लाहौर और पूर्ण स्वराज्य की याद दिलाता है 26 जनवरी  

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लाहौर और पूर्ण स्वराज्य की याद दिलाता है 26 जनवरी   आज हमारा गणतंत्र दिवस है जिस दिन 1950 में हमारा अपना संविधान लागू हुआ था।

आज के दिन 1930 को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में रावी के तट पर पूर्ण स्वराज्य का उद्घोष किया गया था। वही लाहौर जो लाला लाजपत राय की कर्मभूमि रहा, जहां के डीएवी कालेज ने क्रान्तिकारियों को क्रान्ति का पाठ पढ़ाया था, जहां 5 लाख हिन्दू और 1 लाख सिख रहते थे, जहां मुसलमान केवल 5 लाख थे, जहां भगतसिंह की शहादत हुई थी और जो कांग्रेस की गलती से पाकिस्तान में चला गया।

आज हमारा गणतंत्र दिवस है जिस दिन 1950 में हमारा अपना संविधान लागू हुआ था। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद जरूर हो गया था और देश के प्रधानमंत्री नेहरू बन गए थे लेकिन वह अंग्रेजी हुकूमत वाले संविधान को ही चलाते रहे और देश का गवर्नर जनरल बनाया गया राजगोपालाचारी को। उसके बाद डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति बने और भारत एक गणराज्य।

भारत का संविधान तो नवम्बर 1949 को ही तैयार हो गया था लेकिन ऐतिहासिक कारणों से इसे तुरन्त लागू नहीं किया गया। एक बार संविधान लागू हो जाने के बाद हमारे नेता भूल गए कि देश में असमानता और अंग्रेजों के समय से चले आ रहे कानून बदलने चाहिए। विशेषकर राज्य और नागरिक के सम्बन्धों को लेकर। सत्ता की आलोचना, वन औरी वनवासियों के नियम कानून, सम्पत्ति के अनेक कानून अभी भी पुराने ही चल रहे हैं। अपनी सुविधानुसार नेताओं ने संविधान संशोधन भी किए हैं लेकिन नागरिकों की सुविधा का ध्यान नहीं।

गणतंत्र भारत का संविधान समान नागरिक संहिता पर आधारित होना चाहिए था लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने हिदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग कानून बनाकर गणतंत्र को धर्म और जातियों के भंवर जाल में फंसा दिया। संविधान को लागू करने में विलम्ब प्रमुख कारण रहा था डॉक्टर अम्बेडकर का नेहरू सरकार से त्यागपत्र।

केवल धर्म और जातियों का भंवरजाल ही नहीं भाषाओं पर आधारित प्रान्तों के कारण भी बराबर कठिनाइयां होती रही हैं। यह इसलिए हुआ कि राज्यों को समान रूप से आजादी नहीं है और नागरिकों को भी समान रूप से जिम्मेदारी का बोध नहीं है। यदि कश्मीर, मध्य सिवा, त्रिपुरा और मेघालय को तरह तरह की आजादी जताई जा सकती है तो बाकी राज्यों को क्यों नहीं। यदि मुस्लिम समाज को आजादी देनी है तो सभी सम्प्रदायों को क्यों नहीं। इसके बाद गणराज्य कैसा बचेगा यह भी सोचना पड़ेगा। आवश्यक है अम्बेडकर के विचारों का संविधान बनाया जाए और इसे तर्क संगत व्यवस्था हो।

व्यक्तिगत आजादी का उदाहरण अमेरिका के राट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह के समय देखने को मिला था जब एक तरफ शपथ ग्रहण समारोह हो रहा था और साथ ही विरोध प्रदर्शन चल रहा था। भारत में हम इतनी आजादी की कल्पना नहीं कर सकते। इंग्लैंड के लंदन शहर में तो हाइड पार्क बना दिया है वहां जाकर जिसका मन चाहे जिसे गाली दे सकता है अपनी भड़ास निकाल सकता है लेकिन पार्क के बाहर नहीं।

आप गाँवों, कस्बो और शहरों के स्कूलों के पास से निकल जाइए तो कोई चहल पहल नहीं दिखेगी। यही हाल स्वतंत्रता दिवस को 15 अगस्त के दिन होता है। एक समय था जब वातावरण देशभक्ति के गीतों से गूंज उठता था। प्रभात फेरियां निकलती थीं और पता चलता था कि आज राष्ट्रीय पर्व है। अब तो सरकारी कार्यालयों में भी औपचारिकता भर बची है। लोगों को पता ही नहीं होगा 26 जनवरी का महत्व और यही दिन क्यों।

ठेडकर के अनुसार हमारा गणतंत्र तभी बनेगा जब स्त्री और पुरुष में, एक जाति और दूसरी जाति में, एक सम्प्रदाय औरा दूसरे सम्प्रदाय के अधिकारों और कर्तव्यों में भेद नहीं होगा। जब व्यवस्था पूर्ण रूप से सेकुलर यानी एक समान कही जा सकेगी।

   

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