क्या वाकई A1 और A2 दूध की पौष्टिकता में कोई अंतर है

क्या यह सही है कि A1 दूध पीने से दिल की बीमारियां ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या और बीमारियां होती हैं? क्या सभी विदेशी गायों के दूध में A1 और देसी गायों के दूध में A2 प्रोटीन होता है? जानिए विस्तार से

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क्या वाकई A1 और A2 दूध की पौष्टिकता में कोई अंतर है

दूध एक संपूर्ण पौष्टिक आहार के रूप में जाना जाता है जिसे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही वर्ग के लोग एक सामान लेते हैं। दूध के अंदर विभिन्न पोषक तत्व होते हैं जैसे लैक्टोज, प्रोटीन, फैट, कैल्शियम और अन्य विटामिन और मिनरल्स। दूध में दो तरह का प्रोटीन होता है एक वेह प्रोटीन (whey protein) और दूसरा केसिन प्रोटीन (casein protein)। केसीन प्रोटीन भी दो रूपों में मिलता है अल्फा केसीन और बीटा केसीन।

बीटा केसीन भी दो रूपों में पाया जाता है एक A1 और दूसरा A2। कुछ वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके यह जाना कि जिस दूध में A1 किस्म की प्रोटीन पाया जाता है वह दिल के रोगों को बढ़ावा देता है। इसका सबूत खरगोशों में की गई एक रिसर्च से मिला जिन खरगोशों को बीटा केसीन A2 खिलाया गया उनमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा और ऑर्टिक नस की मोटाई उन खरगोशों से कम मिली जिनको बीटा केसीन A1 खिलाया गया था। इससे यह निष्कर्ष निकला गया कि A2 अच्छा दूध होता है। यही प्रयोग डीजे वैन नाम के वैज्ञानिक ने सन 2005 में इंसानों में किया जिसमें उन्होंने 62 लोगों को अलग-अलग ग्रुप में रखकर 4.5 हफ्तों तक A1 और A2 दूध और चीज़ खिलाया। इसमें उन्होंने कोई ऐसा तथ्य नहीं पाया कि जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि A1 और A2 दूध की वजह से खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा पर कोई प्रभाव पड़ता हो।

आखिर A1 और A2 विवाद है क्या?

बीटा केसीन गाय, भैंस और अन्य जानवरों के दूध में मौजूद एक मुख्य प्रोटीन होता है। विभिन्न वैज्ञानिक रिसर्चो से यह बात पता लगी है कि सैकड़ों वर्षों से अधिक दूध और प्रोटीन उत्पादन के लिए की गई सेलेक्टिव ब्रीडिंग और म्यूटेशन की वजह से बीटा केसीन के अलग-अलग प्रकार बन गए हैं। आज हम लगभग 15 अलग-अलग बीटा केसीन के बारे में जानते हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण A1 और A2 हैं। बीटा केसीन A1 जिसे खराब या बुरा प्रोटीन माना जाता है उसमें और A2 प्रोटीन में सिर्फ 1 अमीनो एसिड का फर्क है। यह बात जानने की ज़रूरत है कि बीटा केसिन एक प्रोटीन है जो अलग-अलग अमीनो एसिड के जुड़ने से बनता है जैसे दीवार को एक-एक ईंट जोड़कर बनाया जाता है । A1 प्रोटीन में 67वीं पोजीशन पर हिस्टीडीन नाम का अमीनो एसिड होता है, जबकि A2 प्रोटीन में उसी जगह पर प्रोलीन होता है । इससे यह फर्क पड़ता है कि A1 बीटा केसिन पेट में पचकर एक नया प्रोटीन बना लेता है जो बायोलॉजिकली और फिजियोलॉजीकली एक्टिव होता है जिसे बीटा केज़ोमोर्फिन कहते हैं। यही प्रोटीन A1 दूध से जुड़ी हुई बीमारियों का एक मुख्य कारक माना जाता है।

क्या यह सच है कि देसी गाय A2 टाइप की और विदेशी गाय A1 टाइप की होती हैं?

जीनोमिक स्टडी से पता चला है कि Bos जीनस या वंश जिसमें देशी, विदेशी गाय और याक आते हैं शुरू में A2 A2 टाइप के थे पर अनुवांशिक विलय (जेनेटिक म्यूटेशन) के कारण कुछ जानवरों में A1 टाइप के जीन पैदा हो गए। बाद में जब चयनात्मक प्रजनन या सेलक्टिव ब्रीडिंग शुरू हुई तो अधिक दूध उत्पादन और प्रोटीन के लिए जिन सांडो को चुना गया उनमें अनजाने में उन अनुवांशिक तौर से उन्नत सांडो को चुन लिया गया जिनमें A1 जीन था और उनसे आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन की तकनीक की वजह से A1 नस्ल की गायों का उत्पादन तेजी से हुआ।

कुछ सर्वेक्षणों में यह भी पता चला है कि A1 और A2 जीन किसी विशेष नस्ल से संबंधित ना होकर क्षेत्र विशेष से जुड़े हैं। जैसे उत्तरी अमेरिका और उत्तरी यूरोप में एचएफ गायों में A1 पाए जाने की संभावना 90% से अधिक है जबकि जर्मन HF में A2 की संभावना 97% से अधिक है। दूसरे देशों की HF में A1 की संभावना 40 से 65% तक होती है। अमेरिका और यूरोप की दूसरी ब्रीड जैसे ग्रुएन्सेय में A2 की संभावना 98 प्रतिशत से भी अधिक होती है लगभग देशी गायों जितनी। जर्सी ब्रीड में A2 की संभावना 80% तक होती है, जबकि हिंदुस्तानी देसी गायों में A2 की संभावना 98% से अधिक है। तो यह तथ्य सही नहीं लगता कि देसी गायों को ज्यादा महिमामंडित किया जाए क्योंकि यदि देखा जाए तो भैंस या बकरी का दूध 100% A2 टाइप का होता है। और इस तर्क के हिसाब से बकरी और भैंस का दूध और भी लाभदायक हो जाता है।

भारतीय वैज्ञानिकों का इस विषय में क्या कहना है?

मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि लगभग सभी भारतीय वैज्ञानिक इस विषय पर एकमत हैं। NBAGR (नेशनल ब्यूरोऑफ एनिमल एंड जेनेटिक रिसर्च) देश का सबसे बड़ा पशु अनुवांशिक शिक्षण संस्थान जिसे ICAR ने करनाल में स्थापित किया गया है। यह इस क्षेत्र में सन 2009 से कार्यरत है। इसकी पहली रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारतीय गायों में A2 की मौजूदगी 98 प्रतिशत तक है और कुछ ब्रीड्स में यह सौ प्रतिशत भी वहीं सभी भैंसे पूर्ण रूप से A2 दूध देती हैं।

NBAGR ने भारत में मौजूद विदेशी गायों की भी जांच की जिससे पता चला कि उनमें भी अधिकतर A2 दूध का ही जीन है। 2012 में छपी एक रिपोर्ट में NBAGR ने यह बताया गया कि क्रॉसब्रीड गाय के भीतर भी मुख्यत: A2 जीन ही होते हैं, इसलिए हमें इस पर नजर रखनी चाहिए परंतु इस समय ब्रीडिंग रणनीति बदलने की कोई जरूरत नहीं है।

क्या A1 दूध पीने से दिल की बीमारियां ब्लड प्रेशर डायबिटीज या और बीमारियां होती हैं?

ये सब झूठी अफवाहें हैं जो कम जानकारी की वजह से मीडिया में फैली हैं। सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि कारण (causal factor) और आशंका (risk factor) में फर्क होता है। A1 किसी बीमारी का कारण नहीं है वह सिर्फ बीमारी की आशंका को बढ़ा सकता है। कुछ सर्वेक्षणों में थोड़ा बहुत रिस्क देखा गया है मगर कुछ अति उत्साहित लोगों ने इसे बीमारी की वजह ही बना दिया।

यह विवाद 1990 में डॉक्टर एलियट ग्रुप की एक रिसर्च से शुरू हुआ था। इसमें डायबिटीज और दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों को उन लोगों के खान-पान से जोड़कर देखा गया था। इन सर्वेक्षणों में दिल की बीमारियों और A1 बीटा केसीन के बीच में काफी गहरा संबंध देखा गया था।

भारत इस रिसर्च का हिस्सा नहीं था इसलिए इसे लागू करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। इस तरह के क्षेत्र विशेष पर आधरित सर्वेक्षण की प्रमाणिकता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। और इस स्टडी में यह भी माना गया कि हर व्यक्ति पर बीटा केसीन की समान मात्रा मिली जो कि किसी भी तरह मुमकिन नहीं है।

इस तरह के सर्वेक्षणों में सबसे बड़ी दिक्कत इनके विवेचन में आती है इंडस्ट्री, मीडिया और वैज्ञानिक इसमें अपने हिसाब से बदलाव कर लेते हैं। इसे लोगों के बीच आधी-अधूरी और कई मामलों में गलत जानकारी जाती है। इसके विपरीत चावल या गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स दूध से कहीं अधिक होता है पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता इस सब में एक्सपर्ट्स की बात भी कोई नहीं सुनता।

कारण और आशंका को बीमारी के साथ जोड़ कर देखने का एक तयशुदा तरीका होता है जिसे मिल्स कॅनन्स भी कहते हैं । जैसे फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में औसत A1 बीटा केसिन का सेवन 0.3 ग्राम प्रतिदिन होता है, जबकि इन जगहों में दिल की बीमारियो से होने वाली मौतो में बड़ा अंतर है फ्रांस में 88% और ऑस्ट्रेलिया में 33%। और तो और अमेरिका और युरोप में पिछले दशक से अब तक A1 बीटा केसिन के सेवन में कोई बदलाव नहीं आया, जबकि दिल के रोगों से होने वाली मौतें बहुत कम हो गई हैं।

डाइयबिटीज़ जैसी बीमारियां काफ़ी जटिल होती हैं और इनकी कोई एक वजह नही होती। यह कहा जाता है कि जिन बच्चों को इन्फेंट फ़ॉर्मूला (जैसे सेरेलेक) दिया जाता है उनमे डाइयबिटीज़ की आशंका बढ़ जाती हैं, जबकि ज़्यादातर इन्फेंट फॉर्मुलास में वेह प्रोटीन इस्तेमाल होता है और केसिन की बहुत कम मात्रा होती है, तो इसका कोई भी ठोस प्रमाण अभी तक नही मिला है

भारतीय संदर्भों में A1 दूध

हमें अपनी भारतीय गायों की नस्लें बचानी चाहिए पर ऐसा नहीं है की बाहरी नस्लों को बिल्कुल ख़त्म कर दें। A1 दूध और बीमारियों के संबंध की अवधारणा विदेशों में की गई रिसर्च और सर्वे पर आधारित है इसे भारत पर लागू करना ठीक नहीं है।

काफी गहन रिसर्च के बाद डॉक्टर ट्रेसर और यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने 2009 में यह प्रकाशित किया कि A1 दूध हर तरह से सेफ है और इसे पिया जा सकता है।


(डॉ इब्ने अली पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं, ये उनके निजी विचार हैं )

    

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