी शरणार्थी को वापस उस देश भेजना जहा उसकी जान को खतरा है, वो नैतिक रूप से गलत माना जाता है। शर्णार्थियो को अधिकार मिलता है की उन्हें नए देश में सुरक्षित माहोल मिले और कुछ बुनियादी हक्क दिए जाये जिस से उन्हें रहने, शिक्षा और काम करने का मौका मिले। जब किसी देश में अचानक बोहोत सारे शरणार्थी आ जाते है तो UNHCR उस देश की मदद भी करती है शर्णार्थियो के विस्थ्पन में। सामान्यतः एक देश के पास अधिकार होता है शर्णार्थियो को कानूनी स्टेटस देने का लेकिन UNHCR भी कई बार देशो की सहायता करता है।

क्यों भारत नहीं जुड़ना चाहता

यूएनएचसीआर का '1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और 1967 प्रोटोकॉल' एक अहम् दस्तावेज है जिसपे विश्व के १४५ राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किया है। यह शरणार्थी की परिभाषा को विस्तृत तरीके से समझाता है और उसके साथ आने वाले जिम्मेदारियो के बारे में बताता है। भारत इसका हिस्सा नहीं है और ना ही हमारे देश में शर्णार्थियो की सुरक्षा को लेके कोई ठोस नीति है। इसके बावजूद हम कई शर्णार्थियो को अपने देश में शरण देते आ रहे है। आखिर क्या वजह है की भारत जैसा लोकतान्त्रिक देश इस दस्तावेज को नहीं अपना रहा। इसके कई कारण हो सकते है। हमारा देश सभी तरफ से अन्य देशो से घिरा हुआ है। हमारी सारी सीमाए पूरी तरीके से बंद नहीं है जिस वजह से लाखो की तादाद में लोग अन्दर आ सकते है। अगर भारत ये दस्तावेज़ का हिस्सा बनता है तो हमें हर हाल में इन शर्णार्थियो को अपनाना पड़ेगा और फिर कभी इन्हें वापिस नहीं भेज सकते। इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर असर होगा। इस से हमारे अन्य देशो से सम्बन्ध भी बिगड़ सकते है। दूसरी वजह ये है की अगर हम शरणार्थी को आने दे रहे है और उन्हें रख रहे है तो किसी दस्तावेज़ की क्या ज़रुरत है क्योकि हम संयुक्त राष्ट्र से शर्णार्थियो को रखने के लिए आर्थिक रूप से कोई सहयता नहीं ले रहे।

विश्व में शर्णार्थियो की संख्या 2016 में ही 22।5 मिलियन थी, जो तब तक का रिकॉर्ड था। यह आकड़ा लगातार बढ़ता गया और बढ़ता रहेगा। कई बड़े देश पहले ही अपने हाथ खड़े कर चुके है। ऐसे में क्या भारत संयुक्त राष्ट्र का दस्तावेज़ न अपना कर ठीक कर रहा है? क्योकि अगर बड़ी तादाद ले लोग आये तो हमारे जैसे विकासशील देश के लिए एक बोहोत बड़ी मुसीबत हो जाएगी। लेकिन क्या शर्णार्थियो को हिन्दू या मुस्लिम के नज़रिए से देख कर उनके साथ भेदभाव करना एक लोकतान्त्रिक देश के लिए ठीक है?

यह भी पढ़ें: भारत में रहते हैं इतने देशों के शरणार्थी , लाखों में है संख्या

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये अवैध प्रविसयो को नागरिकता देने की बात करता है। इसके तहत हिन्दू, सिक्ख, बुद्धिस्ट, जैन, पारसी और क्रिस्चियन लोगो जेल में नहीं डाला जायेगा या वापिस नहीं भेजा जायेगा, लेकिन यह मुस्लिम प्रविसियो को लेके चुप है और सरकार अब भी लगातार रोहिंग्या को वापिस भेजने की बात कर रही है।

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.