त्वरित टिप्पणी: अब संन्यासी को वैराग्य छोड़ माया प्रबन्धन करना होगा

Dr SB Misra | Mar 19, 2017, 19:15 IST

आदित्य नाथ योगी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। मुस्लिम समाज के बहुतों को आशंका, कुछ हिन्दूवादियों को आनन्द और कुछ को पीड़ा हुई होगी। लेकिन सुखद बात थी निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह की सहज और आत्मीय उपस्थिति। मंत्रियों पर ध्यान दें तो काफी सन्तुलित और सर्वस्पर्शी दिखा।

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वर्ष 1972 में जन्में अजय सिंह बिष्ट ने हेमवतीनन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल से स्नातक किया, बाद में घर छोड़ दिया और गोरखनाथ धाम में दीक्षा ली जहां वह आदित्य नाथ बने। योगी के पूर्ववर्ती महंत अवैद्यनाथ लोक सभा में हिन्दू महासभा के सांसद थे और रामजन्म भूमि आन्दोलन से उनका गहरा सम्बन्ध रहा था। पहली बार 1949 में तथाकथित बाबरी मस्जिद पर इसी सम्प्रदाय ने अखंड कीर्तन आरम्भ करके कब्जा किया था।

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वैसे तो भारतीय जनता पार्टी के साथ योगी के सम्बंध अनेक बार मधुर नहीं रहे हैं, फिर भी मोदी की योजना क्या है यह सवाल स्वाभाविक है । योगी ने 'सबका साथ सबका विकास' का मन्त्र जाप आरम्भ कर दिया है हो सकता है लोगों की आशंकाएं निर्मूल निकलें। यदि उच्चतम न्यायालय का फैसला आ जाए और हिन्दुओं के पक्ष में हो तब शान्तिपूर्वक मन्दिर बनाने में योगी की भूमिका बनेगी अन्यथा योगी का चयन एक जुआं साबित हो सकता है।



साधुवेश में गेरुआ वस्त्र धारण करने वाले योगी जानते हैं कि देश के धर्माचार्यों ने हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था बनाई है जिसमें वर्ण व्यवस्था तो पहले ही अपना औचित्य खो चुकी है लेकिन आश्रम व्यवस्था में सन्यासी वैराग्य भाव से राजा और प्रजा दोनों का मार्ग दर्शन करता है। बिना संन्यास लिए भी कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त का, समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी का, महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण ने पूरे समाज का मार्गदर्शन किया था। संन्यासी स्वयं राजा बने ऐसा कम ही होता है। हां, यदि राजकाज संभालने वाला कोई क्षमतावान सुयोग्य गृहस्थ न मिले तो स्वयं संन्यासी को राजगद्दी पर बैठकर राजकाज संभालना होगा। शायद यही हुआ होगा।

अपने कट्टर हिंदुवादी चेहरे को लेकर चर्चा में रहे हैं आदित्य नाथ योगी। फोटो- विनय गुप्ता हमारे देश में गेरुआ यानी भगवा वस्त्र तो त्याग और तपस्या की पहचान रहे हैं। इसी रूप में लाखों सन्यासी समाज में सम्मानित होते रहे हैं और आज भी हो रहे हैं। स्वामी विवेकानन्द ने इसी वेश में दुनिया के विचारों को झकझोर दिया था। यदि माया प्रबन्धन करना है तो वैरागी का वेष धारण करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि साधुवेश में जब कोई दुनियादारी का काम करेगा तो उचित अनुचित आलोचना, शिष्ट अशिष्ट आक्षेप सुनने को मिलेंगे। यह धर्म और धर्माचार्यों का अपमान होगा जिसे रोका नहीं जा सकेगा। इसलिए धर्माचार्यों से अपेक्षा है कि वे ऐसी व्यवस्था दें कि साधुवेश में लाखों सन्यासियों की मंजिल स्पष्ट रूप से परिभाषित रहे और राज काज करते समय साधुवेश धारण न करें।

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देश के लाखों साधु, सन्यासी और फ़कीर अपने आश्रम और कुटिया छोड़ सड़कों पर तब आ गए थे जब अस्सी के दशक में लालकृष्ण अडवाणी ने राम जन्मभूमि आन्दोलन चलाया था। आदोलन समाप्त होते ही अधिकांश यथास्थान वापस चले गए लेकिन कुछ ने अपनी मंजिल बदल दी और कुर्सी, सरकार चलाना, सरकारी वेतन और सुविधाएं खोजनी आरम्भ कर दीं। ऋतम्भरा जी वात्सल्य आश्रम वृन्दावन चली गई लेकिन उमा भारती ने मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री बनना श्रेयस्कर समझा। आज भी केन्द्रीय मंत्री हैं।

यह सच है कि योगी आदित्यनाथ हिन्दूराष्ट्र की बातें करते रहे हैं, ईसाई धर्मावलम्बियों को हिन्दू बनाने में लगे रहे है और विवादित रहे हैं लेकिन सरकार चलाने के लिए उनका यह रूप काम नहीं करेगा। यदि शुद्ध रूप से राजनीति के चश्मे से देखें तो गोरखधाम को राम जन्मस्थान का कब्जा लेने के साथ ही भगवान शिव के अवतरण का स्थान भी माना जाता है और देश में वैष्णवों से शैव आबादी अधिक है। रामजन्मभूमि आन्दोलन दक्षिण भारत में उतना प्रभावी नहीं रहा था जितना उत्तर भारत में । अगला आन्दोलन यदि शिव के नाम से होगा तो दक्षिण भारत में अधिक प्रभावी होगा। लेकिन देश, संघ परिवार और स्वयं मोदी के हित में ऐसा आन्दोलन नहीं होगा।

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