भारत के दो प्रधानमंत्री नेहरू और मोदी में अनेक समानताएं हैं

Dr SB Misra | Dec 21, 2016, 14:10 IST
narendra modi
मई 2014 के पहले नरेंद्र मोदी को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं था जबकि नेहरू को दुनिया के देशों में रहने और विदेश नीति को समझने का लम्बा अनुभव था। अब लगता है मोदी में दुनिया को समझने की समझ कहीं अधिक है। हमने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच के आत्मीय सम्बन्धों को इतने कम समय में तेजी से विकसित होते देखा है। आज विदेशों में भारत का डंका बजा है क्योंकि नेहरू और मोदी चमत्कारी व्यक्तित्व के धनी और स्टाइल में अद्भुत हैं व स्थिर सरकारों के मुखिया बने। इसके बावजूद मोदी के नेतृत्व में भारत को दुनिया जिस गम्भीरता से ले रही है नेहरू के भारत को नहीं लिया था।

नेहरू और मोदी में अनेक समानताएं हैं। दोनों को आलोचना पसन्द नहीं। नेहरू अपनी नाराजगी प्रकट कर देते थे लेकिन मोदी उसे तुरन्त प्रकट नहीं करते। नेहरू के विचारों से बहुतों को असहमति थी और मोदी के भी विरोधी बहुत हैं। नेहरू अपना त्यागपत्र जैसे जेब में रखते थे लेकिन मोदी के लिए ऐसी परिस्थिति नहीं है। नेहरू गरम दिमाग और उग्र स्वभाव के थे जबकि मोदी शान्त और ठंडे स्वभाव से काम करते हैं। इसके अच्छे परिणाम भी आ रहे हैं और बहुत कम समय में मोदी के नेतृत्व में दुनिया के देशों में भारत का स्थान अचानक ऊंचा हो गया है। बहुत से लोग नेहरू में तानाशाही स्वभाव पाते थे और मोदी में भी अनेक संवेदनशील लोग तानाशाही प्रवृत्ति देख रहे हैं।

कुछ और समानताएं हैं नेहरू और मोदी में। नेहरू को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान था। जब कभी भी नेहरू के नेतृत्व को चुनौती मिली तो गांधी जी ढाल बनकर सामने आ जाते थे। तीस के दशक में नेता जी सुभाषचन्द्र बोस से और आजादी के समय वल्लभ भाई पटेल से चुनौती थी लेकिन दोनों ही अवसरों पर गांधी जी ने नेहरू का पक्ष लिया लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू ने गांधीवादी रास्ता नहीं अपनाया बल्कि साइंस और टेक्नोलॉजी पर जोर दिया। इसी प्रकार मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत बड़ा योगदान है परन्तु प्रधानमंत्री बनने के बाद वह अपना अलग रास्ता चुनते हुए दिखाई दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री नेहरू के समय दुनिया दो खेमों में बंटी थी, रूस का साम्यवादी और अमेरिका का पूंजीवादी खेमा लेकिन नेहरू ने अपना अलग रास्ता चुना था गुटनिरपेक्षता का मार्ग। नेहरू के भी मित्रों की संख्या कम नहीं थी। मिस्र के अब्दुल गमाल नासिर, यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो, घाना के क्वामे नक्रूमा और इन्डोनेशिया के प्रेसिडेन्ट सुकर्णो। इन सभी ने मिलकर गुट निरपेक्ष देशों का एक समूह बनाया था जिसके पास ना तो धनबल था और ना सैन्य शक्ति। केवल आत्मबल और बौद्धिक क्षमता से लोगों का पेट नहीं भरता। भारत की रक्षा और खाद्यान्न के क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता घटती गई और घटता गया देश का सम्मान। मोदी ने इससे बचने के लिए मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया जैसे नारे बुलन्द किए हैं। अब तो भारत की सकल सम्पदा इंग्लैंड से अधिक होने वाली है।

गुट निरपेक्ष रहते हुए भी नेहरू का रूस के प्रति झुकाव और अमेरिका से दुराव जग जाहिर है। जॉन एफ कनेडी ने भारत से उसी प्रकार मित्रता चाही थी जैसे बराक ओबामा चाह रहे हैं। नेहरू को पूंजीवादी देश नापसन्द थे और पूंजीवादी सोच के लोग भी उन्हें पसन्द नहीं थे। मोरारजी देसाई, सदोबा पाटिल, निजलिंगप्पा, अतुल्य धोष से कभी भी आत्मीयता नहीं बन पाई । वल्लभ भाई पटेल के मित्रों जैसे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और पुरुषोत्तम दास टंडन से मतभेद ही रहे। उनके चहेते वामपंथी विदेश मंत्री कृष्ण मेनन भारत को अमेरिका से दूर ही रखते रहे। जहां नेहरू में पूर्वाग्रह थे वहीं मोदी ने अपने को पूर्वाग्रहों से बचाया है। अमेरिका ने वीसा देने से इनकार किया था परन्तु अपमान का घूंट पीकर भी देशहित में अमेरिका से मित्रता कर रहे हैं। शर्मिन्दगी मोदी को नहीं अमेरिका को हुई।

नेहरू में अपनी बात मनवाने की जिद रहती थी। उन्होंने हिन्दू कोड बिल पास करा दिया लेकिन तब के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हस्ताक्षर नहीं किए तब दूसरी बार फिर भेजा और तीसरी बार भेजा। अब विधान के अनुसार राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने ही थे और किया भी। नरेन्द्र मोदी जब राज्य सभा में कई बिल नहीं पास करा पाए तो अध्यादेशों की झड़ी लगा दी आलोचना की परवाह नहीं की। हठी दोनों हैं लेकिन तरीका काम करने का अलग-अलग रहा है।

नेहरू के समय में राजनैतिक समस्याएं थी, भारत का बंटवारा, कश्मीर समस्या, तिब्बत का चीन में विलय, पहले हिन्दी चीनी भाई-भाई फिर चीन के हाथों भारत की पराजय। चीन के मामले में नेहरू ने जनरल केएम करियप्पा की राय पर कोई तवज्जो नहीं दिया था परन्तु मोदी ने पाकिस्तान से निपटने में सेना को पूरी छूट दे रखी है। आशा है रक्षा और आर्थिक मामलों में नरेन्द्र मोदी नेहरू के मार्ग पर नहीं चलेंगे। नेहरू ने यशस्वी भारत बनाने का प्रयास किया था जो असफल रहा लेकिन मोदी सशक्त भारत बनाएंगे, ऐसी आशा की जानी चाहिए।

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