मैं घुल चुका हूं पौधों की रहस्यमयी दुनिया में

Deepak AcharyaDeepak Acharya   11 Dec 2016 6:29 PM GMT

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मैं घुल चुका हूं पौधों की रहस्यमयी दुनिया मेंमैं घुल चुका हूं पौधों की रहस्यमयी दुनिया में।

पिछले सप्ताह एक लेक्चर के लिए ईडीआई, गांधीनगर में मुझे आमंत्रित किया गया था। वहां चर्चा औषधीय पौधों और उससे जुड़े व्यवसायों की संभावनाओं पर चर्चा होनी थी। किसी ने अचानक सवाल पूछ लिया कि क्या पौधों में भी सूंघने, देखने, आभास करने, क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं पर अपना रुख बदलने जैसी बातें होती हैं? मुझे तो जैसे मौका मिल गया और फिर एक लंबा चौड़ा व्याख्यान इसी विषय पर देता रहा।

दरअसल माइक्रोबायोलॉजी जैसे आधुनिक विज्ञान से लोक परंपरागत ज्ञान विज्ञान तक का मेरा सफर बेहद रोचक रहा और इस दौरान पादप जगत को हमेशा से बड़े कौतुहल के साथ समझने की कोशिश करता रहा हूं। अपने शोध काल से लेकर अब तक जब-जब वनों और वनवासियों से रू-ब-रू होता हूं, खुद को अज्ञानी सा महसूस करता हूं। पादप विज्ञान जगत की तमाम उपलब्धियों से पहले और उसके बाद के कुछ दौर तक वैज्ञानिकों को सिर्फ इतनी जानकारी थी कि पौधे भी श्वसन क्रिया को अंजाम देते हैं, ये अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और इनमें प्रजनन क्रिया भी होती है जिससे फलों का बनना तय होता है।

यानी जानकारियां बेहद सीमित थी और फिर जैसे-जैसे विज्ञान ने आधुनिकता का जामा पहनना शुरू किया, वैसे-वैसे एक-एक करके पौधों के जीवनचक्र की जानकारी और अनोखे गुणों के संदर्भ में नित नई जानकारियों की जैसे बाढ़ सी आने लगी। एक अरसे तक आम लोगों को सिर्फ यही पता था कि पौधे श्वसन क्रिया से समस्त जीव-जंतुओं के लिए प्राणदायी ऑक्सीजन गैस देते हैं बस, लेकिन समय के साथ एक से बढ़कर एक रोचक जानकारियों का पता चलना शुरू हुआ और फिर सारा पादप विज्ञान एक कौतुहल का विषय बन गया। खैर, विषय काफी विस्तृत है लेकिन कुछ खास रहस्यमयी और रोचक जानकारियों को साझा करना मुझे अच्छा जरूर लगेगा। ये वो बातें हैं जो शायद आपने पहले सुनी ना हो, या सुना हो किंतु भरोसा नहीं किया। ये सारी जानकारियां वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित और सत्य हैं और इन जानकारियों को भ्रम या शंका के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, और इसे आप नकार भी नहीं सकते।

कलश-पादप नामक पौधे की एक प्रजाति (नेपेन्थिस अल्बोमार्जिनेटा) दीमक का शिकार करके खा जाती है, सिर्फ एक दीमक नहीं, बल्कि एक साथ, एक झटके में सैकड़ों दीमक यह पौधा निगल जाता है। कलश-पादप की अन्य प्रजातियों को भी कीटों का भक्षक माना जाता है। ड्रासेरा, ड्रायोनिया, अट्रिकुलेरिया, एरिस्टोलोकिया जैसे 650 से अधिक पौधे ऐसे हैं जो कीटभक्षी पौधे कहलाते हैं। आधुनिक शोधों से जानकारी मिलती है कि आवश्यक पोषक तत्वों की भरपाई करने के लिए ये पौधे कीटों का शिकार करते हैं। क्या पौधे भी आपस में बात करते हैं? क्या इनमें भी संवाद होता है? जी हाँ, पौधे आपस में संवाद करते हैं, इनमें एक-दूसरे तक सूचना पहुंचाने की व्यवस्था भी होती है।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिराफ और ऊंट जब बबूल के ऊंचे पेड़ों की शाखाओं पर किनारों पर लगी ताजी हरी पत्तियों को खाने जाते है और जैसे ही पहले पौधे पर मुंह मारते हैं, कुछ ही देर में इस पौधे की पत्तियों से एक विशेष प्रकार की जहरीली गैस का रिसाव होता है जो हवा के माध्यम से नजदीक के बबूल के पेड़ों तक पहुंच जाती है, तुरंत नजदीकी पेड़ अपनी रक्षा के लिए जहरीले टोक्सिंस को पत्तियों की सतह पर ले आते हैं और, जब ये जानवर नजदीकी दूसरे पेड़ों पर मुंह मारते है तो पत्तियों की कड़वाहट इन्हें बबूल के पेड़ों से दूर होने पर मजबूर कर देती हैं।

पौधों के बीच अपनी सुरक्षा के लिए इस तरह के संवाद को शायद आपने पहले कभी सुना नहीं होगा। क्या पौधों में भी आपसी स्पर्धा होती है? जी हां, पौधे भी अपनी वृद्धि और विकास के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं। पादप विज्ञान के एक सिद्धांत के अनुसार किसी एक क्षेत्र में विशेष पादप प्रजातियों का वर्चस्व होना, इसी सिद्दांत के चलते होता है। एक ही तरह के पौधे लगातार वर्षों तक एक ही तरह अपना वजूद बनाए रखते हैं और किसी नयी प्रजाति को इस जगह पर आकर बसने में अच्छा खासा संघर्ष करना पड़ता है। सागौन के जंगलों में किसी नयी प्रजाति का पौध रोपण किया जाए, पौधा सिर्फ संघर्ष करता रह जाता है, यह भी संभव है कि पौधा जीवित रह पाए लेकिन इस नए पौधे का सागौन की तरह एकाधिकार होने की संभावना उस वन परिक्षेत्र में नगण्य मानी जा सकती है। क्या पौधों को भी दर्द महसूस होता है? जी हां, पौधों को तने से या किसी भी अंग से काटे जाने पर निस्संदेह दर्द महसूस होता है।

अमेरिकन वैज्ञानिक बैकस्टर और उनकी टीम ने आधुनिक संयंत्रों को पौधों में प्रवेश कराकर पौधों की प्रतिक्रियाओं को एक रीडिंग मशीन पर लिया और पोलिग्राफ तैयार किया। जब-जब इस पौधे की पत्तियों को तोड़ा गया, पोलिग्राफ पर इसकी प्रतिक्रिया काफी तेजी से हुयी। जब जब पादप अंगों को काटा या तोड़ा जाता है, ठीक हमारे शरीर की तरह इनके कटे अंगों से भी तरल द्रव बाहर आता है जो कुछ देर में खून के थक्के बनने की तरह वहां ठोस हो जाता है, घाव भरने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। क्या पौधे नाच सकते हैं? जी हां, कर्णप्रिय संगीत सुनकर पौधों में भी प्रतिक्रियाएं होती है। डेस्मोडियम गायरान्स नामक पौधे के पास जैसे ही संगीत की धुने बजाई जाती है, इसकी ताजा कोमल हरी पत्तियों में संगीत की धुन पर नाच होने लगता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए बाकायदा प्रयोग किए जा चुके हैं। ऐसी कितनी ही जानकारियां हैं जो मुझे पौधों की रहस्यमयी दुनिया में अब तक घोले हुए है, और मैं बड़े मज़े से इनके बीच खुद को पाता हूं।

(लेखक हर्बल विषयों के जानकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

    

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