कोविड 19: प्रवासी मजदूरों को राहत पहुंचाना है तो बिना प्रमाणपत्र देखे की जाए मदद,

लॉकडाउन से कई देश के करोड़ों मजदूर सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। कई लाख मजदूरों सड़कों पर है। मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था आजीविका ब्यूरो और सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड लेबर सल्यूशन ने इस मुद्दे ये सुझाव दिए हैं...

Nivedita JayaramNivedita Jayaram   29 March 2020 7:23 AM GMT

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कोविड 19:  प्रवासी मजदूरों को राहत पहुंचाना है तो बिना प्रमाणपत्र देखे की जाए मदद,

कोविड-19 महामारी की चुनौतियों के बीच रोज़गार की तलाश में गाँव से शहर की ओर जाने वाले प्रवासी मज़दूरों पर ज़्यादा बड़ा क़हर टूटा है। वैसे तो कई राज्य सरकारों ने राहत की घोषणा की है और वित्त मंत्री ने ग़रीब और प्रवासी लोगों के लिए आर्थिक पैकेज घोषित किया है, लेकिन 13.9 करोड़ कामगारों को नज़रंदाज़ किया जाना जारी है।

जिन क़दमों की घोषणा की गई है उसके तहत उन लोगों को लाभ मिलेगा, जिन्हें अभी तक विभिन्न कार्यक्रमों के तहत मिलता रहा है पर प्रवासी इनमें नहीं आते क्योंकि इनका इन कार्यक्रमों में पंजीकरण ही नहीं हो पाता। वजह यह है कि प्रवासियों के पास जिस शहर में वे काम कर रहे होते हैं, उस शहर का बाशिंदा होने का पहचान पत्र या कोई और दस्तावेज़ नहीं होता।

इनमें से अधिकतर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और मुसलमान होते हैं जो समाज के हाशिए पर खड़े समूहों से आते हैं।प्रवासियों का यह वर्ग देश का सर्वाधिक ग़रीब और आर्थिक रूप से असुरक्षित वर्ग है। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और सामाजिक दूरी बनाए रखना इस महामारी को रोकने की केंद्रीय रणनीति का हिस्सा है। पर इस वजह से प्रवासी कामगारों को अपने रोज़गार और दैनिक मज़दूरी से हाथ धोना पड़ा है क्योंकि जहाँ वह काम कर रहे थे वह काम अब रुक गया है।

यह कामगारों का ऐसा वर्ग है जो किसी एक नियोक्ता के पास काम नहीं करता कि ऐसे समय में वे बंदी के दौरान वेतन की माँग कर सकें। यहाँ तक कि जहाँ भी वह सालों से एक ही नियोक्ता के यहाँ काम कर रहे हैं, वहाँ भी उन नियोक्ताओं के साथ उनका औपचारिक रोज़गार क़रार नहीं होता जिससे कामगार के रूप में उनका दावा पुख़्ता हो।

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मतलब यह कि ये लोग जिन राज्यों में काम करते हैं उन राज्यों की किसी भी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। पहचानपत्र उन्हें उस जगह का निवासी होने का प्रमाण देता है जो उनके पास नहीं होता और इस वजह से प्रवासी मज़दूर खाद्य, जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधा या आवास की सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते। उलटे, ये झुग्गी-झोपड़ियों, खुली जगहों जैसे सड़क के किनारे, रेल की पटरियों के किनारे या सार्वजनिक/निजी ज़मीनों पर अस्थायी झोपड़ी बनाकर और अनौपचारिक रूप से किराए पर उपलब्ध मकानों में रहने के लिए बाध्य होते हैं। ये स्थान अमूमन बहुत छोटे और स्वास्थ्य के लिहाज़ से रिहायश लायक़ नहीं होते। कई बार ये जिस निर्माण स्थल, फ़ैक्ट्री, दुकान या ढाबे में काम करते हैं वहीं रहते हैं।

पिछले कुछ दिनों से चूँकि वे प्रतिष्ठान जहाँ वे काम कर रहे थे, लॉकडाउन होने के कारण अब बंद हो गए हैं, इन प्रवासी कामगारों को काम से हटा दिया गया है, उनके बकाए का भुगतान नहीं किया गया और जिन शहरों में वे अटके पड़े हैं, वहाँ उनके पास अब कोई रोज़गार नहीं है। जिन घरों में वे रह रहे थे, मकान मालिकों ने उन्हें वहाँ से निकाल दिया है क्योंकि वे किराया चुका पाएँ इस बात की कोई संभावना नहीं है और जो अपने कार्यस्थल पर रह रहे थे उन्हें भी जगह छोड़कर चले जाने को कह दिया गया है।

इस बात की आशंका है कि जिस खुली जगह में वे लोग रहे रहे हैं वहाँ से हटने को उन्हें कह दिया जाए। इसके अलावा ऐसी जगहों पर उन्हें बेवजह परेशान भी किया जाता है। न तो उनके पास राशन ख़रीदने के पैसे हैं, न रहने की कोई जगह है, अपने गाँव लौटने के सारे रास्ते बंद हैं क्योंकि परिवहन के सारे साधन बंद कर दिए गए हैं, ऐसी स्थिति में हज़ारों की संख्या में मज़दूर शहरों में भुखमरी का सामना कर रहे हैं। महामारी के समय में जहाँ उन्हें सुरक्षित स्थान पर होना चाहिए, वे अपने स्वास्थ्य पर सर्वाधिक गंभीर ख़तरे से जूझने के लिए अकेले छोड़ दिए गए हैं। अनेक शहरों में लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गाँव के लिए अपने छोटे बच्चों को कंधे पर उठाए भोजन और पानी की किसी भी तरह की व्यवस्था के बिना पैदल ही चल पड़े हैं। सीमा पर लगे पुलिस चौकियों पर उन्हें लंबी क़तारों में खड़ा होना पड़ रहा है जिससे उनमें संक्रमण का ख़तरा और बढ़ गया है और इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पराजित होता दिख रहा है।

अगर वे किसी तरह अपने गाँव पहुँच भी जाते हैं, तो भी उनके पास पैसे नहीं होंगे क्योंकि वह काम बंद हो चुका है जिनसे उनकी आजीविका चलती थी। ऐसे में ये लोग ज़िंदा बचे रहने के लिए अपनी ज़रूरत का कोई सामान नहीं खरीद सकते। अपने गाँव में उनको पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलेगी। उलटे, वापसी पर उन्हें अपने गाँव के लोगों और पड़ोसियों से यह ताने सुनने होंगे कि वे गाँव में संक्रमण फैला सकते हैं। इन बातों की वजह से इन प्रवासियों को ख़ुद अपने गाँव में विरोध झेलना होगा और इस तरह ये काफ़ी बड़ी मुश्किलों में घिर गए हैं।

पहले से ही कुपोषण, टीबी, और अन्य बीमारियों को झेल रहा प्रवासी कामगारों का यह समूह बहुत ही भयानक स्थिति का सामना कर रहा है और इनकी इन मुश्किलों को तत्काल दूर किए जाने की ज़रूरत है। राज्यों और केंद्र सरकार की संस्थाओं को चाहिए कि वे इसके लिए सम्मिलित प्रयास करें।

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सिंगरौली (मध्य प्रदेश) से रेलवे लाइन के सहारे अपने जिलों को जाते प्रवासी मजदूर। फोटो भीम कुमार, गांव कनेक्शन

आजीविका ब्यूरो और वर्किंग पीपल्ज़ चार्टर महामारी को देखते हुए प्रवासी मज़दूरों के सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन के लिए निम्नलिखित माँग रखती है -

जहाँ प्रवासी मज़दूर काम करते हैं उन शहरी और औद्योगिक क्षेत्र में उठाए जानेवाले क़दम:

• प्रवासी कामगारों को तत्काल मुफ़्त और कम क़ीमत पर राशन उपलब्ध कराया जाए और इसके लिए उनसे किसी तरह का पहचानपत्र या निवासी प्रमाणपत्र दिखाने को नहीं कहा जाए। केंद्र और राज्य सरकारों ने जो राहत कि घोषणा की है वह शहर के उन्हीं लोगों के लिए है जिनके पास राशन कार्ड हैं, निवासी प्रमाणपत्र है। हालाँकि ग़रीब परिवारों को नक़द ट्रांसफ़र की बात है, पर यह भी उन लोगों के लिए है जो पहले से ही इस सूची के आधार पर विभिन्न योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। प्रवासी कामगारों के पास उस शहर में राशन कार्ड नहीं होता जहाँ वे काम करते हैं और इस वझ से इस सूची में उनका नाम भी नहीं होता क्योंकि उन्हें उस राज्य का नहीं माना जाता। इस तरह के सभी रुकावटों को समाप्त किया जाए ताकि प्रवासी मज़दूरों को संकट के इस समय में ज़रूरी मदद उपलब्ध करायी जा सके।

• प्रवासी जहाँ काम करे हैं उन्हें वहाँ पुलिस का सहयोग मिले। यह बहुत ज़रूरी है। राज्य को चाहिए कि वह शहर के ऐसे क्षेत्रों में सिविल सोसायटी की मदद से प्रवासियों की बड़ी संख्या वाले क्षेत्रों में उन तक पहुँचे और उनकी हालत पर नियमित रूप से नज़र रखे और उन्हें ज़रूरी वस्तुओं की कमी नहीं होने दे। पुलिस इस आपूर्ति को सुनिश्चित करे।

• हर क़ीमत पर प्रवासियों के लिए आश्रय स्थल की व्यवस्था हो। खुली जगह में रहने के कारण लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों को पुलिस और दूसरे अथॉरिटीज़ परेशान करते हैं। इन लोगों को उनके मकानमालिक और नियोक्ता पहले ही उनके आवास से बेदख़ल कर चुके हैं। इसलिए उन्हें उचित आश्रय उपलब्ध कराना ज़रूरी है जहाँ उन्हें भोजन और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध हो।

• शहरी स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने की ज़रूरत है ताकि वहाँ ग़रीब और कमज़ोर लोग स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा सकें। जहाँ प्रवासी मज़दूर अटके पड़े हैं वहाँ क्लीनिकों की स्थापना कर उन्हें स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराए जाने की बेहद ज़रूरत है।

• लॉकडाउन के दौरान बैंकों और एटीएम को खुला रखा जाना चाहिए क्योंकि प्रवासियों के लिए नक़द प्राप्त करने के ये एकमात्र स्रोत हैं ये लोग यूपीआई/पेटीएम/जीपे आदि सुविधाओं का प्रयोग नहीं कर सकते। बैंकों और एटीएम के खुले रहने से ये लोग ज़रूरी वस्तुओं की ख़रीद के लिए आवश्यक नक़द प्राप्त कर सकते हैं।

• रेस्तराँ, छोटे ढाबे और भोजनालयों को लॉकडाउन के दौरान खुला रखा जाए। औद्योगिक क्षेत्रों के पास छोटे और सस्ते भोजनालय इन प्रवासी मज़दूरों के लिए सस्ते भोजन के स्रोत हुआ करते हैं क्योंकि यह उनके कार्यस्थल के पास होते हैं। इनके पास खाना बनाने की सुविधा नहीं होती या इनके घर में बर्तन आदि नहीं होते और इस वजह से ये बाहर मिलनेवाले भोजन पर निर्भर रहते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ से प्रवासी आते हैं वहाँ उठाए जानेवाले क़दम

• गाँव/तहसील स्तर पर स्वास्स्थ्य सुविधाओं (पीएचसी और सीएचसी) को मज़बूत बनाया जाए ताकि प्रवासी सहित ग्रामीण समुदाय शहर से लौटने पर इसका लाभ उठा सकें और ताकि स्वास्थ्य ज़रूरतों के लिए इस विकट समय में उन्हें ज़्यादा दूर नहीं जाना पड़े। जिलों और ब्लॉकों में जाँच केंद्र बनाए जाएँ ताकि गाँव लौटनेवाले प्रवासी कामगारों को यह सर्व सुलभ हो।

• स्वास्थ्य व्यवस्था स्थानीय ग्रामीण निकायों और सामुदायिक समूहों के साथ मिलकर पंचायत स्तर पर गाँव लौटनेवाले प्रवासी कामगारों के साथ मिलकर काम करे। ये लोग शहर से लौटने वालों को यह कहकर तंग नहीं करें या धमकाएँ कि ये लोग संक्रमण फैलाने के लिए यहाँ आए हैं। इस समय जिन प्रवासियों की जाँच हो रही है उनकी सूची सार्वजनिक की जा रही है और ऐसे प्रवासियों के घरों पर नोटिस चिपकाए जा रहे हैं जिसकी वजह से इन लोगों और इनके परिवार को ख़तरा पैदा हो गया है और वे घबराए हुए हैं। इसे तत्काल रोके जाने की ज़रूरत है। इन लोगों के नामों का ख़ुलासा नहीं किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो सही सूचना दे और लोगों में जागरूकता पैदा करे ताकि घर लौटनेवाले प्रवासियों पर किसी भी तरह का कोई दोष नहीं मढ़े।

• नरेगा में मिलनेवाली मज़दूरी को सीधे खाते में भेजने की बात कही गई है पर कई ऐसे परिवार हैं जिनको नरेगा के तहत बक़ाये मज़दूरी का महीनों से भुगतान नहीं हुआ है। उन्हें इसका भुगतान तत्काल किया जाए।

• छूट पर मिलनेवाले राशन की जानकारी ग्रामीण समुदाय को अवश्य ही दी जानी चाहिए क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वे इसका लाभ कैसे उठाएँ। इस बारे में उनमें हमेशा ही भ्रम की स्थिति बनी रहती है और कई लोग राशन नहीं होते हुए भी वे इसे प्राप्त नहीं कर पाते।

• पुलिस उन लोगों को परेशान नहीं करे या उन पर लाठी नहीं बरसाए जो अपना घर छोड़ रहे हैं। इन लोगों के पास राशन और अन्य ज़रूरी चीज़ों की कमी होती है। ये अपने घर में इन वस्तुओं को जमा करके नहीं रखते जैसे कि शहरी मध्य वर्ग करता है। और इसलिए वे कम मात्रा में इनकी ख़रीद करते हैं और इसीलिए उन्हें बार बार इसके लिए बाहर जाना होता है। पुलिस को इन्हें बताना चाहिए कि वे राशन कहाँ से प्राप्त करें और उन्हें इन लोगों की मदद करनी चाहिए। इस समय ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ घंटों के लिए भी राशन के दुकानों को खोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

मन की बात में पीएम मोदी लॉकडाउन में मजदूरों हो रही तकलीफों के लिए माफी मांगी और कहा कि ये जीवन मरण का संकट है इसलिए ये जरूरी था, वीडियो नीचे देखिए

केंद्र सरकार यह क़दम उठाए:

• केंद्र सरकार को चाहिए कि वह राज्यों में सहयोग के लिए आवश्यक व्यवस्था करे। यह व्यवस्था देश भर के महत्वपूर्ण प्रवासी कॉरिडोर में स्रोत और गंतव्य दोनों पर होनी चाहिए ताकि प्रवासी मज़दूरों को उनके घर सुरक्षित वापस लाया जा सके या शहरों में उनके लिए पर्याप्त रहने, भोजन और अन्य राहतों की व्यवथा हो सके।जैसे दूसरे देशों में फँसे भारतीयों को वापस लाने के लिए विशेष और व्यापक व्यवस्था की गई, देश भर में जगह-जगह अटके प्रवासी मज़दूरों को वापस उनके गाँव पहुँचाने की व्यवस्था की जाए। राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने इस दिशा में क़दम उठाए हैं। इन राज्यों ने कुछ बसों की व्यवस्था की है जो अपनी सीमा पर पहुँचनेवाले प्रवासी मज़दूरों को उनके गंतव्य तक पहुँचाएगी। पर यह व्यवस्था तब तक उपलब्ध होनी चाहिए जब तक कि सारे प्रवासी मज़दूर अपने-अपने राज्यों की सीमाओं पर नहीं पहुँच जाते। केंद्र को चाहिए कि वह गंतव्य वाले राज्यों को सीमा तक प्रवासियों को पहुँचाने की व्यवस्था करने को कहे और स्रोत राज्यों से कहे कि वह इन्हें सीमा पर से उनके गाँव तक पहुँचाने की व्यवस्था करे। इन प्रवासियों की स्क्रीनिंग, इनको अलग रखने और इनकी स्वास्थ्य की जाँच के बारे में जिस तरह की सुविधाएँ अन्तर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए है, वही इन प्रवासी कामगारों के लिए भी होनी चाहिए। गंतव्य राज्यों में प्रवासियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र भी मदद को आगे आए।

• केंद्र और राज्यों के स्तर पर एक क़ानूनी प्रकोष्ठ की स्थापना हो जो लॉकडाउन के बाद मज़दूरों के वेतन, भत्ते और अन्य विवादों का निपटारा करे। इनका भुगतान नहीं होने से मज़दूरों को भारी नुक़सान होगा और पहले से ही हाशिए पर मौजूद इन लोगों की हालत और ख़राब हो जाएगी। लॉकडाउन के बाद काफ़ी संख्या में मज़दूरों को उनके नियोक्ता उन्हें समय पर वेतन नहीं दे रहे थे। ठेकेदारों से उधार लेकर वे अपना काम चला रहे थे और ये ठेकेदार लॉकडाउन समाप्त होने के बाद उनके वेतन से ये पैसे काट सकते हैं। इससे ये मज़दूर बंधुआ मज़दूरों जैसी स्थिति झेलने को मजबूर हो जाएँगे। इसे दूर करने के लिए यह ज़रूरी है कि केंद्र सरकार इन नियोक्ताओं को निर्देश दे कि मज़दूरों के वेतन से अग्रिम राशि नहीं काटी जाए। क़ानूनी प्रकोष्ठ को लॉकडाउन के बाद एक निश्चित अवधि तक खुला रखा जाए ताकि मज़दूरों के विवादों का निपटारा हो सके।

• यह ज़रूरी है कि प्रवासी सहित सभी परिवारों को पीडीएस के तहत कम क़ीमत पर राशन मिलता रहे। केंद्र ने 80 करोड़ लोगों को यह सुविधा दिलाने की बात कही है जिसका मतलब यह हुआ कि प्रवासी मज़दूर अपने गंतव्य पर यह सुविधा प्राप्त करने से दूर रह जाएँगे।

• प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों में नक़दी की कमी की समस्या से स्रोत राज्य को निपटना जाना चाहिए और उसको इसके लिए नरेगा भुगतान और ग्रामीण स्थानीय निकायों के माध्यम से उन्हें उपलब्ध कराना चाहिए। श्रम मंत्रालय ने निर्माण मज़दूरों को उनके खाते में पैसे भेजने का निर्णय किया है और इसके लिए बीओसी सेस फ़ंड का प्रयोग किया जाएगा। राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे निर्माण मज़दूरों को यह राशि उपलब्ध कराएँ। पर अमूमन यह होता है कि प्रवासी मज़दूर कल्याण बोर्ड में कई जटिलताओं के कारण अपना पंजीकरण नहीं करा पाते और हो सकता है कि उनके पास बैंक खाता भी नहीं हो। इस समस्या को दूर करने के लिए स्थानीय ग्रामीण निकायों के स्तर पर इन लोगों को नक़द दिए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

• कई प्रवासी बँटाई मज़दूर, कृषि मज़दूर और लघु किसान भी होते हैं और उनके पास थोड़ी ज़मीन होती है जिस पर वे मौसमी खेती करते हैं। उनकी मदद के लिए सरकार को चाहिए कि वह ऐसे किसानों की इन माँगों पर ध्यान दे :

. बटाईदारों, कृषि मज़दूरों और किसानों को उपकरण दिए जाएँ ताकि वे जल्दी नष्ट हो जानेवाले ज़रूरी फ़सलों की कटाई कर सकें।

. मनरेगा में बेरोज़गारी लाभ के नियमों के तहत कृषि कामगारों को भत्ते का भुगतान किया जाए जो लॉकडाउन की वजह से काम से हाथ धो बैठे हैं।

. लॉकडाउन की वजह से फ़सल नुक़सान का उचित आकलन किया जाए और कृषि मज़दूरों को उनकी मज़दूरी के साथ इसके लिए उचित मुआवज़ा दिया जाए। बैंकों और आरबीआई को निर्देश दिया जाए कि वे कृषि ऋण संबंधी निर्देशों में संशोधन करे और बकाए के बावजूद किसानों को ऋण दे और विभिन्न योजनाओं के तहत दिए गए ऋणों की वसूली पर एक वर्ष तक के लिए रोक लगा दे।

लेखक-निवेदिता जयराम- आजीविका ब्यूरो से जु़ड़ी हैं। अमृता शर्मा, सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड लेबर सल्यूशन (CMLS) में प्रोग्राम मैनेजर हैं। अशोक झा, मजदूरों के मुद्दे पर ही कार्यरत हैं। ऊपर का लेख लेखकों के अपने विचार हैं।

   

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